कुण ?…तो कुण ई सई ! (रूसणै अर मनणै री बात)

रूंख भायला.
राजी राखै रामजी ! ‘हेत री हथाई’ में आज बात रूसणै अर मनावणै री। टाबर होवै भांऊ बडेरा, आदमी होवै भलंई लुगाई, सग्गा परसंगी होवै चायै मा जाया बैन भाई, रूसणो मनणो तो मिनखा जियाजूण में चाल ई बो करै। रूसणो मिनख रो जलमजायो हक है अर मानणो मनावणो उणरो अेक फरज। साची बात तो आ कै इण रूसारासी में जे मानणो मनावणो नीं होवै तो पछै क्यांरो रूसणो !
रूसणै री बातां तो छेड़ो ई कठै ! घर परिवार सूं लेय’र गळी गवाड़ में रूसेड़ा लोग लाधै। पंजाबी में अेक कैबत है, ‘मेरा रुस्से नां कलंगियांवाळा, भांवे जग सारा रुसजे’। थळी में बिरखा उडीकतो मानवी सदांई कैवै, ‘अबकाळै तो रामजी रूसग्या दीसै !’ पण रामजी रूसै तो म्है किस्या घाट हां, घड़ी खंड तो म्है ई रूस जावां, अर दे काढां भगवान नै ई भूंडी गाळां………भलंई मन चिंती होवताई पाछा हाथाजोड़ी करलां, नाक रगड़लां।


रीस अर रूसणै रो जबरो सगपण। साची बूझो तो रीस ई रूसाणै आदमी नै, मनचिंती नी होवै तो आपां नै रीस आवै, रीस आयां रूसणै रो भाव जलमै। रीस पर बंतळ फेर कदेई, आज फगत रूसणै री बातां। म्हारो अेक भायलो है, जद कदी रूसणै री बात चलै, बो सदांई कैवै, ‘जिका रूस जावै, बान्नै कैय दो, उक्रेेन अर पोलैण्ड ओर जाई आवै, सारै ई है।’ बात में व्यंग्य तो है पण तत ई घणो। रूसेड़ै मिनख री मनगत न्यारी होवै, उण नै ‘अहं सत्यम्, जगत मिथ्या’ लागै। पण रूस्यां पार नीं पड़ै, छेवट मानणो ई पड़ै नीं पछै गळ में आई जाणो। कैबत है, ‘रूस्या रूस्या कुण मनाया, गधै चढ’र आपई आया…!’ नीं मानो तो किणी सीखतोड़ै नेतियां सूं बूझो दिखाण, जिका राज री किणी बात सूं रूस’र तैसील सामीं धरणै का भूख हड़ताल पर बैठ तो जावै पण बान्नै मनावण कोई नीं आवै। छेवट फेफी आयोड़ा होठ फलरकावता बै माधियां नै कैवणो सरू करै, ‘कियां ई बात करो नीं, जूस पाय’र उभो करावो नीं….!’


सासू बीनणी, नणद भौजाई, भाई भाई, आड़ौसी-पाड़ौसी अर बेलिपां में रूसणो मनणो चाल ई बोकरै। रूसेड़ै जंवाई अर फूंफैजी रो कैवणो ई कांई…..पच पच मरो भलंई पण लखणां रा लाडा तो रूणा’र ई छोड़ै ! धणी लुगाई रै रूसणै मनणै रा रंग ई न्यारा। कोई रोटी पाणी छोड़ देवै, कोई थाळी फैंकै, कोई रीसां में घणो जीमै, कोई आटी-पाटी लेय’र सो जावै, कोई मूं टोडियै सो करे फिरबो करै, घणो अेबलो का होवै तो अेकर घर छोड’र ई भाज ब्हिर होवै। भोळै स्याणां री छोडो, टाबर ई रूसणै में लारै कोनी। पल में राजी पल में बेराजी। बाळपणै में भायलां सूं जद रूसता तो कैवता, म्हूं थां सूं दो हूं। राजीपो होवताई भळै अेक हो जावता।
रूसणै री बात चेतै आवै, पाड़ौस री अेक सुनारी म्हारी मा कन्नै आवती। बा बतावती कै उण रा जीसा घणा रीसाळा अर अेबला। बै नहा धोय’र पट्टा बांवता तो सिर में तेल घणो चोपड़ता। सुनारी री मा बान्नै बरजती कै सिरा’णां पर चिट्टो जम जावै, तेल कीं थोड़ो लगाया करो। पण जीसा सुणता ई कोनी। अेक दिन दिनुगै दिनुगै मा पूजा करै ही, जीसा आंगणै में उभा पट्टा बावै हा, मा जीसा नै भळै तेल सारू टोक दियो। जीसा रै आई रीस, कांगसियो बगाय’र रसोवड़ै में गया। दो किलो सरस्यूं रै तेल री पीपी, जिकी बै रात ई लेय’र आया हा, आंगणै में उभा होय’र समची आपरै सिर माथै ढोळ ली। मा नै गाळ ठोकी, ‘लै राण्ड ! अबै पूजलै भैंरूजी नै, काळा अर गोरा दोवूं…..!! फेर के होयो ? म्है हांसतै सै बूझ्यो, बां बतायो, होवणो कांई हो, चार दिनां पछै सागी जीसा, सागी मा। रूस्यां कद सरै ! मानणो ई पड़ै !!


ल्यो दूजी बात सुणो ! गांम रै अेक मोटै परिवार में छोरै रो ब्याव हो। अेक काको कीं रूसेड़ो, घरै कोनी बड़्यो। छोरै रै बाप पगां पोतिेयो रेड़्यो, पण काको तो आपरी लोर में आछी माड़ी बकतो रैयो अर अंट’र बैठग्यो। छेवट कडूम्बै आळां उण रै घरां जाय’र मान मनवार करी तो बोल्यो-‘म्हारो जी तो जमां ई कोनी करै, पण थारी बात राखस्यूं। काळजो काठो कर’र ब्याव में अेकर तो आइस्यूं।’


भाई बेली राजी होग्या। चलो अेकर आसी जिको दूसर अर तीसर ई आ जासी। आणो जाणो होयां मन री खींचाताण आपई मिट जिसी…..।
ब्याव रो दिन। टैंट में अणूती भीड़, सै भाई बेली, रिस्तेदार जीमाजूठो करै। बठैई दाड़ बधायां, कोझो सो कामळियो ओढे रूसेड़ो काको ई बोलोबालो आ ढुक्यो। अेक कूणै में बैठग्यो, पुरसगारां थाळी परूस दी। अबै काको आंटो-आंटो बैठ्यो पीळती चमचम ठोकै। अेक पुरसगारै उण नै ओळख्यो कोनी, काकै नै बेडोळो देख’र बूझ ई लियो-‘भाईजी, थे कुण ?’
‘काकै उण रै सामीं कैरो कैरो झाक्यो, रीसां में थाळी फैंकतो बोल्यो-
‘कुण तो कुण ई सही !’ अर बो जा….. ओ जा…। किण रै ई बात पल्लै नीं पड़ी पण घरै आळां रै तो सागीड़ी पड़गी। कोई के करल्यै। रूसणै री बाण होवै तो भानो चाइजै।


आज री हथाई रो सार ओ है, कै बात सटटै मिनख नै रूसणो ई चाइजै पण बगतसर स्याणै मिनखां री बात मानणी ई जरूरी। नीं पछै रूसेड़ा बैठ्या रैया, मनावण रा टैम ई कठै रैया अबार….! अर मनावणिया भी सुणल्यो, बगतसर मनाय ल्यो, आ नीं होवै जिकै नै मनावणो हो बो जावतो ई रैवै। बाकी बातां आगली हथाई में। आपरो ध्यान राखो, रसो अर बस्सो….।
-लेखक राजस्थानी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं

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