हेत री हथाई: बात मारवाड़ रै पांच पीरां री !

रूंख भायला.
‘पाबू हड़बू रामदे, मांगळिया मेहा
पांच देव पधारजो, गोगाजी जेहा’
राजी राखै रामजी ! ‘हेत री हथाई’ में आज बात मारवाड़ रै पांच पीरां री। अे पीर किस्या ? बै सिद्ध पुरस, जिका घर-घर पूजीजै, बै सिद्ध पुरस, जिका लोककल्याण सारू आपरी जियाजूण होम दी, बै सिद्ध पुरस, जिका धरम अर मरजादा रै नेम कायदां सूं बंध्या रैया पण आपरी आण नीं छोडी, बै सिद्ध पुरस, जिकां नै याद करतां थकां आपां जागण जम्मा लगावां, बै सिद्ध पुरस जिका आपरी सगति अर सिद्धियां सूं आज भी आपणी सहाय करै। नमो है धोरां री धरती नै, नमो है आं लोकदेवां नै !

केसरीसिंग बारहठ रो अेक दूहो चेतै आवै, ‘जळ ऊंडा, थळ ऊजळा नारी नवलै वेस/पुरस पटाधर नीपजै अइयो मुरधर देस।’ पटाधर सिंघ नै कैवै, आपणा लोकदेव ई सिंघ सरीखा सूरमा, जिकां गाय अर लोक री रूखाळ सारू आपरा प्राण होमतां जेज नीं लगाई। आं लोकदेवां में तेजोजी, देवनारायणजी, इलोजी, तल्लीनाथ जी, मल्लीनाथ जी, भौमियोजी, फताजी, मामदेवजी, भूरियो बाबो, केसरो कंवरजी, हरिरामजी जी, जुंझारजी, बिग्गोजी, रूपनाथ जी आद ठावा नांव है, जिका ठौड़-ठौड़ पूजीजै। पण मारवाड़ रै पांच लोकदेवां री महिमा सैं सूं न्यारी, मारवाड़ रा अे पांच पीर आपणा रिछपाळ कहीजै। तो पछै हथाई में आज आं पांच पीर पाबूजी, हड़बूजी, रामदेवजी, मेहाजी मांगळिया अर गोगोजी रै बाबत ई कीं बंतळ करां। ।

पाबूजी
पाबूजी लिछमणजी रा औतार मानीजै। ऊंटां रै देवता रै रूप में बांरी महिमा न्यारी। कहीजै, सिंध प्रांत सूं मुरधर देस में सैं सूं पैली बै ई ऊंट लेय’र आया। राइका अर रब्बारी जाति रा लोग पाबूजी रा जागण जम्मा लगावै। बांरै जम्मा में फड़ बांचीजै। कपड़ै पर कोर्याेड़ी अेक चितराम कथा, जिण नै फड़ कहीजै, उण रै बांचणै री कळा ई खासा अनूठी। रात रै बगत जम्मै में पाबूजी रा भोपा अर भोपी फड़ बांचौ तो अेक न्यारो ई आनंद आवै। पाबूजी रा भजन ‘पवाड़ा’ रै नांव सूं ओळखीजै।

पाबूजी रो जलम 1239 इस्वी में राव सिहा रै वंस में फळौदी रै नेड़ै कोळूमंड गांम में होयो हो। बां रा पिता धंधाळजी राठौड़ अर मा कमलदे ही। अमरकोट रै सोढा राजपूत सूरजमल री बेटी सुप्यारदे सूं बांरो ब्याव मंड़्यो हो। केसरकाळवी बांरी घोड़ी रो नांव हो। पाबूजी उंटां अर गायां रा रूखाळ देव गिणीजै। ब्याव रा फेरा ई बिच्चाळै छोड़ पाबू जी देवल चारणी री गायां बचावण सारू आपरै सागी बनेई जिंदराव खीची सूं जा भिड़्या अर फौत होया। बांरो समाधि स्थल देचू गांम में है। हर बरस चौत री मावस नै कोळूमंड में पाबूजी रो मेळो भरै जठै हजारूं जातरू पूगै।

हड़बूजी
हड़बू जी री मानता ई खासी है। मनोकामना पूरीजणै सारू भगत ‘हड़बूजी री गाडी’ नै पूजै। अे ई जबर लड़ाका, बचनां रा साचा, भविस बांचणियां अर सिद्ध पुरूस हा। बां रो जलम नागौर जिलै रै भूंडेला गांम में होयो। जाति सूं सांखळा राजपूत हा। बै रामदेवजी रा मौसियाई अर गुरू योगी बालीनाथ रा चेला हा। रामदेवजी रै कैवण सूं ई बां अस्तर-सस्तर त्याग दिया। राव जोधा नै हड़बूजी री आसीस फळापी अर बां भळै जोधाणै रो राज पायो। इण पछै हड़बूजी नै फळौदी सारै बेगूंटी गांम दिरीज्यो जठै रैय’र बा तपस्या करी। मारवाड़ रै पांच पीरां में हड़बूजी रो नांव घणी सरधा सूं लियो जावै।

रामदेवजी
रामसा पीर री महिमा रो कांई बखाण..। बान्नै तो ध्यावै आखो मारवाड़, आखो गुजरात, हिंदू अर मियां दोनूं अेक भाव सूं रामदेवजी री पूजा करै। कहीजै के मक्का मदीनै सूं आयोड़ै पांच मौलवी पीरां आं री परीक्षा ली, रामसा रो चमत्कार देख बै ई बांरा चेला बणग्या। बां सूं मोटो किस्यो पीर ! आज ई रामसा पीर रै परचां रा घणाई चमत्कार सामीं आबो करै।

1352 इस्वी में बाड़मेर रै उंडू कासमीर गांम में भादवै री दूज रै दिन अजमलजी तंवर अर माता मैणादे रै घरां जलमिया रामदेवजी चमत्कारी पुरूस हा। सुगणा अर लाछां भेळै बां रै धरम री बैन डाली बाई ही। बां री जोड़ायत राणी नेतलदे ही जिण नै बै फेरां में परचो दियो। बां रा गुरू योगी बालिनाथ हा। जात-धरम सूं अळघा रैवणिया रामदेवजी दलित उद्धारक रै रूप में जाणीजै। संवत् 1412 में रामदेव जी रामदेवरै में जींवत समाधि ली ही जिण रै पछै बां रो समाधिस्थल अेक धाम बणग्यो। मारवाड़ में आज री घड़ी सैं सूं मोटो मेळो बाबै रामदेवजी रो ई भरीजै। भादवै री दूज मारवाड़ में ‘बाबै री बीज’ नांव सूं ई ओळखीजै जिण रै पछै दस्यूं तंई लगोलग लाखूं जातरू रामदेवरै आवै। रामदेवजी रै जागणां में ‘तेराताळी’ नांव रो नाच होवै जिण नै कामड़िया जमात री लुगायां बैठे-बैठे करै। रामदेव जी री धजा नै नेजा कहीजै।

मेहाजी मांगलिया
मेहाजी मांगळिया रो जलम बापणी गांम मे होयो बतावै। जाति सूं मांगळिया राजपूत हा। अे धरम अर मरजादा रा रूखाळा हा। नानेरै में पाळ्या पोखिज्या। गरीब गुरबै अर निबळै री सहाय करणिया मेहाजी जैसलमेर रै राजा रणकदवे भाटी सूं जूझता थकां वीरगति पाया। आं रो घोड़ो ‘किरड़ काबरो’ नांव सूं ओळखीजै। भादवै री किरसण जल्मआठ्यूं नै आं रो मेळा भरीजै। मारवाड़ रै पीरां में आं रो जस गाइजै।

गोगाजी
‘गोगै जी नै ध्यावै ज्यांरा दुख मिट जावै’। आं रो जलम चूरू जिलै रै ददरेवा गांम में वि.स. 1003 में भादवै री नम्यू नै होयो। आं रा पिताजी जेवरसिंग अर मा बाछलदे ही। गोगोजी चौहान राजपूत हा। कोलूमंड री राजकंवरी केमलदे आं री जोड़ायत ही। गायां री रूखाळ सारू गोगो जी महमूद गजनवी साथै जाय भिड़्या। रणभौम में बां रो रौद्र रूप देख गजनवी बान्नै ‘जाहरवीर’ नांव दियो। बां रै कन्नै नीली घोड़ी ही जिण नै लाड सूं बै बाप्पा कैया करता। गोगोजी नागां रै देवता रै रूप में पूजीजै। खेजड़ी रै दरखत हेठै बांरी मेड़ी बणाय’र पूजा करीजै। आज भी गांवां में सरपदंस होवै का पान लागै तो लोग मेड़ी जाय’र गोगै जी सूं अरदास करै। गोगै जी धजा धौळी होवै। बिरखा रै पछै खेत में हळ जोड़नै सूं पैली गोगै जी रै राखड़ी बांधीजै जिण में नौ गांठां लगावण री रीत है। कहीजै, रणभौम में जठै बांरो सीस पड़्यो उण जिग्यां नै सिरमेड़ी (ददरेवा) अर धड़ री जिग्यां धुरमेड़ी (गोगामेड़ी) बणी। रखपुन्यू रै पछै गोगानम्यू आवै, उण दिन समचौ उत्तर भारत मे गोगै री ध्यावना होवै। गोगै जी री आराधना में डेरूंवां रा जागण लागै। हड़मानगढ जिलै रै गोगामेड़ी गांम मोटो धाम है जठै, यूपी, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा अर हिमाचल तकात सूं जातरू आवै।

मारवाड़ रै पीरां री देस-दुनिया पर किरपा बणी रैवै, जिस्या बै आपां नै तूठै, बिस्या सब नै तूठै। बाकी बातां आगली हथाई में। आपरो ध्यान राखो, रसो अर बसो..!

-लेखक हिंदी और राजस्थानी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं

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