
ग्राम सेतु ब्यूरो.
राजस्थान कैडर के सीनियर आईएएस ऑफिसर डॉ. कृष्णकांत पाठक ‘दार्शनिक अफसर’ के तौर पर जाने जाते हैं। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। साहित्य पर इनकी मजबूत पकड़ है। जब देश का अधिकांश हिस्सा कड़ाके की ठंड की चपेट में हो, कई दिनों तक लोगों को सूर्यदेव के दर्शन तक नहीं होते हों तो ऐसे समय में डॉ. कृष्णकांत पाठक की यह कविता पाठकों को गर्मी का अहसास करवाएगी। पढ़िए….डॉ. कृष्णकांत पाठक की यह खास कविता……
मैं सूरज हूँ, आग बाँटने आया हूँ।
बहुत शिशिर है, शीत मेटने आया हूँ।।
धूप जहाँ होगी, रौशन होगी,
सहमों में कुछ गुनगुन होगी।
मुर्दों में बिखरे प्राण समेटने आया हूँ।।
नभ पर बादल का बना बिछौना,
रात जहाँ घूमता चंदा-सा मृगछौना।
दिवस बिता थक वहीं लेटने आया हूँ।।
जहाँ पतंगें कभी पहुँचना चाहें,
वे भी कुछ गति पवन की थाहें।
साँझ के माँझे साथ लपेटने आया हूँ।।
जो भी उदित हुआ, अस्त भी होना है,
जो पाया दिवस से, रात उसे खोना है।
काश कि जाये कह मैं तुझे भेंटने आया हूँ।।
जाऊँगा, कुछ लेकर भी तो जाऊँगा,
पर पहले तेरे चंद्र को लेकर आऊँगा।
जो कहे, मैं चंदा हूँ, संताप बाँटने आया हूँ।
जो ताप सहा तूने, उसे ही मेटने आया हूँ।।