



शंकर सोनी.
वर्तमान लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटियां, भाजपा का संकल्प पत्र और प्रतिक्रिया में कांग्रेस की गारंटियां और संकल्प सब बिना किसी गणना और आधार के कपोल कल्पित है। सरकारों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए ये कभी पूरी नहीं होने वाली गरंटियां और संकल्प है। पीएम मोदी खूब सारी गारंटियां दी हैं। जोर देकर कहा है कि ‘ये मोदी की गारंटी है’। सवाल यह है कि इन गारंटियों को धरातल पर कैसे उतारे जाएंगे ? दरअसल, नेताओं के भाषणों पर भरोसा करने से पहले आपको देश की आर्थिक स्थिति की जानकारी होनी ही चाहिए।
आपको बता दें, भारत पर 2014-2015 में 64 लाख करोड़ रुपए का कर्जा था। जो बढ़कर अब 2023-24 में 173 लाख करोड़ रुपए हो गया है। यह कर्जा हमारी जीडीपी का 81 प्रतिशत है।
हाल ही में एन. के. सिंह समिति की प्रमुख सिफारिशें में सरकार के ऋण के लिए जीडीपी के 60 प्रतिशत की सीमा तय की है यानी केंद्र सरकार का कर्ज जीडीपी का 40 प्रतिशत और राज्य सरकारों का सामूहिक कर्ज 20 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, देश में 21 राज्यों की आय का करीब 23 हिस्सा कर्ज का ब्याज चुकाने में ही खर्च करना पड़ रहा है। राज्यों का कर्ज 76.06 लाख करोड़ रुपए हो चुका है। 2023 की पहली छमाही में 21 राज्यों का राजस्व घाटा 70,000 करोड़ रुपए और वित्तीय घाटा 3.5 लाख करोड़ रुपए बढ़ गया। देश कर्ज के जाल में जकड़ा है। इसके बावजूद कोई भी पार्टी देश की जनता से राष्ट्रीय कर्जे की वास्तविकता को साझा करने को तैयार नहीं है। बस गारंटियां दे रही है।
आइएमएफ के अनुसार, कर्ज का अनुपात 2022-23 में 81 फीसदी था और वित्त वर्ष 2024-25 में यह कर्ज जीडीपी के अनुपात 82.4 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।
राजस्थान ने भी जीडीपी का लगभग 39.8 प्रतिशत कर्ज लिया है। पंजाब पर उसकी जीडीपी का 53.3 प्रतिशत कर्ज है। हरियाणा पर जीडीपी का 30 फीसद कर्ज है, वहीं मध्य प्रदेश पर 31.3 फीसद है। झारखंड ने भी अपनी जीडीपी का 33 फीसद कर्ज लिया है। उत्तर प्रदेश ने जीडीपी कर्ज अनुपात 35 फीसद है और बिहार में 38.6 प्रतिशत। यही कारण है कि राज्यों की आय का एक बड़ा हिस्सा ब्याज चुकाने में खर्च हो रहा है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 292 और 293 में भी सरकार के ऋण की सीमा तय की हुई है। रिजर्व बैंक के मुताबिक, किसी भी राज्य पर कर्ज उसकी जीडीपी के 30 फीसद से अधिक नहीं होना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार वर्ष 2023-24 में केन्द्र और राज्यों को मिलाकर भारत का सामान्य सरकारी ऋण मध्यम अवधि में जीडीपी के 100 फीसदी से ऊपर पहुंच सकता है। सरकारों के कर्ज और जीडीपी के दर देखते हुए कोई भी राजनीतिक दल यह बताने की कोशिश नहीं कर रहे कि वे अपनी गारंटी को कैसे पूरा करेंगे ? हमाम में दोनो पक्ष नंगे है, इसलिए एक-दूसरे से यह सवाल भी करने की स्थिति में नहीं है। हालांकि निर्वाचन आयोग के अनुसार कोई भी राजनीतिक दल जनहित में घोषित की जाने वाली योजना के बारे में यह स्पष्ट करेगा कि वो इन योजनाओं को कैसे पूर्ण करेगा ? हमें नहीं लगता निर्वाचन आयोग इस पर सवाल करेगा। मां भारती हमारी रक्षा करें।
-लेखक नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक व जाने-माने अधिवक्ता हैं