क्यों बदल गए होली के स्वरूप ? जानिए….शहर के प्रबुद्ध लोगों की राय

image description

ग्राम सेतु डेस्क.
होली, रंगों और उल्लास का पर्व, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह त्योहार न केवल मौज-मस्ती का अवसर प्रदान करता है, बल्कि सामाजिक समरसता और एकता का प्रतीक भी है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व हमें आपसी भेदभाव मिटाकर प्रेम और भाईचारे का संदेश देता है। हालांकि, बदलती जीवनशैली और आधुनिकता की दौड़ में होली के उत्साह में कमी देखी जा रही है। इस लेख में हम होली के बदलते स्वरूप, इसके सामाजिक महत्व, और इसे और समृद्ध बनाने के प्रयासों पर चर्चा करेंगे।
होली का त्योहार समाज के हर वर्ग को एक साथ लाता है। यह पर्व हमें पुराने गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे के साथ मिलकर खुशियां मनाने का अवसर देता है। रंगों के माध्यम से लोग अपने मन की भावनाओं को प्रकट करते हैं और आपसी प्रेम को बढ़ावा देते हैं। यह त्योहार हमें सिखाता है कि जीवन में रंगों की तरह विविधता होनी चाहिए, लेकिन वह विविधता एकता में बदलनी चाहिए। आधुनिक जीवनशैली, जिसमें व्यस्तता, तकनीकी प्रगति, और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं का बोलबाला है, ने होली के पारंपरिक उत्साह को प्रभावित किया है। लोग अब सामूहिक आयोजनों से दूर होकर व्यक्तिगत या सीमित दायरे में होली मनाने लगे हैं। शहरीकरण और व्यस्त जीवनशैली के कारण लोग अपने पड़ोसियों और समुदाय से कटते जा रहे हैं, जिससे होली का सामूहिक स्वरूप कमजोर हो रहा है।
क्या हैं होली के बदलते स्वरूप के कारण
राजस्थान प्राइवेट कॉलेज एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्यक्ष तरुण विजय कहते हैं, ‘सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स ने लोगों के बीच भौतिक मिलन को कम कर दिया है। अब लोग ऑनलाइन शुभकामनाएं देकर ही संतुष्ट हो जाते हैं, जिससे व्यक्तिगत मिलन और सामूहिक उत्सवों की संख्या घटी है।’
एडवोकेट बनवारीलाल पारीक के मुताबिक, रासायनिक रंगों के उपयोग से होने वाले स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी समस्याओं के कारण लोग होली से दूरी बनाने लगे हैं।


व्यवसायी हरिराम सैनी कहते हैं, ‘आधुनिकता की ओर बढ़ते कदमों ने पारंपरिक त्योहारों के प्रति लोगों की रुचि कम कर दी है। युवा पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित होकर अपने त्योहारों से दूर होती जा रही है।’
व्यवसायी ओम सोनी होली को जीवंत बनाने पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि रासायनिक रंगों के स्थान पर प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके हम पर्यावरण और स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं। इससे लोग बिना किसी चिंता के होली का आनंद ले सकेंगे।
विप्र फाउंडेशन के जिलाध्यक्ष अश्विनी पारीक कहते हैं कि समुदाय स्तर पर होली मिलन समारोह, सांस्कृतिक कार्यक्रम, और खेल-कूद प्रतियोगिताओं का आयोजन करके लोगों को एक साथ लाया जा सकता है। इससे आपसी संबंध मजबूत होंगे और सामाजिक समरसता बढ़ेगी।

व्यवसायी भरत चावला के मुताबिक, परिवार के सभी सदस्यों को होली की तैयारियों में शामिल करना, जैसे घर की सजावट, पकवान बनाना, आदि, से त्योहार का उत्साह बढ़ता है और पारंपरिक मूल्यों का संरक्षण होता है।
बाल कल्याण समिति सदस्य विजय सिंह चौहान कहते हैं ‘स्कूल और कॉलेजों में होली से संबंधित सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करके युवा पीढ़ी को इसकी महत्ता से अवगत कराया जा सकता है।’
जाट समाज समिति कार्यकारिणी सदस्य कपिल सहारण के मुताबिक, सामाजिक संगठन और एनजीओ द्वारा होली के अवसर पर जागरूकता अभियान, स्वच्छता अभियान, और सामूहिक भोज का आयोजन करके समाज के सभी वर्गों को शामिल किया जा सकता है।
पर्यावरणविद् लाधूसिंह भाटी का कहना है कि होली के दौरान जल संरक्षण, वृक्षारोपण, और स्वच्छता अभियानों का आयोजन करके हम पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं। प्राकृतिक रंगों का उपयोग और जल संरक्षण के माध्यम से हम होली को पर्यावरण के अनुकूल बना सकते हैं, जिससे इसका आनंद और बढ़ेगा।
टाइम्स एजुकेशन ग्रुप के चेेयरमैन डॉ. सागर लढ़ा कहते हैं कि होली का त्योहार हमें सामाजिक एकता और समरसता का संदेश देता है। बदलती जीवनशैली के बावजूद, हमें अपने पारंपरिक त्योहारों को संरक्षित करने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिए।ष्
प्रोपर्टी एडवाइजर इंद्र कुमार सिंधी के मुताबिक, ‘युवा पीढ़ी को होली के सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व से अवगत कराना आवश्यक है। शैक्षणिक संस्थानों में इस दिशा में पहल की जानी चाहिए।’
राजस्थान पूर्वांचल युवा समिति के प्रदेश उपाध्यक्ष संतोष त्रिपाठी के मुताबिक, सामूहिक आयोजनों में सहभागिता से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और सामाजिक संबंध मजबूत होते हैं। होली इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है। होली के माध्यम से हम समाज के वंचित वर्गों को शामिल करके समरसता और समानता का संदेश फैला सकते हैं।
केजी पब्लिक सेकेंडरी स्कूल के डायरेक्टर अशोक सुथार के मुताबिक, होली के पारंपरिक लोकगीत और नृत्य हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। इन्हें संरक्षित और प्रोत्साहित करना आवश्यक है। होली जैसे त्योहार विद्यार्थियों में सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का विकास करने में सहायक होते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *