एसिडिटी से परेशान हैं तो आयुर्वेद को अपनाइए!

image description

डॉ. पीयूष त्रिवेदी.
हम जो खाना खाते हैं, उसका सही तरह से पचना बहुत ज़रूरी होता है। पाचन की प्रक्रिया में हमारा पेट एक ऐसे एसिड को स्रावित करता है जो पाचन के लिए बहुत ही ज़रूरी होता है। पर कई बार यह एसिड आवश्यकता से अधिक मात्रा में निर्मित होता है, जिसके परिणामस्वरूप सीने में जलन और फैरिंक्स और पेट के बीच के पथ में पीड़ा और परेशानी का एहसास होता है। इस हालत को एसिडिटी या एसिड पेप्टिक रोग के नाम से जाना जाता है ।
एसिडिटी के आम कारण होते हैं, खान पान में अनियमितता, खाने को ठीक तरह से नहीं चबाना, और पर्याप्त मात्रा में पानी न पीना इत्यादि। मसालेदार और जंक फ़ूड आहार का सेवन करना भी एसिडिटी के अन्य कारण होते हैं। इसके अलावा हड़बड़ी में खाना और तनावग्रस्त होकर खाना और धूम्रपान और मदिरापान भी एसिडिटी के कारण होते हैं। भारी खाने के सेवन करने से भी एसिडिटी की परेशानी बढ़ जाती है। और सुबह सुबह अल्पाहार न करना और लंबे समय तक भूखे रहने से भी एसिडिटी आपको परेशान कर सकती है।


एसिडिटी के लक्षण: पेट में जलन का एहसास, सीने में जलन, मतली का एहसास, डीसपेपसिया, डकार आना, खाने पीने में कम दिलचस्पी, पेट में जलन का एहसास।
एसिडिटी के आयुर्वेदिक उपचार
अदरक का रस:
नींबू और शहद में अदरक का रस मिलाकर पीने से, पेट की जलन शांत होती है।
अश्वगंधा: भूख की समस्या और पेट की जलन संबधित रोगों के उपचार में अश्वगंधा सहायक सिद्ध होती है।
बबूना: यह तनाव से संबधित पेट की जलन को कम करता है।
चन्दन: एसिडिटी के उपचार के लिए चन्दन द्वारा चिकित्सा युगों से चली आ रही चिकित्सा प्रणाली है। चन्दन गैस से संबधित परेशानियों को ठंडक प्रदान करता है।
चिरायता: चिरायता के प्रयोग से पेट की जलन और दस्त जैसी पेट की गड़बड़ियों को ठीक करने में सहायता मिलती है।
इलायची: सीने की जलन को ठीक करने के लिए इलायची का प्रयोग सहायक सिद्ध होता है।
हरड: यह पेट की एसिडिटी और सीने की जलन को ठीक करता है ।
लहसुन: पेट की सभी बीमारियों के उपचार के लिए लहसून रामबाण का काम करता है।
मेथी: मेथी के पत्ते पेट की जलन दिस्पेप्सिया के उपचार में सहायक सिद्ध होते हैं।
सौंफ: सौंफ भी पेट की जलन को ठीक करने में सहायक सिद्ध होती है। यह एक तरह की सौम्य रेचक होती है और शिशुओं और बच्चों की पाचन और एसिडिटी से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए भी मदद करती है।


आयुर्वेद की अन्य औषधियां
अविपत्तिकर चूर्ण, वृहत पिप्पली खंड, खंडकुष्माण्ड अवलेह, शुन्ठिखंड, सर्वतोभद्र लौह, सूतशेखर रस, त्रिफला मंडूर, लीलाविलास रस, अम्लपित्तान्तक रस, पंचानन गुटिका, अम्लपित्तान्तक लौह जैसी आयुर्वेदिक औषधीयाँ एसिडिटी कम करने में उपयोगी होती हैं लेकिन इनका प्रयोग निर्देशानुसार करें।
एसिडिटी के घरेलू उपचार: विटामिन बी और ई युक्त सब्जियों का अधिक सेवन करें। व्यायाम और शारीरिक गतिविधियाँ करते रहें। खाना खाने के बाद किसी भी तरह के पेय का सेवन ना करें। बादाम का सेवन आपके सीने की जलन कम करने में मदद करता है। खीरा, ककड़ी और तरबूज का अधिक सेवन करें। पानी में नींबू मिलाकर पियें, इससे भी सीने की जलन कम होती है। नियमित रूप से पुदीने के रस का सेवन करें । तुलसी के पत्ते एसिडिटी और मतली से काफी हद तक राहत दिलाते हैं। नारियल पानी का सेवन अधिक करें।


एसिडिटी/अम्लता/पेट व छाती में जलन उपाय:
ठंडे पेयों व चाय, काफी के सेवन से बचें. इनके स्थान पर प्राकृतिक व हर्बल पेय का सेवन करें। गर्म/कुनकुने पानी का नियमित रूप से सेवन करें। मौसम के अनुसार छिटके वाले पके केले, ककड़ी/खीरा व तरबूज का सेवन करें. तरबूज का रस काफी लाभप्रद होता है.। नारियल-पानी-सेवन काफी लाभप्रद होता है.। ठंडे दूध के सेवन से लाभ मिलता है.। रात का भोजन, रात्रिशयन के कम से कम 3-4 घंटे पहले कर लें.। हर एक भोजन की मात्रा कम-कम लिया करें व दिन में प्रत्येक दो भोजनों के बीच का अंतराल 3 घंटे से ज्यादा न रखें.। तीखे मिर्च, मसाले, अचार, चटनी, सिरका व तेल-घी युक्त गरिष्ठ आहार के सेवन से बचें। भोजन करने के आधा/एक घंटे बाद पुदीना की कुछ पत्तियाँ डालकर उबला हुआ एक गिलास पानी पियें। लौंग के एक दाने को चूसने से भी प्रभावी लाभ मिलता है। शकर से बचें. गाँव के देशी गुड़, बादाम, नींबू, व दही आदि का अल्प मात्रा में सेवन करें.। धूम्रपान व अन्य सभी प्रकार के नशे, शरीर एवं रक्त में एसिडिटी को तेजी से बढ़ाते हैं अतः इनका सेवन न करें। लोंग, अदरक, छोटी हर्ड़ आदि चूसने से मुँह में बनने वाला सेलाईवा (लार) जलन में काफी लाभप्रद होता है। अदरक व शहद का सेवन जिस रूप में भी हो सके नियमित रूप से करना चाहिये। अन्न, घी-तेल व बारीक पिसे हुये आहार की तुलना में हरी साग-भाजी, सलाद, फल व मोटे/दरदरे आहार को वरीयता देना चाहिये। एसिडिटी की हालात में तुरंत लाभ लेने हेतु 4 से 6 गिलास गरम पानी पीकर उल्टी करें. यह क्रिया तब तक दोहराएँ जब तक कि उल्टी में खट्टा पानी आना बंद न हो जाए। ध्यान रखें, जिन्हें हृदयरोग, उच्चरक्तचाप व पेट में अल्सर की शिकायत हो उन्हें वमन-क्रिया (उल्टी) नहीं करना चाहिए।
-लेखक राजकीय आयुर्वेद औषधालय शासन सचिवालय जयपुर में पदस्थापित हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *