



आर्किटेक्ट ओम बिश्नोई.
देवव्रत और राघव बरसों बाद अपने दोस्त मेजर तुषार से मिलने पहुंचे हैं। उसकी छावनी भारत के सुदूर उत्तर-पूर्व के एक पहाडी राज्य में स्थित है। देवव्रत, राघव और तुषार के बीच दोस्ताना तब से है जब वो प्राईमरी स्कूल के विद्यार्थी थे। फिर साथ हाईस्कूल पास किया अपने शहर से। तीनों के पिता सार्वजनिक निर्माण विभाग में थे। पढाई के बाद का समय भी उनका अक्सर साथ कटता रहा और दोस्ती घनी होती गई।
गुजरते वक्त के साथ तीनों ने अपने-अपने विषय में स्नातक किया और तुषार सेना में ऑफिसर बन गया, राघव ने इंजीनियरिंग कर एक मल्टीनेशनल फर्म में अपना जीवन शुरू किया और देवव्रत ने स्नातक के बाद स्नातकोतर और फिर डॉक्टरेट हुमैनिटी के ही एक सबजेक्ट से की और एक विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हो गया।
रेलवे स्टेशन पर मेजर तुषार खुद अपने दोस्तों को रिसीव करने पहुंचा। तीनों दोस्त गले मिले, दुआ सलाम के बाद गाडी में बैठ छावनी पहंुचे तुषार के बंगले पर। उन दोनों को उनके रूम में पहुंचा कर तुषार बोला-‘यारों! मुझे अभी ड्यूटी जाना है। तुम नहा-धोकर कर नाश्ता ले लेना और एक लम्बा रेस्ट भी। शाम को तुम्हारे आने की खुशी में एक छोटी कॉकटेल पार्टी रखी है हम दोस्त लोगों ने।’ यह कहते हुए मेजर तुषार ने हंसी का एक ठहाका लगाया।
शाम धुंधलका छाने के साथ मैस के लॉन में सब करीने से सजा था। लकडियों की हल्की-हल्की उठती आंच के इर्द गिर्द हल्का संगीत फिजा में उठ रहा था। तुषार के साथी अधिकारी भी थे वहां। तीनों के पहुचने पर दुआ सलाम और परिचय के बाद पार्टी जम गयी और महफिल भी बहुत सी बातें भी होने लगी।
मेजर जयवीर ने अचानक देवव्रत और राधव से मुखातिब होते पूछा-‘आप सुनाइए कुछ किस्से सिविलियन लाइफ के।’ तो तुषार बीच में बोल उठा-‘ये देवव्रत प्रोफेसर है, वो भी हुमैनिटी का तो साला सोचता भी अलग है बोलता भी अलग है।’ देवव्रत और राधव के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई। देवव्रत ने हौले से कहा-‘ऐसा कुछ नहीं मेजर जयवीर सर! बस…. पेशे और परिवेश से बहुत से फलसफे बदलते हैं जीवन के।’
फिर बातें होनें लगी विश्व, राजनीति, धर्म, सीमाओं और बहुत से विषयों पर।
मेजर जयवीर ने कहा-‘प्रोफेसर, तुम ह्यूमेनिटी पढाते हो, तो बताओ ये आंतकवाद, युद्ध जिसने विश्व को जकड रखा है। इंसानी जमात को साथ ही दुनिया भर में जो विध्वंस फैला रखा है, इसका कोई हल है तुम्हारी नजर में?’
देवव्रत ने मुस्कुराते हुए कहा-‘हल है तो मेरी नजर में एक। बताऊगां तो हजम भी नहीं होगा अभी। बस, इतना सुन लो। मेरे साथ अभय जो आया हुआ है, ये लोग सृजन करते नये-नये भवनों का और भी बहुत लोग लगे हैं सृजन में। कुछ लोग विध्वंस में भी। थोडे विस्तार में यूं इन शब्दों से समझ लो मेजर। ताज बनाया आदमी ने। अजंता अलोरा बनाया आदमी ने। धरती को सजाया आदमी ने।पर धरती भूले कैसे?? सीमा भी बनायी आदमी ने। गोली भी बनायी आदमी ने। हीरोशिमा को बंजर बनाया आदमी ने।’
‘अबे पहेलियां मत बुझाओ। सीधा-सीधा बोल कहना क्या तुझे ? हम दो ओर दो चार जानते या यूं कहें इस पार या उस पार।’ मेजर तुषार ने ठहाका लगाते कहा।
देवव्रत शरारती लहजे में बोला-‘मुझे पिटना थोड़े हैं फौजियों से जो सब साफ बोल दूं। और कॉकटेल पार्टी को यों छोड दूं।’
मेजर जयवीर थोडा सीरियस होते हुए बोला-‘पार्टी जारी है प्रोफेसर, तुम तो बस बोलो जो कहना है, कहो।’
देवव्रत बोला-‘जीवन और इस विकास की दौड में सब दो और दो चार कहां होते या यूं कहें सब ब्लैक ओर व्हाइट ही नहीं बहुत सा ग्रे भी है। आतंकवाद के बहुत से रूप धार्मिक से लेकर एक देश का दूसरे देश की ताकत के बल पर शोषण भी तो आंतक ही है। जयवीर सर ! सीमा रहित विश्व ही अंतिम इलाज इस विश्व का और विश्व सरकार जैसी कोई चीज भी हो जो बहुत मजबूत हो और देश राज्य बने जिनके पास निजी सेनायें नां हो, सिर्फ पुलिस हो सामान्य प्रशासन के लिए। धर्म जैसी चीजों को तो सख्ती के साथ राजसत्ता से अलग करना होगा ही।’
‘हाऊ इट्स पॉसिबल प्रोफेसर ?’ मेजर जयवीर ने टोकते हुए पूछा।
देवव्रत बोला-‘1850 के आसपास भारत की आजादी भी कहां संभव थी मेजर जयवीर ? बस, कुछ संजीदा और आजादी के ख़याल का विचार रखने वाले लोगों के विचार भर ही तो थे उस समय। लेकिन… आखिर आजादी मिली ना? आज से कुछ साल पहले यूरोपीय महासंघ जैसी चीज की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, जो आज हकीकत है। इससे उनके बॉर्डर पर तनाव कुछ कम हुए हैं तो सेनाओं को कुछ राहत तो मिली ही होगी ना। सोचो, अगर ये विश्व भर में हो जाये तो कितने खरबों धन जो हथियारों में लगता देशों का वो धन मानविकी विकास में ही तो लगेगा?’
‘हम्म!’ मेजर जयवीर ने घूरते हुए पूछा-‘तुम्हें लगता है दुनिया भर के हुक्मरान अपनी राजनीति और राजसत्ता पर अपने मजबूत अधिकार यूं ही छोड देंगे? लगता है तुम्हें ?? उनके अपने इरादे और जरूरतें बहुत से देशों की तो पूरी इकोनॉमी ही हथियार बेचने से चलती या उसका मुख्य हिस्सा हथियारों का व्यापार। साथ ही बडे बडे कार्पाेरेट जो हथियार बनाते वो उन देशों की नीतियों तक को प्रभावित करते??’
देवव्रत बोला-‘जानता मैं भी हूं मेजर ये बात। मैं तो ये भी सोचता हूं कि फौजी भी शायद युद्ध कहां चाहते होगें ? वो सबसे अधिक शिद्दत से युद्धों के परिणाम और परिणति को बेहतर जानते हैं। किसी फौजी की वर्दी के बलिदान के बाद खूँटी पर टंग जाने की कसक को भी जानते ही होंगे।’
तुषार ने सहमति जताते हुए कहा-‘जाहिर है। युद्ध कौन चाहता है। कम से कम फौजी तो शायद ही चाहते कभी युद्ध। यह अलग बात है कि उन्हे पूरी ट्रेनिंग इसी चीज की मिली होती है।’
देवव्रत बोला-ठीक कह रहे हो तुषार! तुम्हें याद है, हमारे एक शिक्षक वसुधैव कुटुंबकम को कितने बेहतर तरीके से बताते थे सुबह की स्कूल प्रार्थना के दौरान?’
मेजर जयवीर ने अब देवव्रत से मुखातिब होकर पूछा-‘अंतिम हल क्या निकलता तुम्हारी सोच से प्रोफेसर ?’
देवव्रत ने कहा-‘विश्व सरकार अभी बहुत दूर की बात है। चाहे ये विचार बेहतरीन है तो भी और बहुत से लोगों के जेहन में है तो भी। पर फिर भी ये विचार रूकेगा नहीं और मरेगा भी नहीं। अभी तो तूती बने लोगों की तूती की आवाज मात्र जो नक्कार खाने में सुनायी नहीं दे रही। मेरी सारी उम्मीदें आने वाली पीढियों पर है जो बहुत तेजी से एक देश से दूसरे देश में पहुँच रही और दूसरे देशों के नौजवानों से परिचित भी हो रही। साथ ही वहां रह भी रही। अगले 275-50 साल में ये और तेज होगा ये दुनिया सिमटकर छोटी होती जाएगी।’
देवव्रत थोड़ी देर के लिए चुप हो गया और फिर बोला-‘ये पीढ़ियां किसी ना किसी दिन सरकारों को उनके बॉर्डर ढीले करने और विश्व महासंघ बनाने पर पर मजबूर करेंगी। जब लाखों की संख्या में ये नोजवान अलग-अलग देशों पर ‘नो बोर्डर’ की तख्तियां लिये खडे होंगे।’
‘एक लार्ज पेग और बनवाओ कैप्टन दिनेश प्रोफेसर का। वरना ये हमें आज ही बेरोजगार करेगा। और हां, जगजीत सिंह की ‘सुनां था की वो आयेंगें अंजुमन में, सुनां था की उनसे मुलाकात होगी’ गजल चलाओ।’ मेजर तुषार ने मजाकिया लहजे में कहा।
अपने आशिकी के दौर में प्रोफेसर की खास पसंद यही गजल थी नां अभय बाबू ? अगर मेरी याददास्त ठीक है तो ? तुषार ने अभय की और देखते बात खत्म की। इस बार हवा में ठहाका सबकी हंसी का था।