नरेश मेहन.
गांव में सन्नाटा
खेत उदास है।
सरसों के फूल
गुमसुम हैं।
खेत की बाड़
शान्त है।
गाय खूंटे से बंधी
रो रही है।
भैंस भां भां कर
रम्भा रही है।
पूस की रात
किसान
आसमान ओढ़ रहा है।
धरती का बिछोना है
किसान जाग रहा है
सरकार सो रही है।
यही बरसों से
चला आ रहा है।