


रूंख भायला.
दुख नै नीचौ बिछा, ओढ’र सो दुख नै
राम भरोसै है तो बैठ्यो रो दुख नै…
राजी राखै रामजी! आज बात दुखां री…..। गुरूनानकजी रो अेक दूहो है ‘नानक दुखिया सब संसारा, सोई सुखिया जेहि नाम अधारा’। इण दूहै में जियाजूण रो मरम है, जे कोई समझै तो ! सुख दुख तो तावड़ै अर छियां दांई है, बगतसर आबो करै। कदेई दुखां रा भारिया बंधै तो कदेई सुख री चानणी तणै। जद कदेई आपां कैवां, बण आदमी भरी पूरी जिंदगी जीवी है तो मतलब ओ ई होवै, बण सुख स्यार सुख घणाई देख्या अर उण री जिनगाणी मे दुखां रो ई छेड़ो आ लियो। दुख सुख रो तो गंठजोड़ो है जियाजूण में….!
‘हेत री हथाई’ में आपां सुख री तो घणी बंतळ करां पण आज लारो लेस्यां दुख रो! कांई है दुख ? म्हूं सोचूं, जद नरचिंती नीं होवै तो दुख उपजै। सुख नै जे मिठास मान लेवां तो दुख खरास, बैड़ास अर मिजळैपणै सूं र्भ योड़ो, बीं नै कुण चावै ! ओ तो होवै ई अणचाइजती चीज है, जिकी बैमाता सगळां रै करमां में पांती आवतै घाल दिन्ही है। बुद्ध भोत मारकै री बात कैयी है, ‘मोह दुखां रो कारण है।’ थे जाणो ई हो कै मकड़ीजाळा तो मोह माया रा ई है पण मिरत्युलोक में आयां पछै तो मोह तो घलै ई, नीं पछै उण नै माया रो संसार कैवै ई कुण !
मोटामोटी दुख रा दो भेद है, तन सूं अर मन सूं। आप कैय सको, सरीर री दूख पाछ अर मनगत रा दुख। डील रै दुख पाछ रा तो विज्ञान कन्नै घणाई इलाज है पण मनगत री उदासी विज्ञान नीं मेट सकै। उण रो तो न्यारो हिसाब, निरवाळो लेखो जोखो, बगत ई उण दुख नै मेट तो मेटै। सोचो दिखाण, दो दिन पैली झाालावाड़ री स्कूली दुरघट में जिण मायतां रा टाबरिया जावता रैया, बां रै दुख रो कांई लेखो ! बा मा, जिण रै दो ई फूल हा अर बै ई भेळा कुम्हळाग्या, उण नै धीजो ई किंकर बंधाइजै। पण बिधना रा रंग है, बै तो आपरी चाली चालै ! पण कदे-कदे मनगत री पीड बात-बंतळ सूं ई कीं घटै, जणाई तो आपां हथाई करां ! बात करणै सूं जी हुळको हो जावै, मांयली अभड़ास नीसर जावै, बातां सूं ई मिनख नै समझ आवै कै संसार में उणरो दुख कोई नवो कोनी, सब रै पांती दुख है, हथाई रै इणी धीजै सूं मिनख अेक नवी उरमा लेवै बातां सूं…।
काया कस्ट री बात करां तो केई लोग थोड़ी’क दूख पाछ में ई आय होय घणी करै। थे कैयस्यो, पीड होवै तो आय होय आपई हो जावै, करणी कुण चावै ! पण म्हूं बूझूं, भला मिनखो, बोकल्डा पाड़नै सूं पीड थोड़ी घटै, हां इण जंतर सूं थोड़ो घणो ध्यान भलंई हटा लेवो पीड सूं। पीड तो आपरी जिग्यां है जियां ई है, मिटसी जणाई मिटसी, पण सो कीं जाणता थकां, कूकै जिका तो कूकै ई। दुख कोई होवै, धीजै सूं मोटी कोई दवा नीं है। काळजो काठो र्क यां बिना पार नीं पड़ै। आखै दिन दुख रा रोणा रोवण में सार कोनी, दुख सूं तो सामीं छाती भिड़नो ई इलाज हो सकै। राजस्थानी रा जगचावा कवि मोहन आलोक री अेक पोथी है, ‘चित मारो दुख नै’। इणी नांव सूं बां रो अेक कविता है जिण में बै दुख नै चित मारणै री सीख देवै। ल्यो बांचो दिखाण-
दुख नै नीचौ बिछा, ओढ’र सो दुख नै
राम भरोसै है तो बैठ्यो रो दुख नै।
हाथ दिया है मालिक थान्नै हाथ हला
मूंडै में दी जीभ, जीभ सूं बात चला
जे ताबै बैठै तो सिर-सोचण नै है
नीं बैठै तो और कोई री मान सला
नीं मान्यो तो करसी और बडो दुख नै
क्यूं गळ घालै इयां, हार ज्यूं पो दुख नै।
ईं धरती पर तूं जद जलम्यो जायो है
चूण चुगण रो हक साथै ई ल्यायो है
अे लंगवाड़ा बाड़ा कर-कर बैठ्या है
तूं बैठ्यो है ज्यूं गाडी में आयो है
जरू जीव रै चेप, पांगळो हो दुख नै
गंठड़ी बांध’र गोडां रै ल्हको दुख नै
बैठ्यो मूंडो के जोवै है चोरां रो
आं कन्नै माल है सगळो ओरां रो
तूं है अेक, आप ई भूखो बैठ्यो है
इन्नै अे बळ बांधै है छोरां रो
करता बगै सदा सारू थारो, दुख नै
तूं गूंगो अपणेस करै प्यारा, दुख नै
भीतर थारै आग, आग में दाझै तूं
किस्तूरी रै लार मिरग सो भाजै तूं
साथै लूटै लोग भाग रा हक थारा
साथै म्हारा बीर ! बेकलो बाजै तूं
चीतै दांई झपट, चित मारो दुख नै
चेतो करो ! सांवठा ललकारो दुख नै।
आज री हथाई रो सार ओ है, कै सुख अर दुख तो बारीबंटै आवै, दोनां नै परोटो। नानक जी री अेक साखी सूं बात नै सांवटा-
दीनदयाल सदा दुख भंजन ता सिउ रूचि न बढाई
नानक कहत जगत सभ मिथिआ ज्यों सुपना रैनाई
बाकी बातां आगली हथाई में। आपरो ध्यान राखो, रसो अर बस्सो….।
-लेखक राजस्थानी व हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर व वरिष्ठ पत्रकार हैं
