पुण्य की राह में व्यवस्था का साथ

डॉ. एमपी शर्मा.

गर्मी अपने चरम पर है और हिन्दू पंचांग का ज्येष्ठ माह न केवल तापमान की दृष्टि से बल्कि धार्मिक सक्रियता के लिहाज से भी अत्यंत महत्वपूर्ण समय माना जाता है। यह वह कालखंड है जब सेवा की भावना जन-जन में उमड़ती है, कहीं छबीलों से शीतल जल बहता है, तो कहीं भंडारों से भोजन का वितरण होता है। यह सब परोपकार की उस परंपरा को दर्शाता है, जिसकी जड़ें भारतीय संस्कृति में गहराई से समाई हैं।
लेकिन, क्या यह सेवा हर बार सचमुच सुविधा का कारण बनती है? क्या पुण्य कमाने की यह होड़ किसी के लिए असहजता न बन जाए? इस लेख में हम इसी उलझन को सुलझाने की कोशिश करेंगे कि सेवा कैसे की जाए, ताकि वह न केवल पुण्यदायक हो, बल्कि पर्यावरण-सम्मत, व्यवस्थित और समाजहितकारी भी बने।
ज्येष्ठ माह, जिसे हम आम बोलचाल में जेठ कहते हैं, हिन्दू पंचांग का सबसे तप्त और धार्मिक रूप से जागरूक महीना माना जाता है। इस महीने में अनेक धार्मिक परंपराएं निभाई जाती हैं, कहीं छबील लगाई जाती है तो कहीं भंडारे, कहीं प्याऊ लगते हैं तो कहीं राहगीरों को जल सेवा के माध्यम से राहत देने की कोशिश होती है। यह हमारी परंपरा की सुंदर झलक है, ‘परोपकार ही सच्चा धर्म है।’
लेकिन पिछले कुछ वर्षों से एक कड़वी सच्चाई भी सामने आ रही है। पुण्य कमाने की इस होड़ में हम जाने-अनजाने आम जनता के लिए असुविधा का कारण बनते जा रहे हैं। सड़कों के किनारे लगे भंडारे या छबील की जगहों पर डिस्पोजेबल प्लास्टिक या थर्मोकॉल के गिलास, प्लेट्स, चम्मच आदि का ढेर लग जाता है। हवा में उड़ते ये कचरे न केवल दृश्य प्रदूषण फैलाते हैं, बल्कि नालियों को जाम कर देते हैं और सफाई कर्मचारियों के लिए अतिरिक्त बोझ बनते हैं।
सड़क पर लगने वाली इन व्यवस्थाओं के कारण ट्रैफिक बाधित होता है। एम्बुलेंस तक फँस जाती हैं, स्कूली बच्चे लेट होते हैं, ऑफिस जाने वालों को घंटों जाम झेलना पड़ता है। हम पुण्य के लिए तो सेवा कर रहे हैं, पर अनजाने में असुविधा का कारण भी बन रहे हैं।
क्या समाधान हो सकता है? सेवा जरूर करें, पर सिस्टम के साथ। नगर निगम या ट्रैफिक पुलिस से अनुमति लें और उनके दिशा-निर्देशों का पालन करें। प्लास्टिक या डिस्पोजेबल का उपयोग न करें। कांच, स्टील या मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करें। ये पर्यावरण के लिए भी बेहतर हैं। कचरे के लिए पास में ही डस्टबिन लगाएँ और साफ-सफाई का ध्यान रखें। भंडारे या छबील ऐसी जगह लगाएँ जहाँ ट्रैफिक बाधित न हो। जैसे पार्किंग एरिया, मंदिर परिसर, स्कूल ग्राउंड आदि।
चाहें तो सेवा का तरीका बदलें, गर्मियों में राहगीरों के लिए टेंट लगाकर छांव दीजिए, सार्वजनिक कूलर लगवाइए, किसी अस्पताल में मरीज़ों को फल बाँटिए, या प्याऊ की जगह किसी गाँव में जल संयंत्र लगवाइए। ये सेवा अधिक स्थायी और सकारात्मक प्रभाव डालती है।
सच्चा पुण्य वही है जिससे किसी को तकलीफ़ न हो, और किसी का जीवन सहज हो जाए। धार्मिक भावना बहुत सुंदर है, पर उसे संयम और समाजहित के साथ निभाना ही वास्तविक धर्म है। जय मानवता।
-लेखक सामाजिक चिंतक, लोकप्रिय सीनियर सर्जन और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष हैं

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