राजकुमार सोनी.
काशी के कोतवाल ‘बाबा काल भैरव’ की प्रतिमा काले स्वरूप में है। कहा जाता है कि काला और गोरा दो भैरूंजी है। राजस्थान के कोडमदेसर (बीकानेर) में गोरे भैरूंजी की पूजा स्थली है। यहां मंदिर में श्रद्धालु अन्य प्रसाद के अलावा बाबा के मदिरा (शराब) का प्रसाद भी चढ़ाते हुए देखे गए, जिसे वह वहां रखे बर्तन में डालते हैं और बाकी बचे हुए को भक्त वहां बैठकर ग्रहण करते हैं या वहां मौजूद श्रद्धालुओं को बांट देते हैं। यह भी कहा जाता है कि वह प्रसाद मंदिर की कांकड़ से बाहर ले जाने से बाबा भैरूं जी कुपित हो जाते हैं। इसलिए वहीं ग्रहण करना (पीना) पड़ता है।
कोडमदेसर भेरुजी का मंदिर उन दुर्लभ मंदिरों में है जो बिना छत के है। ऐसा एक मंदिर महाराष्ट्र के सिगनापुर में शनि देव जी का जिसके ऊपर छत नहीं है। राव बीकाजी जोधपुर राजघराने से थे और सन 1465 में जोधपुर छोड़कर कोडमदेसर आ गए और जहां वर्तमान में मंदिर है वहां उन्होंने नया परगना बसाने की सोची थी। लेकिन कुछ ही समय बाद मंत्रियों की सलाह पर उन्होंने नया परगना बसाने की बजाए भेरुजी को समर्पित मंदिर बनाने का फैसला किया और आज जहां बीकानेर है, वहां उन्होंने नया परगना जंगलाबाद (जांगलू) बसाया था। जिसका नाम बाद में बदलकर बीकानेर रखा गया।
भैरूंजी मंदिर की स्थापना जंगलाबाद (बीकानेर) स्थापना से पहले ही हो गई थी। बताते हैं कि जब राव बीकाजी जोधपुर से मंडोर होते हुए बीकानेर आ रहे थे। तब भेरूँ भक्त बेगाराम माली मंडोर से अपनी टोकरी में भैरूं प्रतिमा लेकर रास्ते में विश्राम करते करते आ रहे थे और जब वे कोडमदेसर गांव में विश्राम करने के लिए रुके और फिर आगे जांगलू जाने के लिए टोकरी उठाई तो उनके बहुत प्रयास करने के बाद भी वह टोकरी उनसे नहीं उठी। तब उन्होंने वहीं पर मूर्ति की पूजा अर्चना की और बाद में ब्राह्मण को लाकर वहीं मूर्ति की विधिवत् स्थापना करवाई और पूजा अर्चना शुरू कर दी।
कहा जाता है, मंदिर की स्थापना के समय राव बीकाजी भी उपस्थित रहे थे। मंदिर के पीछे बहुत बड़ा तालाब है। यह भी जानकारी में आया कि उनके बाद बीकानेर के जितने भी राजा हुए वह सभी कोडमदेसर भेरुजी के मंदिर में दर्शन करने आते रहे। बाद में महाराजा गंगा सिंह जी ने मंदिर को विस्तृत रूप दिया। राजमहल के प्रतीक के रूप में एक छोटा सा राजमहल आज भी कोडमदेसर में मौजूद है। यहां मंदिर बनने से लेकर अब तक बहुत से भक्तों और श्रद्धालुओं ने मंदिर पर छत लगाने की कोशिश की है लेकिन वह संभव नहीं हो पाई।
मंदिर परिसर में बाबा भैरूं जी के गण कुत्तों की उपस्थिति देखी जा सकती है। वे बाबा जी के आर्शीवाद और प्रसाद ग्रहण करने से दूसरों कुत्तों की अपेक्षा ज्यादा मोटे नजर आते हैं। यह मंदिर भाद्रप्रद मेले का स्थान है। शनिवार और रविवार यहां काफी संख्या में श्रद्धालु बाबा के धोक लगाने आते हैं। बाबा के आशीर्वाद से सभी भक्तों का कल्याण होता है।