हंसवाहिनी कला मंदिर में कार्यक्रम, गीत-संगीत पर क्या बोले विधायक गणेशराज बंसल ?

ग्राम सेतु ब्यूरो.
हनुमानगढ़ में कला एवं संगीत के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली संस्था हंसवाहिनी संगीत कला मंदिर का 24वां संगीत-नृत्य प्रशिक्षण शिविर का प्रतिभा सम्मान समारोह व सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ। बच्चों ने सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की। हंसवाहिनी कला मंदिर के अध्यक्ष गुलशन अरोड़ा ‘ग्राम सेतु’ से कहते हैं, ‘कार्यक्रम में जानवी एंड ग्रुप ने ‘आफत लगती हमें पढ़ाई’ कविता, आद्विक एंड ग्रुप ने ‘कुकड़ू कू व आले’, पलाक्षी एंड ग्रुप ने ‘सेल्फी ले ले’ पर डांस प्रस्तुत किया। निशा एंड ग्रुप ने ‘मुझे माफ करना’, अवनीका एंड ग्रुप ने ‘लाल पीली अखियां’, वंदना एंड ग्रुप ने ‘हम कथा सुनाते’, काव्या एंड ग्रुप ने ‘आरंभ है प्रचंड’, लक्ष्य एंड ग्रुप ने पंजाबी भांगड़ा जैसी प्रस्तुतियां देकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया।


हंसवाहिनी कला मंदिर की संरक्षक डॉ. सुमन चावला ने हंसवाहिनी की गतिविधियों की जानकारी दी। विनोद यादव ने संगीत संबंधित प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम करवाया। कार्यक्रम में बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा ने भी कविता के माध्यम से बच्चों का मनोरंजन किया। मंच संचालन पवन बजाज, करिश्मा गुप्ता, तनिष्का, गीतिका, नव्या, अंशिका, कौशल शर्मा व मानसी महाजनी ने किया। कार्यक्रम में दीक्षा अरोड़ा, प्रवीण वर्मा, मनमोहन शर्मा, मनदीप सिंह, तरुण मोदी व बच्चों के अभिभावक उपस्थित रहे। ममता अरोड़ा ने आभार जताया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि विधायक गणेशराज बंसल थे। अध्यक्षता नगरपरिषद सभापति सुमित रणवां ने की। विशिष्ट अतिथि अधिवक्ता बनवारी लाल पारीक, बेबी हैप्पी एजुकेशन ग्रुप के डायरेक्टर तरुण विजय, लालचंद फूलिया व शिक्षाविद् डॉ. संतोष राजपुरोहित थे। विधायक गणेशराज बंसल ने कहाकि जीवन में संगीत का बड़ा महत्व है। भारतीय संस्कृति में गीतों के बिना कुछ भी नहीं। जन्म से मरण तक गीत की परंपरा है। बच्चा जब जन्म लेता है तो हम मंगल उत्सव मनाते हैं और महिलाएं गीत गाकर खुशी व्यक्त करती हैं वहीं जब कोई व्यक्ति शतायु होकर परलोक सिधारता है तो गांवों में आज भी गीत गाने की परंपरा है। इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को भारतीय संगीत की तरफ रुचि पैदा करें ताकि वे संस्कारवान बन सकें।

सभापति सुमित रणवां, जिला अहिंसा बोर्ड के सह संयोजक तरुण विजय व अधिवक्ता बनवारीलाल पारीक ने भी संगीत के महत्व पर प्रकाश डाला और कहाकि संगीत तो ईश्वर पाने का साधन है। बशर्ते कि इसकी गहराई को महसूस किया जा सके। उन्होंने हंसवाहिनी कला मंदिर के प्रयासों की सराहना की।

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