डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’
लारलै दिनां आपां देस री आजादी रो उच्छब मनायो. ‘हेत री हथाई’ में आज इणी उच्छब अर मातभौम सारू माथा देवणियां री बात करस्यां. आपणै राजस्थान में बलिदान अर देसप्रेम री बातां पग-पग छेड़ै लाधै. अठै रै लिखारां री कलम किण ढाळै मानवी नै देस प्रेम सिखावै, इणी बात सूं बंतळ नै आगै बधावां-
पाणी रो कांई पीवै रगत पियोड़ी रज्ज
संकै मन में आ समझ घण नह बरसै गज्ज
मरूधरा ! जठै री बेकळू रेत अर भाखरां रो अेक अेक कण वीरां रै रगत सूं तिरपत हुयोड़ो. बादळ ई बरसणै सूं पैलां दस बार सोचौ कै जिकी धरा रगत पीवै बठै म्हारै पाणी रो कांई मोल. मोकळी आंध्यां अर तुफान चालो भलांई, पण इण माटी रो रंग नीं बदळै. अठै रा मानवी मायड़ भौम रै मान सारू रणभौम में मरणै नै त्यूंहार बरोबर गिणै. जलमतै टाबर नै पालणै मायं मरणै री सीख देवणै रा संस्कार और किस्यै ई मुलक रै साहित्य अर संस्कृति में नीं लाधै ?
वंश भास्कर अर वीर सतसई जैड़ा जगचावा ग्रंन्थां रा लिखारा बूंदी ठिकाणै रा राजकवि सूर्यमल्ल मिश्रण रा दूहा सीधा हियै में उतर जावै कै –
इला न देणी आपणी हालरिया हुलराय
पूत सिखावै पालणै मरण बड़ाई में
अर टाबर रै जलम पर मां किण बिध राजी होवै इण री बात सुणो-
हूं बलिहारी राणियां थाळ बजाणै दीह
वीर जीम राजे जणै सांकळ हीटा सींह
जनणी नै सीख देवण री बात ही मरूधरा रा साहितकारां कितरै अनूठै ढंग सूं करी है कै-
जनणी जणै अहड़ा जणै कै दाता के सूर
नींतर रहीजै बंाझड़ी मती गमाजै नूर
मरदां रो मौत उपर हक्क हुवै अर बांरो जीवण थोड़ो ही होवणो चाइजै इसी सोच अठै रै साहित्य में अलेखूं ठौड़ निगै आवै. डिंगल शैली रा लूंठा रचनाकार ईसरदास लिख्यो है कै-
मरदां मरणों हक्क है ऊबरसी गल्लांह
सापुरसां रा जीवणा थोड़ा ही भल्लांह
मरूधरा में मातृभौम रै नेह री इणी भावना नै ध्यान में राखतां थका ई कदास कर्नल टाड नै कैवणो पडयो कै ‘राजस्थान में सायद ही कोई इलाको इसो होवै जठै थर्माेपोली जिसो लड़ाई रो मैदान नीं होवै और लियोनीडास जिस्या वीर पैदा नीं हुया हुवै.’
आजादी सूं पैली भौगोलिक दीठ सूं राजस्थान रो गठन नीं हुयोड़ो हो अर आखो राजपुताणो प्रदेश छोटी मोटी रियासतां में बंट्योड़ो हो. घणकरी रियासतां रा राजा अंग्रेजीराज सूं संधियां कर राखी ही जिण सूं बांरी रियासत में अंग्रेजी राज रो सीधो-सीधो विरोध न हो’र ओळै छान्नै राजगद्दी रै साम्ही शोषण अर अंगरेजी खिलाफत री बातां उठ्या करती जिणां नै राजसी तरीकै सूं दबा दियो जातो. जैसलमेर रियासत में सागरमल गोपा रो बलिदान इण बात री साख भरै.
आजादी रै दौर में पद्य रो चलण बेस्सी हो. गुमेज रै साथ ओ कैवणो चाइजै कै बीं बगत री राजस्थानी कविता कोरी कविता कोनी बा आपरै बगत रो सांचो इतिहास है. यूं तो सगळी सिरिष्टी रो साहित्य आपरी बेळा रो सामाजिक इतिहास हुवै पण राजस्थानी साहित्य तो खरो नै आंख्यां देख्यो भोग्योड़ो जथारथ है. 1857 री क्रांति अर अंग्रेजां रै विरोध री बात करां तो देस री दूजी भासावां में अंगरेज विरोध अर राष्ट्रीयता रा सुर घणा मोड़ा आया दिसै जद कै राजस्थानी साहित्य में ओ सुर अठारवैं सईकै में साफ-साफ निगै आवै. बांकीदास री कविता ‘आयो अंगरेज मुलक रै ऊपर’ इण बात रो प्रमाण है.
बांकीदास लिख्यो है कै-
आयो इंगरेज मुलक रै ऊपर आहंस लिधी खैंच उरां
धणिया मरै नै दिधी धरती धणियां उभां गई परा
बजियो भलो भरतपुर वाळो, गाजै गजर धजर नभ गोम
पहिळां सिर साहब रो पडियो, भड़ ऊभां नह दिधी भोम
आ बात कैंवता गुमेज होवणो चाइजै कै अंगरेजां रै विरोध में आजादी री अलख जगावण री सरूआत राजस्थानी भासा साहित्य में सैं सूं पैली अर सैं सूं साफ है.
बीकानेर रियासत रै बोबासर गांव रा कवि शंकरदान सामौर आपरी रचनांवा में देस भगति अर अंगरेजां रै विरोध में स्वदेस सारू लड़णियां सारू सम्मान रो सुर घणो ऊंचो राखै. नसीराबाद में अंगरेजां री छावणी माथै हमलो कर खजानै सूं दो हजार रिपिया अर सामान लूट’र अंगरेजां री इज्जत मेथी मेलणियै डूंगरजी-जवारजी रै जस नै संकरदान खूब बिड़दायो है.
जीसी बै इळ पर जबर, लडै लेण इधकार
मर मर खड़ा हुवै मरद, लिछमण ज्यूं ललकार
दे धरती निजदुसमणां, जीवत घर आ जाय
दिन खोटो उण देस रो, समझ मरै सरमाय
19वैं सईकै रै सातवें दशक सूं मरूधरा में देस री आजादी री बात घणै सांतरै ढंग सूं उठण लागी जद अठै रा लिखारा आपरी कलम रै ताण जनगण में चेतना जगाई. हिंगलाजदान कविया अर बारहठ केसरीसिंह जिसां कवियां अर क्रांतिकारियां वीरता अर हिन्दुत्व रै गौरव री कवितावां लिखी अर इण मिस बलिदान देवणियां सपूतां नै पर-पूठ जस दिन्हो. केसरीसिंह बारहठ रा लिख्योड़ा चेतावणी रा चूंठिया तो घणा सरावण जोग रया जिणां नै बांच्यां पछै महाराणा फतेहसिंह ब्रिटिश महाराणी री सभा में जावणै रो आपरो मत्तो ई बदळ दियो. बारहठ लिख्यो कै-
पग पग भम्या पहाड़, धरा छोड़ राख्यो धरम
महाराणा मेवाड़, हिरदै बसिया हिन्द रै
घण घलिया घमसाण, राणा सदा रहिया निडर
पेखतां फुरमाण, हलचल किम फतमल हुवै ?
आजादी री जंग सारू जन भासा में जन गीतां रो चलण ई जबरै जोर सूं सरू होयो. आ बात मानणी चाइजै कै लोक माथै तो लोक धुनां अर लोक गीतां रो प्रभाव बेस्सी हुया करै कारणै कै गंभीर भावां अर उण्डै अरथां वाली कविता रो रस आम आदमी नीं ले सकै. इण सारू जन जागरण रा आगीवाण लोगां जिणां में जयनारायण व्यास, हीरालाल शास्त्री, माणिक्यलाल वर्मा, भैरवलाल काळा बादळ, गणेशीलाल उस्ताद, आदि सामल हा, राजस्थानी कविता नै जन जागरण रो सबळो हथियार बणायो अर आजादी री अलख जगाई. हीरालाल शास्त्री री ‘जागो जागो रे जवानां !’ जयनारायण व्यास री ‘ म्हानै ऐसो दिजै राज’ अर भैरव लाल काळा बादळ री ‘ काळा बादल’ बीं बगत री लोक कवितांवा बणी. गिरधारी सिंह पड़िहार, रेवतदान चारण, मोहम्मद सदीक, भरत व्यास जेड़ै साहित्यकारां आपरी कलम सूं लोक नै जगावण वाळी अलेखूं टाळवीं रचनावां लिखी जिकी आज भी राजस्थानी साहित्य में दीवलै ज्यूं जगमगै. गिरधारी सिंह पड़िहार लिख्यो कै-
बुद्ध बिसर्या बिदवान बायरियो अंवळो बयो
मायड़ वाळो मान भोळा भाई भूलग्या
सिख खड्या ही सांझ मोथा मिल्या मिलायदी
बजी मावड़ी बांझ फरजन्द मूंछयांळा फिरै
हक भू भासा हाण जनखां री जामण झूरै
अणहूंतों अणमाप क्यूं जीवो रे कायरां ?
मोहम्मद सदीक लिख्यो कै –
लुळ-लुळ करो सलाम देस री माटी नै प्रणाम करो
जागो जनगण जागो राती घाटी नै प्रणाम करो
जीवै जलमभौम रै खातर प्राण होमतां देर कठै
बलिदानी वीरां सूं सीखो सीस देवणो बात सटै
सदियां जिण पर लेख लिखै उणै पाटी नै प्रणाम करो
रेवतदान चारण डिंगल शैली में आपरी बात यूं राखी कै-
सज्जो अेक संघटट्ण पंथ पलटट्ण राज उलटट्ण आज बढ़ो
मन में मिनखापण नैण सूरापण खांधै खापण मेल कढ़ो
जाणै केहरी गेह सूं आज कढयो जाणै मेह प्रचण्ड तूफान चढयो
जाणै बीज पळापळ मेह चढयो जाणै तीड धरातळ घेर चढयो
जाणै पंछी झपटट्ण बाज चढयो जाणै बीज कड़ंक्कत गाज चढयो
सज्जो अेक संघटट्ण पंथ पलटट्ण राज उलटट्ण आज बढ़ो
मन में मिनखापण नैण सूरापण खांधै खापण मेल कढ़ो
1930 सूं देस री आजादी तांई रो बगत, जद कै आजादी रो आन्दोलन आपरै पूरै उठाव पर हो बीं घड़ी री 1942 में लिखिजी ‘पातल’र पीथल’ कविता रो जिकर करयां बिना आजादी में राजस्थानी साहित्य रै योगदान री बात पूरी नीं हू सकेै. कन्हैयालाल सेठिया जद आ कविता लिखी उण बगत देस में अंग्रेजी राज सूं मुगती पावण सारू गांधीजी रो हेलो ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आखै देस में गूंज रयो हो. आ कविता उण घड़ी इत्ती चावी ठावी बणी कै राजस्थानी रा लूठां विदवान प्रो. नरोत्तम स्वामी इण री दस हजार प्रतियां छपवा’र आखै राजपुताणै री रियासतां में भिजवाई. रावत सारस्वत रै हाथां सूं इण कविता रो अंग्रेजी उल्थो ई हुयो. ‘पातल’र पीथल’ राजस्थान में मातृभौम परेम, स्वाभीमान, गौरव, अठै रै मान सम्मान अर वीरता री भावना नै सांगोपांग ढंग सूं प्रकट करै.
म्हूं लडयो घणो, म्हूं सहयो घणो मेवाड़ी आण बंचावणै नै
म्हूं पाछ नहीं राखी रण में बैरयां रो खून बहावण नै
जद याद करूं हळदीघाटी नैणां में रगत उतर जावै
सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा जावै…
महाराणा प्रताप जद आपरै लाडलै अमरसिंह रै हाथ सूं घास री रोटी मिनकी रै झपट्टै खोसीजती देखै जद वै गळगळा होय’नै अकबर नै आपरै समर्पण रो कागद लिखणै री सोचौ पण कलम रूक जावै कै-
हूं लिखूं कियां जद देखै है आडावळ उंचो हियो लियां
चित्तोड़ खडयो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां
मैं झुकूं कियां है आण मन्नै कुळ रै केसरिया बानां री
हूं बुझूं कियां जद सेस लपट आजादी रै परवानां री..
पण अमरसिंह री बुसक्यां सुण अेक बाप गळगळो होय’नै कागद लिख देवै जिण पर अकबर नै विसवास नईं हुवै और बो इण कागद री परख करण सारू आपरै दरबारी राजपूत राज पिरथीराज राठौड़ नै बुलवावै. पिरथीराज नै इण कागद रै में समूचो रजपूती गौरव जिको फगत महाराणा प्रताप रै ताण अकबर रै साम्ही छाती कर’नै उभ्यो हो, माटी में रळतो लखावै और बीं घड़ी बो अकबर सूं आज्ञा लेय’न इण कागद री परख सारू प्रताप नै लिखै कै-
म्हे आज सुणी है नाहरियो स्याळां रै साथै सोवैलो
म्हे आज सुणी है सूरजड़ो बादळ री ओटां खोवैलो
म्हे आज सुणी है चातकड़ो धरती रो पाणी पीवैलो
म्हे आज सुणी है हाथिड़ो कूकर री जूणां जीवैलो
म्हे आज सुणी है थकां खसम अब राण्ड हुवैली रजपूती
म्हे आज सुणी है म्यानां में तलवार रवैली अब सूती..
पीथल रा आखर पढता ही प्रताप नै चेतो हुवै और बै भळै घणी करड़ाई सूं आ कैय नै अकबर सूं भिड़नै उभ्या हुवै कै-
पीथल के खिमता बादळ री जो रोकै सूर उगाळी नै
सिंहा री हाथळ सह लेवै बा कूख मिली कद स्याळी नै
कूकर री जूणां जीवै इसी हाथी री बाती सुणी कोनी,
धरती रो पाणी पीवै इसी चातक री चूंच बणी कोनी
आं हाथां में तलवार थकां कुण राण्ड कवै है रजपूती
म्यानां रै बदळै बैरयां री छातयां में रैवैली सूती
राखो थे मूंछयां मोड़योडी लोई री नदी बहादयूंला
हूं अथक लडूंला अकबर सूं उजडयो मेवाड़ बसादयूंला…
साहित्यकारां री लोक नै जगावणै री आ खेचळ 15 अगस्त 1947 नै पूरी हुयगी जद कै भारतवर्ष अंगरेजी राज सूं मुगत हुयो. देस में आजादी आयगी पण राजस्थानी साहित्यकारां री दीठ में आजादी घणी महताऊ कोनी बल्कि आजादी नै बणायां राखणी मोटी बात है. इण बात नै चेतावंता थकां ई राजस्थानी रा चावा ठावा कवि कानदान ‘कल्पित’ लिख्यो है –
आजादी खातर मां बैना कांकड़ में बाथंआरूळगी
हथळेवै मैंदी लाग्योड़ी औरां रै हाथां चढगी
नूंवै दिन कामण काळा काग उडांवती ही रैगी
मांवां री बेटा रै खातर पुरस्योड़ी थाळयां रैगी
दोरी घणी आजादी आई सुजग रीजा रै
आजादी रा रूखवाळा सूता मत रीजो रे
आवैला कई मोड़ मारग पर चलता ई रीजो रे
बैंवतां ई रीजो रे….
बातां जद गेड़ चढै ठमै ई कोनी, पण बगत रो कैवणो है कै बाकी बातां आगली हथाई में. आपरो ध्यान राखो, रसो अर बस्सो…