रेत के समंदर में जीवन की बूंद!

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गोपाल झा.
पंजाब और हरियाणा की सीमा पर स्थित हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जिले कभी मरुस्थल की गोद में सूखते हुए इलाके थे। पानी यहां सुनहरी उम्मीद की तरह था, जो कभी वर्षा के रूप में, तो कभी किसी दूर-दराज तालाब के सहारे जीवन की आस जगाता था। बुजुर्ग बताते हैं, आजादी के बरसों बाद भी हनुमानगढ़ जंक्शन में 15-20 दिन के दौरान टैंकर से पानी आता था। रेलवे स्टेशन पर बाल्टी और घड़े लेकर लोग लाइन में लगते थे। जैसे ही टैंकर आता, मानो खुशी की लहर दौड़ जाती। महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग सब के सब पानी भरने की आस में खड़े हो जाते। पानी को संभालकर रखना किसी खजाने की रखवाली से कम न था।
समय ने करवट ली। इंदिरा गांधी नहर (राजस्थान नहर) का आगमन हुआ और सूखी रेत पर हरियाली का सपना साकार होने लगा। श्रीगंगानगर जिले को ‘राजस्थान का पंजाब’ कहा जाने लगा। हनुमानगढ़ और आसपास के इलाकों में भी खेती ने रफ्तार पकड़ी। सरसों, गेहूं, कपास और गन्ने की फसलें लहलहाने लगीं। लेकिन…!
वर्तमान में फिर से पानी की किल्लत का खतरा मंडराने लगा है। नहर में पानी की आपूर्ति पहले जैसी नहीं रही। भूजल का स्तर भी लगातार नीचे जा रहा है। चार दिन वाटरवर्क्स से सप्लाई रुकते ही टैंकर वालों की गुहार शुरू हो जाती है। याद आता है वो दौर जब घड़े में पानी बचाने के लिए हम सब मिलकर छोटे-छोटे प्रयास करते थे। आज वही आदतें और वही अनुशासन दोबारा अपनाने की जरूरत है।
जल संरक्षण क्यों जरूरी है?
पानी सिर्फ आज की जरूरत नहीं, ये हमारी अगली पीढ़ियों का भी हक है। यदि आज हम इसे बचाएंगे तो कल हमारी आने वाली पीढ़ी को पानी के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ेगा। हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर जैसे कृषि प्रधान जिलों में पानी की कमी का मतलब है, भोजन की कमी। अगर समय रहते जल संरक्षण नहीं किया गया, तो ये क्षेत्र फिर से सूखे की चपेट में आ सकते हैं। भूजल का अत्यधिक दोहन और पानी की बर्बादी पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रही है। नदियों, झीलों और तालाबों का सूखना जीव-जंतुओं के लिए भी खतरे की घंटी है।
पानी की छीजत रोकने के उपाय
किसानों को ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई की ओर बढ़ना होगा। इससे फसलों को जरूरत भर पानी मिलेगा और बर्बादी रुकेगी। घरों, स्कूलों और सरकारी संस्थानों में वर्षा जल संचयन अनिवार्य किया जाए। हर बूंद को सहेजना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। गांवों के पुराने जोहड़, तालाब और बावड़ियों को फिर से जिंदा करना होगा। ये न सिर्फ भूजल स्तर बढ़ाएंगे, बल्कि जल संकट के समय संजीवनी का काम करेंगे। कम पानी में उगने वाली फसलों को प्राथमिकता दी जाए। स्कूलों और कॉलेजों में जल संरक्षण को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए।
आदतों में सुधार की जरूरत
नल खुला छोड़ देना, बर्तनों को बहते पानी में धोना या वाहन धोते समय पाइप का उपयोग करना… ये सब पानी की बर्बादी है। हमें अपनी दिनचर्या में छोटे-छोटे बदलाव लाने होंगे। गांवों में पहले घड़े का पानी दो-तीन बार इस्तेमाल होता था। नहाने का पानी पौधों में दिया जाता और बचा हुआ पानी जानवरों के काम आता। इन पारंपरिक आदतों को फिर से अपनाना होगा। बच्चों को पानी की अहमियत समझाना जरूरी है ताकि वे बचपन से ही जल संरक्षण की आदत डाल सकें।
पानी बचाने की कहानी!
जब हम सब मिलकर छोटे-छोटे प्रयास करेंगे, तभी हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जैसे इलाके फिर से पानीदार बने रहेंगे। ‘जल है तो कल है’, ये सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और जीवनशैली का हिस्सा बनना चाहिए।
आज जब मैं हनुमानगढ़ की गलियों से गुजरता हूं और बच्चों को नहर किनारे खेलते देखता हूं तो मन में एक ही सवाल उठता है, क्या हम इन्हें वो भविष्य दे पाएंगे, जिसमें पानी की हर बूंद का मोल समझा जाएगा? अगर हां… तो ये नहरें और तालाब हमारी अगली पीढ़ी को वही खुशियां दे पाएंगे, जो हमें कभी टैंकर की हर बूंद में महसूस होती थीं ?

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