उपेन्द्र सिंह राठौड़.
राजस्थान में सरकार नई है पर ढर्रा वही पुराना। जी हां। पत्रकारों के प्रति सोच के हिसाब से तो ऐेसा ही लगता है। दरअसल, सरकार के बजट में राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों के आवास, कार्यालय सुविधा, महिला, एससी-एसटी, लोक कलाकारों, किसानों, मजदूरों, घुमंतू जाति वर्ग इत्यादि के लिए विभिन्न घोषणाएं की परन्तु पत्रकारों के लिए इस बजट में एक भी घोषणा नहीं की गई। यह स्थिति तब है कि जब प्रदेश में पत्रकार संगठन खासकर आईएफडब्ल्यूजे लम्बे समय से विभिन्न मांगों को लेकर संघर्ष कर रहा है।
वर्तमान समय में पत्रकारिता क्षेत्र का अंदरूनी अध्ययन किया जाए तो निकल कर सामने आएगा कि जितना शोषण पत्रकारों का (विशेष रूप से छोटे जिलों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में ) हो रहा है, उतना तो किसी का भी नहीं हो रहा होगा। इसका मुख्य कारण है समाचार पत्र एवं चैनल मालिकों का इनसे बिना वेतन या अल्प भूगतान देकर 24 घंटों काम में लगाए रखना और यही इस क्षेत्र का कटु सत्य भी है। बाहर से तो चुस्त-दुरुस्त व सजा-संवरा दिखाई देने वाला यह वर्ग मानसिक रूप से कितना उद्वेलित व व्यवस्था से हताश-निराश है, यह कोई नहीं जानता और न ही जानना चाहता है… क्योंकि सभी इनको अपना काम निकालने तक ही सीमित रखना चाहते है।
पढ़े-लिखे युवा लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ ‘पत्रकारिता’ की बाहरी तड़क-भड़क, रूआब को देखकर इस क्षेत्र में प्रवेश तो कर जाते है, लेकिन जब तक उन्हें वास्तविकता का पता चलता है बहुत देर हो चुकी होती है, क्योंकि तब तक अन्य क्षेत्रों में उनकी नौकरी की आयु निकल चुकी होती है। जो एक बार पत्रकार बनकर रह गया वह अपने-आप को बमुश्किल ही कहीं और जमा पाता है। सरकारी योजनाओं का अधिकांश लाभ कुछ सौ अधिस्वीकृत पत्रकारों तक ही सीमित रखा गया है जबकि राजस्थान प्रदेश में सात हजार से भी अधिक पत्रकार कार्यरत हैं। प्रदेश में पत्रकारों के लिए बनाए गए अधिस्वीकरण प्रणाली की जटिलता भी इस तरह की है कि यदि आपके बड़े ‘जेक-चेक’ है तो ही इस श्रेणी में आप प्रवेश पा सकते हैं इसलिए इस सूची का भी अध्ययन किया जाए तो पाएंगे कि बड़े संस्थानों के मालिकों व उनके रिश्तेदारों को जो पहले से ही करोड़पति हैं वह इस सुविधा का लाभ भोग रहे हैं।
आईएफडब्ल्यूजे द्वारा यह बात पूर्व में भी अनेकों बार राजनेताओं तथा वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष रखी गई परन्तु समाधान निकालने की कोई पहल नहीं की गई। और बेचारे कार्यरत पत्रकार अपने जीवन की छोटी-मोटी आवश्यक सुविधाओं के लिए भी तरसते रहते है। कार्यक्षेत्र में सुरक्षा, आवास, चिकित्सा, आकस्मिक दुर्घटना बीमा, यातायात सुविधा, टोल मुक्त यात्रा, बच्चों की शिक्षा आदि कुछ भी तय नहीं होती है। इसी जद्दोजहद में उनकी उम्र निकल जाती है और अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही वरिष्ठ आयु वर्ग में आने पर इन्हें घोर परेशानियों में भी डाल देती है। जो राजनेता विपक्ष में रहते इनके आस-पास गलबहियां करते दिखाई देते हैं वहीं सत्ता में आते ही तेवर दिखाने लग जाते हैं। ठीक यही हो रहा है इस वक्त। इस बार के बजट में पत्रकारों के लिए कुछ भी नहीं और वह भी उनके द्वारा जो कुछ महिनों पहले कहा करते थे कि एक बार हम सत्ता में आ जाए आप लोगों के लिए सब कुछ ठीक कर देंगे….।
पत्रकार साथी भी जब तक अपने अधिकारों व हितों के लिए अपने स्थान से निकल कर सड़कों पर नहीं उतरेंगे, धरना-प्रदर्शन, विरोध दर्ज नहीं कराएंगे, उन्हें इसी तरह उपेक्षा का शिकार होते रहना पड़ेगा। यही कामना है कि ईश्वर नये-नये सत्ताधीश बने इन राजनेताओं को पत्रकारों किए गए उनके वादे याद दिलाएं साथ ही पत्रकारों को संगठित होने और संघर्ष करने की सोच एवं बल प्रदान करें।
-लेखक आईएफडब्ल्यूजे के प्रदेशाध्यक्ष हैं