मरदां बिनां बीस कियां पूरा होवै !

डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’.
राजस्थानी में बातां री कमी कठै ! कह रे चकवा रात कटै ज्यूं, रात काटणै सारू ई जठै बातां रा छमका हैए बठै तो पग-पग छेड़ै बात लाधै। बात ई बात सिरखी..। हेत री हथाई में आज आपणै लोक री अेक बात बांचो-
जोगमाया भली करै, किणी गांम में अेक ढाडी रैवतो, जाबक ई आळसी अर कामचोर। भागजोग सूं उण रो ब्याव होग्यो, बगत ढळतां दो टाबर ई जलम्या। उण री जोड़ायत नितुकै घोचो राखती,
’कीं कामकाज करो, कियां गाड़ी चालसी….’
’करस्यां, करस्यां, म्हारै सारू कीं काम लाधण तो दै !’
लुगाई री जात कैवण रै सिवाय करै ई कांई। बो ढाडी छेवट ताना सुण-सुण आखतो होयोड़ो अेक दिन घर छोड़’र निसरग्यो। बरसां तंई अठी-उठी डबकतो रैयो। उण री जोड़ायत मैणत-मजूरी कर दोरा सोरा टाबरिया पाळती रैयी।
कोई बा’रा-ते’रा बरसां बाद ढाडी घरै बावड़्यो। लुगावड़ी केई ताळ तो घणाई रोळारप्पा कर्या। गाळां ई घणी काढी, पण तिरिया जात री रीस कित्तीक ताळ ! टाबर ई राजी होया, बापू घरै आयग्यो।


रात नै धणी लुगाई बाखळ में सूत्या गुरबत करै, ढाडी बूझ्यो-
‘कियां कटी ?’
‘कटी क्यांरी, फगत खेचळ ई पांती ही, कमठाणै तगार्यां ढो-ढो’र टाबरिया पाळ्या है बस।’
‘कीं तो जोड़्यो होवैला, का नीं….?’
भोळी लुगाई, ही जिसी बात बताय दी, ‘हां, कीं अठारा-उगणीस रिपिड़ा तो भेळा करेड़ा है !’
ढाडी कुड़तियै री गोझ सूं अेक रिपियो काढ’र झलायो अर ठसकै सूं बोल्यो-
‘लै झाल, मरदां बिना बीस कठै सूं पूरा होवता ……!
तो इस्या टमरका है राजस्थानी रा !ताऊ शेखावाटी रै सोरठै सूं आज री बात पूरी करां-
दुनिया दोरी दौड़, जो भाज्या बै जीतग्या
पड़्या रैया पळगोड, भाग भरोसै ‘बावळा’
-लेखक सुविख्यात पत्रकार, साहित्यकार, शिक्षाविद् व सामाजिक कार्यकर्ता हैं

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