कुछ तो मर्यादा का मान रख लेते वकील जी!

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गोपाल झा.
हनुमानगढ़ बार संघ के होली स्नेह मिलन समारोह में जो घटना घटी, उसने पूरे वकील समाज को झकझोर कर रख दिया है। पकौड़ा खाने जैसी छोटी-सी बात पर दो वकीलों के बीच शुरू हुआ विवाद अचानक हिंसक हो गया। एक वकील ने अपने सहकर्मी पर प्रहार कर दिया, जिससे उनकी हालत गंभीर हो गई। परिजनों ने आरोपी वकील के खिलाफ जानलेवा हमले की शिकायत दर्ज कराई है। अब सवाल यह उठता है कि क्या कानून के रखवाले खुद कानून की मर्यादा लांघने लगे हैं? क्या उनके लिए धैर्य, संयम और समझदारी के कोई मायने नहीं रहे?
सच तो यह है कि वकालत एक ऐसा पेशा है, जिसमें धैर्य और संयम सर्वाधिक आवश्यक गुण माने जाते हैं। एलएलबी की डिग्री हासिल करने और कानून की बारीकियों को समझने के बावजूद, यदि कोई वकील अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाता, तो वह न केवल अपने पेशे का अपमान करता है, बल्कि समाज में भी गलत संदेश देता है। अदालत में बहस के दौरान वकील कई बार गुस्से से भर जाते हैं, लेकिन वे अपने शब्दों के माध्यम से तर्क देते हैं, न कि हिंसा के माध्यम से।
कुछ भी हा। यह घटना बार एसोसिएशन की छवि को नुकसान पहुंचाने वाली है। किसी बार संघ के सदस्य, जो आमतौर पर न्याय और कानून की रक्षा के लिए खड़े होते हैं, यदि खुद कानून को तोड़ते हैं, तो यह समाज में गलत उदाहरण पेश करता है। इस दाग को मिटाने के लिए संगठन स्तर पर कुछ कदम उठाए जाने चाहिए। मसलन, बार एसोसिएशन को चाहिए कि वह अपने सदस्यों के लिए एक स्पष्ट आचार संहिता बनाए और उसका सख्ती से पालन सुनिश्चित करे। इसमें यह साफ लिखा हो कि कोई भी वकील आपसी विवाद में हिंसा का सहारा नहीं ले सकता। जिन वकीलों के खिलाफ गंभीर अनुशासनहीनता के आरोप लगते हैं, उनकी सदस्यता को निलंबित करने का प्रावधान किया जाए। इससे भविष्य में ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगेगा। बार एसोसिएशन को ऐसे मंचों का निर्माण करना चाहिए, जहां आपसी विवादों को सुलझाने के लिए मध्यस्थता और संवाद की प्रक्रिया अपनाई जाए। वकील अगर खुद ही कानून के सहारे समस्याओं का समाधान नहीं कर पाएंगे, तो फिर आम नागरिकों को कैसे न्याय दिलाएंगे?
होली जैसे आयोजनों में यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी वकील संयम और मर्यादा का पालन करें। आयोजकों को सुरक्षा और अनुशासन का ध्यान रखना चाहिए, ताकि इस तरह की अप्रिय घटनाएं दोबारा न हों।
वकीलों को मानसिक तनाव और गुस्से पर काबू पाने के लिए नियमित कार्यशालाओं का आयोजन किया जाना चाहिए। उन्हें बताया जाए कि पेशेवर जीवन में धैर्य और आत्मसंयम कितना महत्वपूर्ण है। वकील केवल एक पेशे से जुड़े लोग नहीं होते, वे न्यायपालिका के महत्वपूर्ण स्तंभ भी होते हैं। यदि वे स्वयं अनुशासनहीनता का प्रदर्शन करेंगे, तो जनता का कानून से भरोसा उठ सकता है। न्याय का मार्ग सत्य और तर्क पर आधारित होता है, न कि बल और आक्रोश पर। वकीलों को यह समझना होगा कि उनकी भूमिका समाज में अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे न केवल अपने मुवक्किल के लिए लड़ते हैं, बल्कि समाज में न्याय और नैतिकता की स्थापना में भी योगदान देते हैं।
बहरहाल, हनुमानगढ़ बार एसोसिएशन को इस अप्रिय वारदात से सबक लेना चाहिए। उन्हें वकालत की गरिमा बनाए रखने के लिए उचित कदम उठाने होंगे। हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि यह नई समस्याओं को जन्म देती है। वकीलों को आत्मसंयम और संयम का परिचय देना चाहिए, ताकि न्यायपालिका की गरिमा बनी रहे और समाज में कानून का सम्मान बरकरार रहे।

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