पृथ्वी दिवस पर कवि नरेश मेहन की भावुक कर देने वाली कविता

मैं पृथ्वी हूं
तुम्हारी जननी
इसलिए तुम
कहते हो
धरती मां।
तुम चीरते हो
खोदते हो
मेरे बदन को
डालते हो तुम
एक दाना
मैं देती हूं
हजारों दाने।

तुम रोपते हो
मेरे बदन पर
एक नन्हा सा पौधा मैं पालती हूं उसे प्यार से
बनाती हूं उसे एक पेड़।
देती हूं हजारों फल।

फिर भी
न जाने
क्या ढूंढते हो
मेरे गर्भ में
करते हो विस्फोट तो
टटोलते हो
मेरे अंतस को।
मेरे अंतस में
तुम्हारे लिए
अथाह मोहब्बत के सिवाय
कुछ भी नहीं है
मेरे पुत्रों।

ठीक नहीं है
तुम्हारे लिए
अपनी मां की
परीक्षा लेना
अगर तुम
लौटा सकते हो
अपनी धरती मां को तो लौटा दो
मेरे वृक्ष
मेरे पशु
मेरे पक्षी
जो खो गए
आज मोबाइल के बाजार में।
मैं पृथ्वी
तुम्हार धरती मां हूं।

  • नरेश मेहन

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