
राजकुमार सोनी.
22 जनवरी 2024 को हमारे आराध्य देव प्रभु श्री रामलला करीब 500 साल के बाद अयोध्या भव्य मंदिर में विराजमान होंगे। करीब 33 साल पूर्व जब मैं राम मंदिर आंदोलन के तहत दो बार ‘कार सेवक’के रूप में 1990 और 1992 की कार सेवा में शामिल हुआ था। उस समय राम मंदिर निर्माण को लेकर जो देश में ज्वार उठा था। उसने भारत माता के माथे पर कलंक के प्रतीक बाबरी ढांचे को गुस्साए कार सेवकों ने 6 दिसंबर 1992 ढहा दिया था। लेकिन राम मंदिर कब बनेगा, यह सपना अधूरा था और सोचा करते थे कि क्या अपने इस जीवन में राम मंदिर का निर्माण होते देख पाएंगे?
लेकिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृढ़-इच्छा शक्ति और करोड़ों राम भक्त कार सेवकों के संकल्प के कारण ‘भव्य राम मंदिर’ इसी जनवरी माह की 22 तारीख को जन-मानस के दर्शनों के लिए समर्पित हो रहा है। यह हमारे लिए एक अद्भुत नजारा है जिसकी हमने जीवन में कभी कल्पना की थी। वह सपना साकार होते दिख रहा है। जो हमने आज से 33 साल पहले कार सेवक के रूप में देखा था।

वह दृश्य आज भी आंखों के सामने जीवंत हो उठता है जब हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना से 21 अक्टूबर 1990 को श्रीगंगानगर उद्यान आभा ट्रेन से अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण के लिए 70 ‘कार सेवकों’ के पहले जत्था में रवाना हुए थे। ट्रेन चलने से पहले और जहां मौका लगता हम नारे लगा रहे थे-‘राम लला हम आएंगे-मंदिर वहीं बनाएंगे’ व ‘सौगंध राम की खाते हैं-हम मंदिर वहीं बनाएंगे।’

ट्रेन जब दिल्ली पहुंची तो खबर मिली कि उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव सरकार ने कार सेवकों को पकड़ने के लिए बहुत सख्ती कर रखी है। हालात देखकर कार सेवकों के जत्थे को ‘बारात’ में तब्दील कर दिया गया। बेहद खूबसूरत होने के कारण मुझे ‘दूल्हा’ बना कर लखनऊ पहुंचने का फैसला किया गया। लेकिन आगरा रेल्वे स्टेशन पहुंचने पर पुलिस ने हमें पकड़ लिया और वहां जीआरपी थाने आगरा से भाग कर हम आगरा फोर्ट पहुंचे। अगले दिन हम वहां आगरा के मेयर भाजपा नेता लक्ष्मीकांत और भाजपा विधायक हरद्वार दुबे से मिले और हमारे बाकी जेल में बंद लोगों की जमानत करवाने का आग्रह किया। उनका सकारात्मक आश्वासन मिलने पर हम लोग वहां से निकलकर टूंडला, कानपुर होते हुए लखनऊ पहुंचे। लखनऊ से मल्हौर, गोंडा होते हुए झिलाई स्टेशन पर चेन खींचकर हम सब लोग नीचे उतरे फिर झीलाई से पैदल 2 रात और 3 दिन चलते रहे। पैरों में छाले और उनमें खून बह रहा था। मैले कुचौले कपड़े, रातों की नींद में अकमा, चाचचपारा, दलपतपुरा, तकिया, कुटैना और काज़ीदेवर गांव पार किए। फिर ‘बड़ की खतरी’, सहरिया, खीरिया, हल्लापुर, मिहियां की नदी पार कर भीटिया, मोहनपुरा, कोठा, परविती, कल्याणपुर से हल्लाकापुर होकर हम घाघरा नदी को पार किया। यहां से नगवा से माझा पार कर सरयू के इस पार तट पर पहुंचे। फिर सरयू नदी का पुल पारकर राम घाट, लक्ष्मण घाट, भरत घाट, दशरथ घाट, कैकई घाट आदि पार कर ‘काले राम मंदिर’ पहुंचे।
वहां से हम स्वर्ग द्वार टेढ़ी बाजार स्थित बामन जी के मंदिर वैदेही वल्लभ कुंज में जाकर ठहरे। वहां के महंत बाबा अवधशरण जी ने जब हमारी हालात देखी तो उनकी आंखों में आंसू नहीं रुक रहे थे। उन्होंने वहां तीन-चार दिन हमारी बड़ी सेवा की। बीकानेर के मूल निवासी कोलकाता से आए शरद और राम कोठारी बंधु भी बामन जी के मंदिर हमारे साथ ठहरे हुए थे और उन पर गोली भी मेरी आंखों के सामने 2 नवंबर 1990 को ही चली थी। उनके प्राण पखेरू होते देख मेरा दिल दहल गया था।
मैंने 2 नवंबर को मणिराम छावनी (वाल्मीकि आश्रम)में पहुंचकर महंत नृत्य गोपाल दास जी, शिरीष चंद्र दीक्षित, अशोक सिंघल व दिगंबर अखाड़े के महंत आदि को इस घटनाक्रम के बारे में बताया। उस समय मैं थर-थर कहां पर रहा था। तब महंत जी ने कहाकि कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद के गुंबद पर भगवा झंडा लहरा दिया है अतः अपनी जीत हो गई है अब जो कार सेवक लौटना चाहे लौट जाए। लेकिन विश्व हिंदू परिषद के महासचिव अशोक सिंघल का कहना था कि कार सेवकों को फिर से मंदिर की ओर प्रस्थान करना चाहिए। उसे समय अशोक सिंघल के माथे पर पट्टियां बंधी हुई थी और खून बह रहा था। मेरी भी दो-चार मिनट उसे समय अशोक सिंघल जी से बात हुई थी। उसके करीब 2 साल बाद 1992 में फिर कार सेवकों को कार सेवा का आह्वान किया गया। और वहां पहुंचने पर कार सेवकों को सरयू नदी से मिट्टी लेकर प्रतीकात्मक कार सेवा करने के लिए कहा। उस कार सेवा में मैं भी 4 दिसंबर 1992 को अयोध्या पहुंच गया था और 6 दिसंबर को बाबरी ढांचा ध्वस्त करने में मेरा भी चावल के दाने जितना योगदान रहा है। ढांचा तोड़ने के पीछे बड़ा कारण यह था कि अयोध्या पहुंचे लाखों कार सेवकों में इस बात को लेकर गुस्सा था कि आंदोलन के अगुआ नेताओं ने यह घोषणा कर दी की सरयू नदी से मिट्टी लाकर वहां राम चबूतरे के पास गड्ढे को भरा जाए। लेकिन कार सेवक इस फैसले से बेहद नाराज थे और उनके भयंकर आक्रोश और गुस्से ने बाबरी ढांचे को ध्वस्त कर दिया।
-लेखक भाजपा ओबीसी मोर्चा श्रीगंगानगर के जिलाध्यक्ष रहे हैं और ये उनके निजी विचार हैं