पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर नहीं छू सकते विकास का आयाम

डॉ. संतोष राजपुरोहित.
पर्यावरण और सतत विकास एक दूसरे के पूरक हैं। सबसे पहले यह बात समझने की आवश्यकता हैं कि पर्यावरण को क्षति पहुंचाकर सुस्थिर विकास का मार्ग प्राप्त नही किया जा सकता। पर्यावरण रिन्यूएबल संसाधन जैसे पेड़-पौधे वनस्पति और नॉन रिन्यूएबल संसाधन जैसे नेचुरल गैसेस, पेट्रोलियम पदार्थ इत्यादि उपलब्ध करवाता हैं जो किसी भी देश के आर्थिक विकास में सहायक हैं। पर्यावरण जैविक और वनस्पति विविधता के माध्यम से भी आर्थिक विकास को अनुकूलता प्रदान करता हैं।
बढ़ती आबादी और औद्योगिक, आवागमन के साधन,विलासिता के साधनों ने हवा और पानी की गुणवत्ता को विपरीत रूप से प्रभावित किया हैं। अभी कुछ समय पहले हमारे शहर हनुमानगढ का एयर क्वालिटी इंडेक्स देश भर में खराब स्थिति में था। फोरेस्ट एरिया कम होने से बायो डाइवर्सिटी, लैंड डिग्रेडेशन की समस्याएं उत्त्पन्न हो रही हैं, जो सतत आर्थिक विकास में बड़ी बाधा हैं।


जनसंख्या वृद्धि एक बहुत बड़ी चुनौती हैं। प्रति वर्ष करीब ढाई करोड़ बच्चे जन्म लेते हैं जो ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या के बराबर हैं। इतने जनाधिक्य के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सहित मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाना चुनौती बनता जा रहा हैं।
सतत विकास का अभिप्राय हैं कि प्रकति से प्रदत संसाधनों का वर्तमान में उचित विदोहन करते हुए भविष्य की पीढ़ी के लिए भी संसाधन सरंक्षित रखे जाए।इसके लिए आवश्यक हैं कि जनसंख्या नियंत्रण की नीति की उचित समीक्षा हो और प्रभावी रूप से लागू हो। इको फ्रेंडली टेक्निक काम मे लेकर औधोगिक प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए।
कृषि में पेस्टीसाइड और केमिकल का सीमित प्रयोग करके जैविक खाद के माध्यम से ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है। नॉन रिन्यूएबल संसाधनों का विकल्प तलाशा जाए।
थर्मल और हाइड्रो पावर की जगह विंड पावर और सोलर पैनल को बढ़ावा दिया जाए ताकि सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके। सतत विकास पर्यावरण संरक्षण से ही प्राप्त हो सकता हैं इसके लिए सरकारी नीति के साथ साथ जनसहभागिता जरूरी हैं।
-लेखक राजस्थान आर्थिक परिषद के अध्यक्ष रहे हैं

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