





डॉ. संतोष राजपुरोहित.
आज का युग ‘डाटा की सत्ता’ का युग है। हर नीति, हर निर्णय, हर तकनीकी नवाचार के मूल में आंकड़े हैं और इन्हीं आंकड़ों की शक्ति को सबसे पहले समझने और स्थापित करने वाले व्यक्तित्व थे प्रोफेसर प्रशांत चंद्र महालनोबिस। भारत में आधुनिक सांख्यिकी की नींव रखने वाले इस दूरद्रष्टा की जयंती पर प्रतिवर्ष 29 जून को ‘सांख्यिकी दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन न केवल एक वैज्ञानिक को श्रद्धांजलि देने का अवसर है, बल्कि आंकड़ों के महत्व को जन-सामान्य तक पहुंचाने और नीति-निर्माण को तथ्यों से जोड़ने की प्रेरणा भी है। जब हम ‘डिजिटल इंडिया’, ‘स्मार्ट सिटी’, ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ जैसे शब्दों को व्यवहार में बदलते देख रहे हैं, तब हमें याद रखना चाहिए कि इस परिवर्तन की नींव वर्षों पहले एक भारतीय वैज्ञानिक ने रखी थी, जिसे आज हम महालनोबिस मॉडल के रूप में जानते हैं। इस आलेख में हम जानेंगे कि कैसे एक सांख्यिकीविद् की सोच आज के भारत को दिशा दे रही है, और क्यों आंकड़ों की भूमिका अब केवल गणना तक सीमित नहीं, बल्कि विकास का आधार बन चुकी है।
भारत में हर वर्ष 29 जून को सांख्यिकी दिवस मनाया जाता है। यह दिन प्रोफेसर प्रशांत चंद्र महालनोबिस की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है, जिन्होंने भारत में आधुनिक सांख्यिकी की नींव रखी। उनके योगदान को सम्मान देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 2007 में इस दिन को ‘सांख्यिकी दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की। आज के तकनीकी युग में, जब “डेटा“ को “नई पूंजी“ कहा जा रहा है, तब महालनोबिस की विचारधारा और उनके योगदान और भी अधिक प्रासंगिक हो गए हैं।
प्रो. महालनोबिस का जन्म 29 जून 1893 को कोलकाता में हुआ था। वे एक गणितज्ञ, सांख्यिकीविद् और नीति-निर्माता थे। उन्होंने आईएसआई की स्थापना की तथा भारत में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण यानी एनएसएस और पांच वर्षीय योजनाओं में सांख्यिकीय मॉडल के उपयोग को प्रोत्साहित किया। उनकी प्रसिद्ध ‘महालनोबिस दूरी’ नामक सांख्यिकीय तकनीक आज भी विविध क्षेत्रों में उपयोग की जाती है, जैसे जनसंख्या विज्ञान, समाजशास्त्र, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अर्थशास्त्र में।
इस दिवस का मुख्य उद्देश्य सांख्यिकी के महत्व को रेखांकित करना और विभिन्न क्षेत्रों में इसके प्रयोग को बढ़ावा देना है, जैसे कि योजना निर्माण, नीति निर्धारण, प्रशासनिक सुधार, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और व्यापार। इसके साथ ही छात्रों और युवा शोधकर्ताओं को प्रेरित किया जाता है कि वे डेटा-आधारित सोच अपनाएं और साक्ष्य आधारित निर्णय लें।
नीति निर्माण में डेटा का महत्वः आज की सरकारें जनसंख्या, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, गरीबी, मुद्रास्फीति आदि के आँकड़ों के आधार पर योजनाएँ बनाती हैं। नीतियों की सफलता की निगरानी के लिए भी आंकड़ों की आवश्यकता होती है।
कोविड-19 महामारी में सांख्यिकी की भूमिकाः महामारी के दौरान संक्रमण दर, मृत्यु दर, रिकवरी दर जैसे आँकड़ों के विश्लेषण ने स्वास्थ्य नीतियों को दिशा दी। आरटी-पीसीआर की पॉजिटिविटी रेट और वैक्सीनेशन कवरेज जैसे आंकड़े सांख्यिकी की शक्ति का उदाहरण हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बिग डेटाः आज मशीन लर्निंग और डेटा साइंस में सांख्यिकी की जड़ें हैं। हर ऐप और सेवा कृ चाहे वह गूगल मैप हो या अमेजोन आंकड़ों के मॉडल पर आधारित होती है। शिक्षा एवं अनुसंधान में सांख्यिकीः शोध कार्यों में डेटा संग्रहण, उसका विश्लेषण और निष्कर्ष निकालने के लिए सांख्यिकीय तकनीकों का उपयोग अनिवार्य हो गया है। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय डेटाः तापमान, वर्षा, प्रदूषण स्तर आदि के डेटा का सांख्यिकीय विश्लेषण नीति निर्धारण में सहायक है।
महालनोबिस की विचारधारा का आज के भारत में महत्व
उन्होंने “डेटा आधारित नियोजन“ की अवधारणा दी, जो आज ई गवर्नेंस, डिजिटल इंडिया और स्मार्ट सिटीज जैसी योजनाओं की नींव है। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी, बेरोजगारी और खाद्य सुरक्षा से संबंधित समस्याओं को हल करने में सांख्यिकी आधारित योजनाएं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उनकी सोच थी कि किसी भी योजना को सफल बनाने के लिए उसका आधार आंकड़ों पर होना चाहिए, न कि केवल अनुमान या धारणाओं पर। यह विचार आज की डिजिटल और डेटा-प्रधान अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत आवश्यक है।
प्रोफेसर पी. सी. महालनोबिस के योगदान और सांख्यिकी के महत्व को वर्तमान युग में नई पहचान मिल रही है। जैसे-जैसे भारत डिजिटल परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे सांख्यिकी का महत्व और अधिक बढ़ता जा रहा है। ऐसे में यह आवश्यक है कि हम उनकी दृष्टि को समझें, नवाचार के साथ सांख्यिकी को जन-सामान्य तक पहुँचाएँ और नीतिगत निर्णयों को वैज्ञानिक आधार प्रदान करें। सांख्यिकी दिवस केवल एक औपचारिक आयोजन न होकर, साक्ष्य आधारित नीति निर्माण, डेटा साक्षरता और विज्ञान आधारित समाज निर्माण की दिशा में एक प्रेरणास्त्रोत बनना चाहिए, यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी महालनोबिस को।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं





