



ग्राम सेतु ब्यूरो.
विश्व प्रसन्नता दिवस पर जब दुनिया खुशियों का संदेश बांट रही थी, तब हनुमानगढ़ में एसबीआई बैंक के पूर्व कर्मचारी जैनेंद्र कुमार झांब ने एक अलग ही अंदाज में अपना विरोध दर्ज कराया। लंबे अरसे तक बैंक को अपनी सेवाएं देने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले झांब ने अपने हक की लड़ाई में गांधीवादी रास्ता अपनाया। झांब ने गुरुवार यानी 20 मार्च को सुबह जंक्शन में धान मंडी स्थित एसबीआई की शाखा के सामने हाथ में एक पर्चा लेकर खड़े होकर शांतिपूर्ण तरीके से अपना विरोध दर्ज कराया। पर्चे में उन्होंने अपने एक पूर्व अधिकारी पर गंभीर आरोप लगाए। झांब कहते हैं, ‘हक मांगना अपराध नहीं है, लेकिन मेरा हक देने से क्यों कतरा रहे हैं? कर्मचारी की इज्जत करना बैंक का फर्ज है, लेकिन मुझे अपमान का घूंट क्यों पीना पड़ा?’ उनके हाथ में जो पर्चा था, उसमें लिखा था-‘भारतीय स्टेट बैंक प्रबंधन कृपया बताए कि क्या 2019-20 में भारतीय स्टेट बैंक में लिपिकीय कर्मचारियों को क्रास सेलिंग टार्गेट देने का नियम था? श्री दिनेश जी. वर्मा ने 2019-20 में हनुमानगढ़ एजीएम रहते हुए पचास लिपिकीय कर्मचारियों को सोशल मीडिया पर क्रास सेलिंग का टार्गेट जारी किया था, क्या यह भारतीय स्टेट बैंक के अधिकारियों की सेवा शर्तों का उल्लंघन है? क्या लिपिकीय कर्मचारियों पर यह टार्गेट नियम विरुद्ध आरोपित किया गया था? यदि उल्लंघन है और इस संदर्भ में यदि भारतीय स्टेट बैंक ने अधिकारी सेवा नियमों के अंतर्गत श्री वर्मा के विरुद्ध कोई कार्रवाई की तो कृपया उसका विवरण उपलब्ध कराएं। क्या आज भी बैंक में सेवारत निरीह लिपिकीय कर्मचारियों को सोशल मीडिया पर ऐसे टार्गेट जारी किए जाते हैं?’ खास बात है कि झांब ने अपने विरोध को अहिंसक और शांतिपूर्ण बनाए रखा। उन्होंने किसी को बाधा नहीं पहुंचाई, बल्कि बस चुपचाप पर्चा लेकर खड़े। उनका कहना था-‘मैंने बैंक को अपनी जिंदगी के कई साल दिए, लेकिन जब अधिकार की बात आई तो नजरअंदाज कर दिया गया।
सहकर्मियों ने जताई सहानुभूति
झांब के इस अनूठे विरोध को देखकर कई पूर्व सहकर्मियों ने उनसे आकर सहानुभूति जताई और उनकी बात को जायज ठहराया। एक सहकर्मी ने कहा, ‘झांब जी ने हमेशा ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से काम किया है। पहले उन्होंने खुद के लिए सत्याग्रह किया अब बाकी कर्मचारियों के स्वाभिमान के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकी बात जायज है, बैंक को इसे जल्द से जल्द सुधारना चाहिए।’ जानकारी के मुताबिक, झांब पहले भी अपनी सेवा के दौरान कुछ वित्तीय लाभ और प्रोन्नति से जुड़ी मांगों को लेकर बैंक प्रबंधन पर निशाना साध चुके हैं। उन्होंने कई बार बैंक प्रशासन को पत्र भी लिखे, लेकिन जब बात नहीं बनी तो उन्होंने गांधीवादी रास्ता अपनाने का फैसला किया था।
झांब का संकल्प
जैनेंद्र कुमार झांब ने कहा कि यदि बैंक उनकी बात नहीं सुनता, तो वे आगे भी अहिंसक तरीके से अपना विरोध जारी रखेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वह केवल अपना हक मांग रहे हैं और इसे पाने के लिए किसी भी तरह का अनुचित कदम नहीं उठाएंगे। काबिलेगौर है, जहां एक ओर पूरी दुनिया विश्व प्रसन्नता दिवस पर खुशियां मना रही थी, वहीं झांब का यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन यह संदेश दे गया कि प्रसन्नता तभी सार्थक है जब इंसान को न्याय मिले और उसके अधिकारों की रक्षा हो। झांब के इस गांधीवादी विरोध ने लोगों का ध्यान खींचा और उनके संघर्ष को नई धार दी।



