



ग्राम सेतु ब्यूरो.
राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश में पंचायत चुनाव टाले जाने पर नाराजगी जताते हुए सरकार को कड़ा संदेश दिया है। जस्टिस अनूप ढंड की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि परिसीमन की आड़ में पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव अनिश्चितकाल तक स्थगित नहीं किए जा सकते। अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 243(ई) और पंचायतीराज अधिनियम की धारा-17 का हवाला देते हुए कहा कि पंचायतों का कार्यकाल खत्म होने से पहले चुनाव कराना अनिवार्य है। यदि सरकार इसमें विफल रहती है तो राज्य चुनाव आयोग की जिम्मेदारी बनती है कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने के लिए आवश्यक कदम उठाए।

प्रदेश की 6,759 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल जनवरी 2025 में समाप्त हो चुका है। इसके बाद सरकार ने पूर्व सरपंचों को प्रशासक नियुक्त किया था। लेकिन भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोप लगाकर कई प्रशासकों को बिना सुनवाई हटाने का आदेश जारी कर दिया।

याचिकाकर्ताओं ने इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी। सरकार ने तर्क दिया कि प्रशासक अस्थायी व्यवस्था हैं और यह कोई वैधानिक अधिकार नहीं है। लेकिन कोर्ट ने माना कि बिना सुनवाई प्रशासकों को हटाना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। नतीजतन, अदालत ने सरकार के आदेश रद्द कर दिए और निर्देश दिया कि दो माह के भीतर नए सिरे से जांच कर निर्णय लिया जाए। इसी बीच पंचायत और नगर निकाय चुनाव समय पर कराने संबंधी याचिकाओं पर भी हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली है और 12 अगस्त को फैसला सुरक्षित रखा था।

गिरिराज सिंह देवंदा ने 6,759 ग्राम पंचायतों में प्रशासक नियुक्ति को चुनौती दी थी, वहीं पूर्व विधायक संयम लोढ़ा ने 55 नगरपालिकाओं में चुनाव टाले जाने को लेकर याचिका दायर की थी। उनका कहना है कि सरकार ने मनमाने ढंग से संवैधानिक प्रावधानों और पंचायतीराज व नगरपालिका अधिनियम-2009 का खुला उल्लंघन किया है।

