डॉ. पीयूष त्रिवेदी.
भारत में हजारों साल से पानी पीने की जो सभ्यता है वो गिलास नही है। गिलास भारत का नही है। गिलास यूरोप में पुर्तगाल से आया था। ये पुर्तगाली जबसे भारत में घुसे थे तब से हम गिलास में फंस गए। गिलास अपना नही है। अपना लोटा है और लोटा कभी भी एकरेखीय नही होता। वागभट्ट कहते हैं कि जो बर्तन एकरेखीय हैं उनका त्याग कीजिये। वो काम के नही हैं। इसलिए गिलास का पानी पीना अच्छा नही माना जाता। लोटे का पानी पीना अच्छा माना जाता है। आलेख में हम गिलास और लोटा के पानी पर चर्चा करेंगे और दोनों में अंतर बताएँगे।
आपको पता है कि पानी को जहाँ धारण किया जाए, उसमे वैसे ही गुण उसमें आते है। पानी का अपना कोई गुण नहीं हैं। जिसमें डाल दो उसी के गुण आ जाते हैं। दही में मिला दो तो छाछ बन गया, तो वो दही के गुण ले लेगा। दूध में मिलाया तो दूध का गुण। लोटे में पानी अगर रखा तो बर्तन का गुण आयेगा। अब लौटा गोल है तो वो उसी का गुण धारण कर लेगा और अगर थोडा भी गणित आप समझते हैं तो हर गोल चीज का सरफेस टेंशन कम रहता है क्योंकि सरफेस एरिया कम होता है तो सरफेस टेंशन कम होगा। तो सरफेस टेंशन कम हैं तो हर उस चीज का सरफेस टेंशन कम होगा। और स्वास्थ्य की दष्टि से कम सरफेस टेंशन वाली चीज ही आपके लिए लाभदायक है। अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाली चीज आप पियेंगे तो बहुत तकलीफ देने वाला है क्योंकि उसमें शरीर को तकलीफ देने वाला एक्स्ट्रा प्रेशर आता है।
गिलास और लोटा के पानी में अंतर
गिलास के पानी और लौटे के पानी में जमीं आसमान का अंतर है। इसी तरह कुएं का पानी, कुंआ गोल है इसलिए सबसे अच्छा है। आपने थोड़े समय पहले देखा होगा कि सभी साधू संत कुएं का ही पानी पीते है। न मिले तो प्यास सहन कर जाते हैं, जहाँ मिलेगा वहीं पीयेंगे। वो कुंए का पानी इसीलिए पीते है क्योंकि कुआं गोल है, और उसका सरफेस एरिया कम है। सरफेस टेंशन कम है और साधु संत अपने साथ जो केतली की तरह पानी पीने के लिए रखते है वो भी लोटे की तरह ही आकार वाली होती है।
सरफेस टेंशन कम होने से पानी का एक गुण लम्बे समय तक जीवित रहता है। पानी का सबसे बड़ा गुण है सफाई करना। अब वो गुण कैसे काम करता है वो आपको बताते है। आपकी बड़ी आंत है और छोटी आंत है, आप जानते हैं कि उसमें मेम्ब्रेन है और कचरा उसी में जाके फंसता है। पेट की सफाई के लिए इसको बाहर लाना पड़ता है। ये तभी संभव है जब कम सरफेस टेंशन वाला पानी आप पी रहे हो। अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाला पानी है तो ये कचरा बाहर नही आएगा, मेम्ब्रेन में ही फंसा रह जाता है।
दूसरे तरीके से समझें। आप एक एक्सपेरिमेंट कीजिए। थोडा सा दूध लें और उसे चेहरे पे लगाइए। 5 मिनट बाद रुई से पोंछिये तो वो रुई काली हो जाएगी। स्किन के अन्दर का कचरा और गन्दगी बाहर आ जाएगी। इसे दूध बाहर लेकर आया। अब आप पूछेंगे कि दूध कैसे बाहर लाया तो आप को बता दें कि दूध का सरफेस टेंशन सभी वस्तुओं से कम है। तो जैसे ही दूध चेहरे पर लगाया, दूध ने चेहरे के सरफेस टेंशन को कम कर दिया क्योंकि जब किसी वस्तु को दूसरी वस्तु के सम्पर्क में लाते है तो वो दूसरी वस्तु के गुण ले लेता है।
इस एक्सपेरिमेंट में दूध ने स्किन का सरफेस टेंशन कम किया और त्वचा थोड़ी सी खुल गयी और त्वचा खुली तो अंदर का कचरा बाहर निकल गया। यही क्रिया लोटे का पानी पेट में करता है। आपने पेट में पानी डाला तो बड़ी आंत और छोटी आंत का सरफेस टेंशन कम हुआ और वो खुल गयी और खुली तो सारा कचरा उसमें से बाहर आ गया। जिससे आपकी आंत बिल्कुल साफ़ हो गई। अब इसके विपरीत अगर आप गिलास का हाई सरफेस टेंशन का पानी पीयेंगे तो आंते सिकुडेंगी क्योंकि तनाव बढेगा। तनाव बढते समय चीज सिकुड़ती है और तनाव कम होते समय चीज खुलती है। अब तनाव बढेगा तो सारा कचरा अंदर जमा हो जायेगा और वो ही कचरा भगन्दर, बवासीर, मुल्व्याद जैसी पेट की बीमारियाँ उत्पन्न करेगा।
इसलिए कम सरफेस टेंशन वाला ही पानी पीना चाहिए। यही वजह है कि लोटे का पानी पीना सबसे अच्छा माना जाता है। गोल कुए का पानी है तो बहुत अच्छा है। गोल तालाब का पानी, पोखर अगर खोल हो तो उसका पानी बहुत अच्छा। नदियों के पानी से कुंए का पानी अधिक अच्छा होता है क्योंकि नदी में गोल कुछ भी नही है वो सिर्फ लम्बी है, उसमे पानी का फ्लो होता रहता है। नदी का पानी हाई सरफेस टेंशन वाला होता है और नदी से भी ज्यादा ख़राब पानी समुन्द्र का होता है उसका सरफेस टेंशन सबसे अधिक होता है।
अगर प्रकृति में देखेंगे तो बारिश का पानी गोल होकर धरती पर आता है। मतलब सभी बूंदे गोल होती है क्योंकि उसका सरफेस टेंशन बहुत कम होता है। तो गिलास की बजाय पानी लोटे में पीएं। तो लोटे ही घर में लाएं। गिलास का उपयोग बंद कर दें। जब से आपने लोटे को छोड़ा है तब से भारत में लोटे बनाने वाले कारीगरों की रोजी रोटी ख़त्म हो गईं। गाँव-गाँव में कसेरे कम हो गये, वो पीतल और कांसे के लोटे बनाते थे। सब इस गिलास के चक्कर में भूखे मर गए।
-लेखक राजस्थान विधानसभा में आयुर्वेद चिकित्सा प्रभारी हैं