गणेश पूजन के साथ उठेगी आवाज़: मंत्रालयिक कर्मचारी मनाएंगे ‘पुकार सप्ताह’

ग्राम सेतु ब्यूरो.
पंचायतीराज विभाग में कार्यरत मंत्रालयिक कर्मचारियों का सब्र अब जवाब दे चुका है। बार-बार दस्तावेज़ सत्यापन, पदोन्नति प्रक्रिया में टालमटोल और कार्य विभाजन में अस्पष्टता जैसे मुद्दों को लेकर अब कर्मचारी ‘पुकार अभियान’ की शंखनाद शैली में शुरुआत कर रहे हैं। लेकिन अंदाज़ बिल्कुल निराला है, नाराज़गी भी, पूजा भी। इस अभियान की शुरुआत बुधवार यानी 6 अगस्त की सुबह कार्यालय समय से पूर्व भगवान गणेश की पूजा-अर्चना के साथ होगी। गणपति के समक्ष नमन करते हुए कर्मचारी राज्य सरकार की ‘जारी नीतियों’ की प्रतीकात्मक आहुति देंगे। इसे कर्म, धर्म और विरोध का ऐसा त्रिवेणी संगम माना जा सकता है, जिसमें संतुलन के साथ असंतोष भी समाहित है।


जिलाध्यक्ष जगपाल मान का कहना है कि विभागीय नेतृत्व की नीतियाँ न केवल दमनात्मक हैं, बल्कि संवर्ग विशेष के दबाव में आकर एक समूचे वर्ग को बदनाम करने का कार्य कर रही हैं। प्रदेश भर के करीब 16,000 मंत्रालयिक कर्मचारियों को बार-बार दस्तावेज़ सत्यापन की प्रक्रिया में उलझा कर उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाई जा रही है।
ब्लॉक अध्यक्ष कन्हैया सिंह, परविंद्र सिंह, उत्कर्ष कौशिक व शुभम आदि ने कहाकि तीन बार दस्तावेज़ सत्यापन हो चुका, लेकिन फिर भी हमें उसी चक्र में उलझाया जा रहा है। ये जांच नहीं, यह तो विभागीय अविश्वास है। उन्होंने कहाकि कलक्टर डॉ. खुशाल यादव को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया है इसमें कैडर रिव्यू की प्रक्रिया को शीघ्र शुरू कर पदोन्नति का मार्ग प्रशस्त करने, ग्राम पंचायत स्तर पर स्पष्ट कार्य विभाजन लागू करने, तीन बार दस्तावेज़ सत्यापन के बाद भी दोहराव पर रोक लगाने व संवर्ग विशेष के प्रभाव में आकर मंत्रालयिक कर्मचारियों के प्रति दमनात्मक कार्रवाई बंद करने की मांग शामिल है।


कर्मचारियों ने कहाकि जिला और ब्लॉक स्तर पर मंगलवार को ही प्रशासन को सूचित कर दिया गया है कि पुकार सप्ताह के दौरान कोई कामकाज नहीं रोका जाएगा। सभी कर्मचारी अपने निर्धारित दायित्वों का निर्वहन करते रहेंगे। यानी विरोध भी, और सेवा भी, मर्यादित और सृजनात्मक अंदाज़ में। जब देश में विरोध अक्सर रास्ता जाम करने, काम ठप करने या उग्र नारों से जुड़ा रहता है, ऐसे में पंचायतीराज विभाग के मंत्रालयिक कर्मचारियों ने गणेश पूजन और आदेशों की आहुति जैसे प्रतीकात्मक तरीकों से अपना आक्रोश जताने का जो तरीका चुना है, वह लोकतांत्रिक असहमति की सांस्कृतिक मिसाल बनता नजर आ रहा है।

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