



डॉ संतोष राजपुरोहित.
कृषि प्रधान देश में भले किसान खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हों लेकिन अर्थशास्त्र के जानकार इसकी उपेक्षा से क्षुब्ध हैं। इसका ताजा प्रमाण भुवनेश्वर के कीट विश्वविद्यालय में भारतीय आर्थिक परिषद के तीन दिवसीय संगोष्ठी में देखने को मिला। कार्यकारिणी सदस्य के रूप में मुझे भी शिरकत करने का मौका मिला। इसमे देश विदेश के विख्यात अर्थशास्त्रियों को सुनने और जानने का मौका मिला। प्रमुख रूप से योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ मोंटेक सिंह आहलूवालिया, तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के आर्थिक सलाहकार समिति के सदस्य प्रोफेसर पुलिन बी नायक, प्रधानमंत्री सलाहकार समिति की सदस्य प्रोफेसर आशिमा गोयल, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य आर्थिक सलाहकार प्रोफेसर देबा प्रशाद रथ सहित अनेक सुविख्यात अर्थशास्त्रियों ने अपनी बात रखी।

कॉन्फ्रेंस के एक सत्र का आयोजन भारतीय कृषि से संबंधित था। इसमे विभिन्न चर्चाओं से जो निष्कर्ष सामने आया वो आज मैं आप लोगो से साझा करना चाहता हूँ।
भारतीय अर्थव्यवस्था प्राचीन काल से ही कृषि प्रधान रही हैं। आज भी लगभग 58 फीसदी लोग कृषि पर निर्भर हैं। लेकिन जीडीपी में कृषि का योगदान निरन्तर कम हो रहा हैं। जहां 1990-91 में कृषि का जीडीपी में योगदान लगभग 35 फीसदी था 2022-23 में यह घटकर 15 फीसदी रह गया हैं। इसका एक मुख्य कारण कृषि में वांछित सुधार बड़े पैमाने पर नही होना हैं। यह विडम्बना ही हैं कि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में देश मे कभी भी एग्रीकल्चर ग्रोथ रेट 4 फीसदी से ज्यादा नही रही।
केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए तीन महत्वपूर्ण कृषि बिल भी अविश्वास और तकनीकी खामियों के कारण वापिस लेने पड़े।
हालांकि यह कृषि बिल पूर्णतया सही हो मैं ऐसी कोई वकालत नही करता लेकिन किसान प्रतिनिधियों और सरकारों को बहुत जल्द कृषि सुधारांे के लिए आगे आना चाहिए। जो पूर्णतया पारदर्शी हो, भविष्य में एग्रीकल्चर ग्रोथ रेट बढ़ाने वाले हो। आज की एक कड़वी सच्चाई यह भी हैं कि सबसे ज्यादा छिपी हुई बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में हैं। विपरीत मानसून में नकदी फसलों की बर्बादी किसानों की आत्महत्या का मुख्य कारण रहा हैं।
दूसरा पक्ष यह भी हैं कि 2013-19 में किसानों की आय में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई वहीं उनके कर्जे में 58 फीसदी का इजाफा हो गया। कृषि लागत बढ़ना सहित अविवेकपूर्ण खर्च इसका मुख्य कारण रहा। भारत मे कुल आत्महत्याओ का 11.2 फीसदी किसान वर्ग हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की एक रिपोर्ट्स के अनुसार भारत मे रोज़ाना 154 किसान-मजदूर आत्महत्या कर रहे हैं। यह किसी भी सरकार और सभ्य समाज के लिए चिंताजनक होना चाहिए।
-लेखक राजस्थान आर्थिक परिषद के अध्यक्ष रहे हैं