आओ, कुटीजां !

डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’
मो. 9414090492

ओ कुटीजां ! कुटीजणै रो ओ नूंतो फगत आम आदमी सारू है। लूंठो कूटीजै कोनी, दूबळै नै कूट्यां मिलै ई के ! लोक राज में बचसी बोई तो कुटीजसी। तो भोळा-स्याणां मिनखौ, देस रै बिगसाव सारू कूटीजण नै कड़तू त्यार करल्यो। बियां त्यार के करणी है, कड़तू तो थारी पैली ई कूड़ेड़ी है, बरसां बरस होग्या गदीड़ खावता। लखदाद है थारी टाट अर कड़तू नै, खाल कुटाणी सोरी कोनी !


कहिजै, ‘‘कूटणो एक कारागिरी है तो कुटीजणो एक तप।’’ इण तप रो सोभाग फगत आम आदमी नै ई मिलै, मोटोड़ा कदेई कुटाई रो परमानंद नीं लेय सकै। जे बान्नै कुटाई रा नफा-नुक्सान ठाह लाग जावै तो थारो हक खुसतां जेज नीं लागै। कूट खायां सरीर ई सावळ रैवै। जे सावळ कुटीजै तो डील रा सै बट-बांयटा निसर जावै। रोज कुटाई मिलणै सूं किणी योग अर कसरत री दरकार नीं रैवै। ‘देगी मिरच रै तड़कै सूं अंग-अंग फड़कै’ का नीं, पण कुटाई सूं तो फड़क्यां ई सरै।


कबीर जी निरमळ सुभाव सारू निंदक राखण री सीख दी है पण कुटेव अर मन रो मैल तो कुटाई सूं ई छूटै। गाभां रै मैल नै ई देखल्यो, थापी सूं कूट्यां पछै लारै रैय तो जावै दिखाण! मैल अर कुबाण सारू कुटाई सूं आछी कोई दवाई कोनी। मा री कुटाई रो तो कैवणो ई कांई, नीं पछै बापूजी रो बरंगो! घणी करो तो गुरूजी री पुरसादी चेतै करल्यो, टाबर कित्तोई कुचमादी होवै, अेकर तो जावण सो लाग ई जावै। सांची बात आ, आपां बित्ता ई सुधरां जित्ता कुटीजां। आ दवाई मिनख भेळै डांगरां पर ई सांगोपांग असर करै। गधियै नै ले ल्यो, बो ई कुटीज्यां काम देवै, नीं पछै धूड़ में पड़îो गळेटी खा बोकरै। दवाई मिल्यां पछै चुसकै ई नीं। कुतियो होवै का मारकणो पाडो, बांदरा होवै का जंगळ रा सेर, कुटाई सूं सै सुधरै। जणाई पुलिस खन्नै आ रामबाण दवाई हर घड़ी त्यार लाधै। आपरै कदेई मचमची उठै तो पिता’र देख लेया। सभ्य समाज में काण-कायदा री रूखाळ सारू कूटणो अर कुटीजणो भोत जरूरी है। कैबत है, ‘भांग मांगै भूंगड़ा, धतूरो मांगै घी/दारू मांगै खूंसड़ा, जी में आवै तो पी।’ दारूड़ियै सारू तो कुटाई संजीवणी रो काम करै। आछो कूटणै सूं मिरच-मसालां रो स्वाद ई बधज्यै, मिनख अर जिनावर री तो बात ई के करां !
बियां कुटाई भांत-भांत री होवै। तन, मन अर धन तीनूं ई न्यारै-न्यारै ढंग सूं कुटीजै। डील री कुटाई सूं बेस्सी पइसै री कुटाई। अेक पइसो कूटै दूजो कुटावै। कॉरपोरेट रै धंधां नै देखल्यो। किणी शोरूम, मॉल का मल्टीप्लेक्स में बड़तां ई आपरी कुटाई चलू ! बड़नो ई जरूरी है, घर रो गाड़ो सावळ गुड़कतो रैवै इण सारू जावणो ई पड़ै। जे टाबर टोळ साथै है तो आपरी कुटाई सावळ होवै। दस रिपियां रा मक्कीदाणा पचास में लेवणा पड़ै, जे टाबरियां ठण्डो पीवण री तेवड़ी, तो बीस आळी कोकोकोला आपरै सौ रो दड़ीड़ देसी। जूनै थियेटर में सागी फिल्म री टिगट सित्तर में लेय’र देख सको, पण मल्टीप्लेक्स में तो ढाई सौ री टाट कुटावणी पड़ै। सूट मुलावो भलंई बूंट, आपरी कुटाई तै है। कॉरपोरेट रा गदीड़ खायां आप चूं ई नीं कर सको…..!


पइसै री कुटाई में राज रो तो कैवणो ई कांई ! बिना थापा मुक्की करîां टाट में कियां दी जावै, आ स्याणप राखणिया ई तो राज करै। बै जच्चौ जणां थान्नै जरका सकै, थारी गोझी में हाथ घाल सकै। थे मूंडो फलको सो करो भलंई, राज नै कुण रोकै ! इण कुटाई री एफआईआर कठैई दर्ज नीं होवै। आप खन्नै कुटीजणै रै सिवा दूजो रस्तो ई कोनी। भांत-भांत रा टैक्स, टैक्स पर टैक्स, फेर सरचार्ज, सैस न्यारा! कुटाई में थोड़ी-घणी कसर रैवै तो डीजल अर पेट्रोल रा बधता भाव रोज अेक थाप चेप देवै। गैस रा सिलेंडर ई अबार दे डुक पर डुक घाल रैया है। बिजळी अर पाणी रै बिल आछै-आछां रा चौसरा चला दिया पण धन है थानै, थे जाबक ई नीं चुसको, सात सिलाम थारै हौसलै नै!


कुटाई तो राजनीति में ई होवै, पण बांरी बातां ई न्यारी! आच्छै भलै मिनख नै ‘पप्पू’ बणा’र इस्यो कूटै कै लाई पांघरै ई नीं। कित्ताई ताफड़ा तोडो़, अेकर झालर बाजी तो बाजी। इण ढाळै री कुटाई में सैं सूं घणो कुटीजै पाल्टी रो कार्यकर्ता। पांच बरस जचा’र कड़तु कुटावै बो, पइसै सूं, टैम सूं, आछी माड़ी बातां सूं। धरणै परदरसणा में उण री गत और घणी माड़ी हो जावै। कांई ठाह कांई-कांई तोलणो पड़ै, कठै-कठै जाजम बिछाणी पड़ै, हथेळîां में थुकाणो पड़ै पाल्टी रै लूंठै गोधां नै! गळै में पटको घाल्यां, जाड़ भिंच्यां बो कुटीज बोकरै, कदास टिगटड़ी हाथ ई आवै तो ! पण टिगट घोषणा रै बगत गदीड़ इस्यो पड़ै कै पलछिण में आंख्यां सामीं अध्ंाारो हो जावै। उण घड़ी फगत गदीड़ री पीड नै पंपोळनै रै सिवा कीं पल्लै नीं रैवै। पण राजनीति तो है ई कुटाई रो दूजो नांव, कोई उछळभाठो लेवै तो सरी!


कुटाई में हथियार ई अेक महताऊ ठौड़ राखै। पारम्परिक हथियारां में बेलण, चींपियो, चप्पल अर झाड़ू हुवै जिका फगत मां रै हाथ में ओपै, लात, हाथ अर डांग नै बापू आपरी मैर में कर राख्या है। यार-भायला तो डुक अर चूंठियां सूं ई काम काढ लेवै, घणी करी तो दग्गड़, भाठा! गुरूजी तड़ो, कामड़ी बरतै तो लूंठा दुस्मी लाठी, तीरकबाण अर तलवार रो जोर मानै, नीं पछै दुनाळी का पिस्तौल।


दुनिया रै बिगसाव भेळै अे हथियार ई बदळिज्या है। नवी तकनीक रै हथियारां में सैं सूं मारक है मोबाइल फोन अर इंटरनेट। आं सूं जचौ जणां किणी भी साधै बुधै री चाल, चरितर अर चौ’रै री कुटाई हो सकै। गदीड़ अर डुक सूं डूंगा घाव देवण री खिमता राखै अे हथियार। जे आपरै नीं जचौ तो ‘हनीट्रेप’ में पज्योड़ै किणी भाइड़ै सूं मिल लेया, ऑनलाइन कुटाई कांई होवै, ठाह लाग जासी। डुक अर गदीड़ सूं मोटा हथियार अबार सीडी अर एमएमएस गिणीजै जिका नेतावां भेळै अलेखूं लोगां नै नागा कर’र इस्या कूट्या कै भळै पांघरîा ई नीं। सूचना क्रांति रै जुग में कुटाई रो ओ निरवाळो काम लगोलग बध रैयो है।


ंबिगसाव री इण गाथा में ‘ब्रांड रा टैग’ ई कुटाई रा नूवां हथियार है, जिकां रै आगै आपणा हाथ मतई पाधरा हो जावै। आपां चाल’र बां खन्नै जावां अर चला’र कुटाई रो नूंतो देवां, भाइड़ो, जरकावो म्हानै! अब कोई आगै मंडै तो बेई बापड़ा के करै, कुटण सारू ई तो बैठ्या है ! बां रै मुजब कुटाई रा टैग मिनख नै भीड़ में अळघी पिछाण दिरावै।
सौ बातां री अेक बात, मिनख हो भलंई पइसा, कूटण रा मजा ई न्यारा। कूटण री सीख तो बरसां पैली चावा-ठावा दूहाकार किरपाराम जी ई दे मेल्ही है-
‘गोला, गण्डक, गुलाम, बुचकारयां बांथां पड़ै
कूट्यां देवै काम, रेरू राखौ राजिया!’
आं में थे किसी ‘कैटेगिरी’ रा हो, कुण जाणै। पण, कांई फरक! थे तो सदांई कूटीजता आया हो। कुटाई रै रोळै कूकै में ‘कैटेगिरी’ ठाह लगावण री बेल्ह कठै! थे तो बस इत्तो चेतै राखो, देस रै बिगसाव सारू थारी कुटाई जरूरी है, थे जित्ता कुटीजस्यो, देस बित्ता पांवडा ई आगै बधसी। इण माइनै में थां सूं मोटो देसभगत कुण ! चुनावी साल में कुटीजण रो नूंतो आयोड़ो है, कुटीजो भई कुटीजो। थारै भेळै दोय चार गदीड़ म्हे ई खास्यां। लखदाद है थारी कड़तू नै, लखदाद है थारी देसभगती नै!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *