क्या है ‘हिट एंड रन’ कानून का सच ?

शंकर सोनी.
भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 106(2)के प्रावधानों से खफा होकर ट्रक चालकों द्वारा हड़ताल की गई। नए कानून की पृष्ठभूमि और प्रावधान को समझे। धारा 106 (2) जो कोई भी लापरवाही से वाहन चलाकर किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है, जो गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में आता है, और घटना के तुरंत बाद किसी पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को इसकी सूचना दिए बिना भाग जाता है, उसे किसी भी अवधि के कारावास से दंडित किया जाएगा। जिसे दस साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी देना होगा।


हालांकि इस कानून का कोई औचित्य नहीं है। क्योंकि जब व्यक्ति की मृत्यु ही हो गई तब ड्राइवर द्वारा दुर्घटना की सूचना देने या न देने से क्या फर्क पड़ेगा। अगर यह कानून रहता है तो भी इसका ड्राइवर को होने वाली सजा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
इस धारा में ड्राइवर पर दुर्घटना में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर ही मात्र सूचना देने का दायित्व है। ऐसी सूचना मोबाइल फोन द्वारा या अन्य किसी व्यक्ति के माध्यम से भी दी जा सकती है। केवल सूचना नहीं देने से ड्राइवर की लापरवाही नहीं मानी जाएगी। लापरवाही तो अदालत में सबूतों से साबित होगी तभी मानी जाएगी। हालांकि आज-कल सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही और रात्रि में या सुनसान स्थान पर दुर्घटना होने के बाद दुर्घटना ग्रस्त लोगों को हॉस्पिटल तक ले जाने में सहायता की जानी जरूरी है। इसलिए भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 125 (ं ) और 125 (इ) के साथ सूचना वाला प्रावधान जोड़ा जाता तो इसका महत्त्व दिखाई देता है।


धारा 125 (इ) में लापरवाही से दुर्घटना कर किसी व्यक्ति को चोट और गंभीर चोट पहुंचाने से संबंधित है। अक्सर रात्रि में या सुनसान स्थान पर दुर्घटना होने के बाद दुर्घटना ग्रस्त लोगों को छोड़ कर वाहन भगा ले जाने को हम कैसे उचित कह सकते है। दुर्घटना होने पर घायल लोगों की सहायता करना हमारा नैतिक कर्तव्य है।
इस प्रावधान का विरोध करने वालों की तरफ से यह तर्क दिया जा रहा है कि दुर्घटना के बाद दुर्घटना स्थल पर रुकने से लोग मार पीट करेंगे। अगर लोग मारपीट करते है तो इस तरह मारपीट करना अपने आप एक अपराध है। भारतीय दण्ड संहिता गुलामी के समय बनाई गई थी। उस समय मोटर गाड़ी अंग्रेजों या चंद धनवान लोगों के पास होती थी इसलिए मोटर दुर्घटना में मृत्यु होने पर मात्र दो वर्ष तक की सजा रखी गई थी। आदमी की जान की कीमत बहुत सस्ती रखी गई थी। आजादी के बाद मोटर दुर्घटना से किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने के अपराध की सजा बढ़ाए जाने की मांग की जाती रही है। हमारे देश में कानूनी प्रावधानों का विरोध भी सही ढंग से नहीं किया जाता।


देश में ट्रक ड्राइवरों की जिंदगी बहुत ही दर्द भरी है। उनकी नियमित दिनचर्या गाड़ियों में व्यतीत होती है। वास्तव में लंबी दूरी के ड्राइवरों की नींद भी पूरी नहीं होती। ये लोग अपने माता-पिता व बीवी-बच्चों को कभी समय नहीं दे पाते। ड्राइवरों को चाहिए अपने लिए काम करने की उचित परिस्थितियों की मांग करे।
दुर्घटना में ड्राइवर की मृत्यु होने पर उसके आश्रितों को सरकार या ट्रक मालिक क्या मुआवजा देते है, इस पर विचार होना चाहिए। जब ओटीटी के रूप में रोड टैक्स जमा करवा देते है फिर टोल क्यों लिया जा रहा है इस पर विचार होना चाहिए।
टूटी-फूटी सड़कों के कारण भी दुर्घटनाएं होती हैं, इसकी जुम्मेवारी किस पर हो, इस पर विचार होना चाहिए। केवल कानून बनाने से अपराध कम नहीं होते। आवश्यकता है, आम आदमी में संवेदनशीलता, कर्त्तव्यपरायणता और नैतिकता की। इसके लिए आत्म मंथन और जन जागृति की जरूरत है।
(लेखक जाने-माने अधिवक्ता और नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष हैं)

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