टाउन की मिथिला कॉलोनी में ये हुआ आयोजन, जानिए…क्यों ?

ग्राम सेतु डॉट कॉम.
मिथिला मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का ससुराल है। मिथिला के लोग आज भी श्रीराम को ‘पाहुन’ कहते हैं यानी दामाद। जानकी को अपनी बहिन मानते हैं। यही वजह है कि अयोध्या में निर्माणाधीन मंदिर के गर्भगृह में रामलला की प्रतिमा विराजमान होने की खुशी मिथिलावासियों में भी है। मिथिलांचल से पलायन कर हनुमानगढ़ में निवास कर रहे मैथिल परिवारों में जबरदस्त उत्सा है। टाउन स्थित मिथिला कॉलोनी के मिथिला हनुमान मंदिर परिसर में श्री संुदरकांड का पाठ किया गया।


मिथिला समिति से जुड़े बलदेव दास बताते हैं, ‘श्री कजला धाम सुंदरकांड मित्र मंडल द्वारा सुंदरकांड पाठ का गुणगान किया गया। 22 जनवरी पूरे भारत में दूसरी दीपावली के रूप में मनाई जा रही है। इसी के उपलक्ष में एवं क्षेत्र की सुख समृद्धि व खुशहाली की कामना को लेकर उक्त पथ का आयोजन किया गया है।’


राजस्थान मैथिल ब्राह्मण परिषद के अध्यक्ष एडवोकेट देवकीनंदन चौधरी कहते हैं, ‘मिथिलावासियों के लिए यह गर्व का क्षण है। दामाद या बहनोई का उत्थान हर कोई चाहता है। श्रीराम तो वैसे ही मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। करीब 500 साल बाद उनकी प्रतिमा जन्मस्थान में स्थापित हो रही है। इसलिए इस आयोजन का अपना महत्व है।’


आयोजन को सफल बनाने में देवकीनंदन चौधरी, बलदेव दास, मनोज शर्मा, अशोक गौतम, संतोष झा, दिलखुश मंडल, श्यामदास, राम भरोसे झा, अनिल यादव, शिंटू मिश्रा, राजेश झा, अमर सिंह, प्रमोद यादव, मोंटून राय आदि जुटे रहे। कथा वाचक अमरकांत मिश्रा व दिनेश शर्मा ने प्रभु श्रीराम के चरित्र पर व्याख्यान दिया।
मैथिलों के मुताबिक, आज भी मिथिलांचल में विवाह की वही पद्धति है जिसके तहत सीता और राम का विवाह हुआ था। श्रीराम को मिथिला में खूब गालियां पड़ी थीं। जिसे सुनकर श्रीराम गदगद हुए थे। कथाओं के मुताबिक, लक्ष्मण शुरू-शुरू में बिदके भी थे लेकिन श्रीराम ने आकर्षक मुस्कान के साथ उन्हें इस आनंद से तृप्त होने को कहा। उन्होंने समझाया कि रिश्तों की प्रगाढ़ता औपचारिक नहीं होती, उसमें मिठास बनाए रखने के लिए इस तरह की तरकीबें काम आती हैं। लिहाजा, आज भी विवाह से संबंधित रस्मों में श्रीराम से संबंधित गीत ही गाए जाते हैं। मिथिला में श्रीराम का यही महत्व है। यही वजह है कि प्रभु श्रीराम के अयोध्या स्थित निर्माणाधीन मंदिर में प्रतिमा विराजमान होने की सर्वत्र खुशी है। टाउन स्थित मैथिल परिवारों ने सुंदरकांड कर इसे प्रदर्शित किया।

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