मिट्टी दी खुशबू: कागा सब तन खाइयो

राजेश चड्ढ़ा.
पंजाबी सूफ़ी कविता सदियाँ पुरानी अजेही परंपरा है जिसने अपने पाठकां अते श्रोतेआं नू ब्रह्म प्यार दी सुंदरता अते मिलाप दे आनंद नाल प्रेरित कीता है। एह आध्यात्मिकता दे इक अन्जान रस्ते तों शुरू हुँदी है अते प्रेम दे रहस्यमयी क्षेत्राँ विच लै जाँदी है। जित्थे भाषा दा वजूद खत्म हो जाँदा है अते सिर्फ़ आत्मा ही बोलदी है। एह इक अन्जान दुनिया दी खोज है जो सिर्फ़ ढूँगी या अर्थ तों वध कुज होर प्रदान करदी है। अपने ढूँगे फ़लसफ़े दे नाल, एह जीवन दा इक अजेहा तरीका पेश करदी है जो इक परेशान मन लयी मरहम दा काम कर सकदा है। एह इक अजेही परंपरा है जो इक पीढ़ी तों दूजी पीढ़ी तक चली आ रही है। दर असल पंजाबी सूफ़ी कविता परमात्मा दी याद ते आधारित है अते साधना दा इक रूप है।
मनेया जाँदा है कि 12वीं सदी तों चली आ रही इस सूफ़ी कविता ने उर्दू अते फ़ारसी कविता नू प्रभावित कीता है। एह रवायती तौर ते पँजाबी विच लिखी गई सी, पर एह इक पीढ़ी दर पीढ़ी चलन वाली परंपरा है, इस वजहों इस विच कुज अपवाद वी हन।
सूफ़ीवाद इक रहस्यवादी परंपरा है जो परमात्मा नाल प्रेम अते मिलाप दी प्राप्ति ते जोर दिंदी है। ‘सूफ़ी’ शब्द इक मशहूर अरबी शब्द ‘सूफ़’ तों आया है, जिसदा अर्थ है ‘उन’ (पश्म) या सिर्फ़ गरीबी दे हालात विच रहन वाले लोक। एह ऐसे लोक हन जिन्हां ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा लयी, अपने आप नू समर्पित करन लयी, दुनियावी सुख अते भौतिक दौलत नू त्याग दिता है।
पंजाबी विच बहुत सारे सूफ़ी कवि हन। उन्हां सारेयाँ ने लोकाँ नू उन्हां दियाँ आत्मावाँ तो जानू करवौन अते उन्हां नूं अपने आप दे नाल-नाल परमात्मा वलों शांति प्राप्त करन विच मदद करन लयी काव्य रचेया। बाबा गुलाम फ़रीद सब तों मशहूर पंजाबी सूफ़ी कवियाँ विचों इक हन, पर एह इकल्ले अजेहे कवि नहीं हन जिन्हां दियाँ गल्लां नूं पसंद कीता जाँदा है। बाबा बुल्ले शाह, मियाँ मीर, मियाँ मुहम्मद बख्श, सुल्तान बाहु वी बहोत मशहूर पंजाबी सूफ़ी कवि हन।
उन्हां दियाँ साहित्यिक रचनावाँ दे कारण, हज़ारों लोक उन्हां दा अनुसरण करदे हन। सानू आज वी आधुनिक समाज विच उन्हां दी महान सूफ़ी कवितावाँ दी झलक मिल सकदी है। पंजाबी सूफ़ी कविता मनुखी प्रेम अते ब्रह्म प्यार दे असल अर्थां प्रति साढियाँ धारणावां अते समझ नूं चुनौती दिंदी है। एह सानू याद दिवौंदी है कि सारा प्रेम पवित्र है अते भावें असीं किने वी वखरे होइये, असीं परमात्मा विच ही यकीन करदे हाँ।
पंजाबी सूफ़ी कवियाँ नू, आम लोकां दी भाषा विच लिखन लयी जानेया जाँदा है।
सूफ़ी कवि प्रतीकात्मकता अते अलंकारां राहीं अपने अर्थां नू ढूँगा करदे हन।
सूफ़ी कवि साढे़ रोज़ाना दे जीवन विच परमात्मा दी मौजूदगी नू पछानदे हन अते इस लयी अजिहां कवितावां रचदे हन जो परमात्मा दा रस्ता दिखौंदियाँ हन।
सूफ़ी मनुखता अते कुदरत दे रिश्ते नू वी चंगी तरहां समझदे हन। पंजाबी सूफी परंपरा विच कवि इक खोजी अते मार्गदर्शक दोवें है। पंजाबी सूफी कविता सिर्फ़ सुंदर ही नहीं एह भरपूर जानकारी नाल भरी होई वी है।
सूफ़ी संत कवि बाबा फ़रीद ने परमात्मा दे विछोड़े विच केहा है-
‘कागा सब तन खाइयो, चुन-चुन खाइयो माँस।
दोई नैना मत खाइयो, पिया मिलन की आस।’
हे काग शरीर दे हर हिस्से तों माँस खा लयीं पर अक्खाँ तों नहीं, क्योंकि मौत तों बाद वी प्रभु नू मिलन दी उम्मीद इन्हां अक्खाँ विच ज़िंदा ही रहेगी।
-लेखक जाने-माने शायर और आकाशवाणी के पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक हैं

One thought on “मिट्टी दी खुशबू: कागा सब तन खाइयो

  1. सूफ़ी कविताओं की विशिष्टता का बखूबी वर्णन किया है आपने भाई साहब 🙏🏻😊

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