मिट्टी दी खुशबू : पँजाब दी कोयल

राजेश चड्ढ़ा.
1930 दा दहाका इक अजेहा समाँँ सी जदों सुचजे परिवार दियाँ धियाँ नूँ गौण-वजौण तों दूर रखेया जाँदा सी. औरताँ विच बैठना, हस-बोल लैणा, गुनगुनाना बस इन्ना ही काफ़ी सी। प्रकाश कौर, सुरिंदर कौर, और नरिंदर कौर नाम दियाँ तिन भैणा अनवँडे पँजाब दे लाहौर दे इक अजेहे परिवार विच पैदा होइयाँ सन।
जन्म तों ही परमात्मा ने तिनों भैणा नूँ सच्चा सुर वरतन दी काबलियत बख्शी सी। मां माया देवी घर बैठ के गुनगुनाया करदी सी। प्रकाश अते सुरिंदर वी उसदे नाल हौले-हौले सुर मिलौंदियाँ सन। सारियाँ कौर भैणा लयी संगीत दी दुनिया सब तों पहलाँ सी अते बाकी सब कुज अखीर विच।
जदों बिशन सिंह अते माया देवी ने देखेया, कि उन्हाँ दियाँ धियाँ नूँ वी सँगीत साधना दा ही सुर लगेया होया है, ताँ उन्हाँने वी झुक के अपनी पिठ अग्गे कर दिती, ताकि उन्हाँ दियाँ धियाँ उठ के खड़ियाँ हो सकन।
एह ऐसा समय सी जदों खानदानी गायकाँ दे अलावा लोकाँ दे सामने गौण वालियाँ कुड़ियाँ नूँ अश्लील मनेया जाँदा सी। आम लोकाँ दे दिलो-दिमाग विच उसदी ग़लत छवि पैवस्त सी। इस छवि नूँ तोड़न दी ज़िम्मेदारी वी कौर भैणाँ ने साँभ लयी।
प्रकाश कौर ने उस्ताद इनायत हुसैन साहब तों तालीम लैणी शुरू कीती। उसदे पहले कदम चुकन नाल सुरिंदर कौर लयी अग्गे वधना कुज आसान हो गया। अक्सर कच्ची मिट्टी विच दिखदे पैराँ दे निशान वी वड्डा सहारा बण जाँदे हन। प्रकाश कौर दे नक़्शे कदम ते चलदे होये सुरिंदर कौर नूँ वी अगस्त 1943 विच लाहौर रेडियो ते लाइव गौण दा मौका मिल गया। इसदे साल मगरों ही सुरिंदर कौर ने प्रकाश कौर दे नाल भ्डट लयी अपना पहला गाना रिकॉर्ड कीता। जिसने कौर भैणाँ दी पछाण हमेशा लयी पँजाबी सँगीत विच पक्की कर दिती।
एह गीत सी-
माँवाँ ते धीयाँ रल बैठियाँ नी माये,
कोई करदियाँ गलड़ियाँ,
कणकाँ लमियाँ
धीयाँ क्यों जमियाँ
नी माये
गीत दे बोलाँ दा मतलब सी कि कुड़ियाँ अपनी मां नाल बैठियाँ गल्लाँ कर रहियाँ हन अते पुछ रहियाँ हन कि उन्हाँ नूँ कुड़ियाँ क्यों पैदा होइयाँ।
पँजाबी घराँ विच अज वी एह गीत मावाँ, चाचियाँ, मासियाँ दी ज़बान ते चढ़े होये हन। वेहड़ेयाँ विच गाये जान वाले इन्हाँ गीताँ नूँ कौर भैणा ने दुनिया दे सामने लेयाँदा।
आज़ादी तों बाद सुरिंदर कौर अते उन्हाँ दा परिवार भारत आ गया अते गाज़ियाबाद विच रहना शुरु कर दिता। 25 नवंबर 1929 नूँ जन्मीं सुरिंदर कौर दा व्याह प्रोफ़ेसर जोगिन्दर सिंह सोढ़ी नाल होया सी। व्याह तों बाद प्रोफ़ेसर सोढ़ी ने सुरिंदर कौर दे करियर नूँ अग्गे वधौन विच बहुत मदद कीती।
प्रोफ़ेसर सोढी़ नूँ पँजाबी साहित्य विच ढूँगी दिलचस्पी सी। प्रसिद्ध पँजाबी कवि शिव कुमार बटालवी दा प्रोफ़ेसर सोढ़ी नाल गहरा रिश्ता सी। अमृता प्रीतम वी उन्हाँ दे दोस्ताँ विच शामिल सी। प्रोफेसर सोढी़ दे मशवरे ते लोकगीताँ दे अलावा सुरिंदर कौर ने मशहूर लेखकाँ दियाँ लिखियाँ नज्माँ अते गीत गाने शुरू कर दिते।
कुछ समय लयी सुरिंदर कौर बॉम्बे वी रही। उन्हाँ ने ओथे ’शहीद’ फिल्म लयी तिन्न गीत वी गाये। पर बॉम्बे दा मौसम उस नूँ पसँद नहीं आया अते सुरिंदर कौर वापस दिल्ली आ गयी। पंजाबी लोकगीताँ नूँ लोकाँ तक पहुंचौण लयी सुरिंदर विदेशाँ विच वी गयी। ओत्थे इन्हाँ दी आसा सिंह मस्ताना नाल मुलाक़ात होयी, जेड़े खुद बेहद मशहूर सिंगर सन। इन्हाँ दोनाँ दे इकट्ठे गाये गीत अज वी साढे इर्द-गिर्द गूंज रहे हन।
सुरिंदर कौर समय दे नाल-नाल अपने संगीत विच ज़्यादा ढूँगे उतरदी चली गयी।
1976 विच प्रोफ़ेसर सोढ़ी दे गुज़र जान तों बाद ज़िन्दगी विच जो खालीपन आया, उसनूँ भरन लयी सुरिंदर कौर दे कोल सिर्फ़ इक आसरा संगीत ही बचेया सी। उस नाल साथ छूटदा, ताँ शायद सब कुज छूट जाँदा, बस इस लयी सुरिंदर कौर ने सँगीत नहीं छडेया। रूह नूँ खुराक जारी रही। 1984 विच साहित्य नाटक अकादमी ने उन्हाँ नूँ पंजाबी लोकसंगीत लयी अवार्ड दिता। सन 2002 विच गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी ने उन्हाँ नूँ मानद डॉक्टरेट दी उपाधि वी दिती। 2006 विच भारत सरकार ने सुरिंदर कौर नूँ पद्मश्री नाल सम्मानित कीता। 2006 विच ही सुरिंदर कौर नूँ दिल दा दौरा वी पेया पर सुरिंदर उस तों उबर गयी अते पद्मश्री लैन खुद गयी।
सुरिंदर कौर दा गाया इक गीत है, जिस नूँ शिव बटालवी ने लिखेया सी-
लोकी पूजन रब, मैं तेरा बिरहड़ा…
इस गीत दे भावाँ दी तरहा सुरिंदर कौर हमेशा इस गल नूँ दिल विच लै के ज्यौंदी रही, कि अपनी मिट्टी दे कोल वापस जाँवांगी। पंजाब उसदा पहला प्यार सी। उस तों बिछड़ना, उन्हाँ नूँ गवारा नहीं सी। सुरिंदर कौर पंजाब दी मिट्टी विच ही अपने अखीरी पल गुजारना चौहँदी सी।
पर 2006 विच दिल दे दौरे तों बाद सुरिंदर कौर दी तबीयत जदों बिगड़ी ताँ मुड़के संभल नहीं पायी। सुरिंदर कौर दियाँ दोंवे कुड़ियाँ, जेड़ियाँ न्यू जर्सी विच रहँदियाँ हन, उन्हाँ दे कोल इक हॉस्पिटल विच उन्हाँ नूँ एडमिट वी कीता गया पर 14 जून 2006 दे दिन सुरिंदर कौर हमेशा-हमेशा लयी सारेयाँ तों दूर चली गयी।
सुरिंदर कौर ने गाया सी-
मैं जाना रब दे कोल…..
एह रब जित्थे वी है अते जेहे जेया वी है उसदे शुक्रिया दे हिस्से विच, इसदा शुक्रिया ज़रूर होवेगा, कि उस ने सुरिंदर कौर दी आवाज़ नाल इस दुनिया विच रहन वालेयाँ नूँ नवाज़ेया।
-लेखक जाने-माने शायर और आकाशवाणी के पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक हैं

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