





ग्राम सेतु डेस्क.
इस बार नौतपा ने अपनी शुरुआत में ही मौसम का रुख बदलकर सबको चौंका दिया है। लोगों के चेहरों पर मुस्कान जरूर आई है, लेकिन ज्योतिषीय दृष्टिकोण से यह बदलाव भविष्य में वर्षा के स्वरूप को प्रभावित कर सकता है। ज्योतिषाचार्य डॉ. नीतिश वशिष्ठ का सुझाव है कि अगले कुछ दिनों की खगोलीय स्थिति और वातावरण का सूक्ष्म विश्लेषण करना आवश्यक होगा, ताकि मानसून को लेकर ठोस निष्कर्ष निकाला जा सके।
राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश सहित देश के उत्तर भारत में तपते मौसम से हलकान जनता के लिए इस बार नौतपा का आगमन एक अप्रत्याशित सौगात लेकर आया है। हर साल की तरह जब लोग नौतपा की शुरुआत के साथ ही लू के थपेड़े और झुलसा देने वाली गर्मी की आशंका से घबराए हुए थे, तब मौसम ने इस बार एक अलग ही करवट ली। सूरज की चिर-परिचित तपिश की जगह इस बार बारिश, तेज हवाओं और आंधियों ने दस्तक दी है, जिसने गर्मी से बेहाल जनता को एक सुखद झटका दिया है।
क्या होता है नौतपा?
ज्योतिषीय गणना के अनुसार, नौतपा वह विशेष समयावधि है जब सूर्य देव रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते हैं। यह नक्षत्र चंद्रमा का है, जो शीतलता के प्रतीक माने जाते हैं, लेकिन जब सूर्य की प्रचंड ऊर्जा रोहिणी पर हावी होती है, तो धरती पर गर्मी की तीव्रता कई गुना बढ़ जाती है। यह समय ज्येष्ठ मास के शिखर पर आता है, जब सूर्य उत्तरायण में रहते हुए लगभग सीधे सिर के ऊपर होते हैं और पृथ्वी पर अपनी पूरी ऊर्जा बरसाते हैं।
कब से शुरू हुआ नौतपा?
ज्योतिषाचार्य पंडित नीतिश कुमार वशिष्ठ के अनुसार, इस वर्ष नौतपा की शुरुआत 25 मई को दोपहर 3 बजकर 15 मिनट पर सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश के साथ हुई। अब यह सूर्य 8 जून दोपहर 1.04 बजे तक इसी नक्षत्र में रहेंगे। इन दिनों को मानसून का गर्भकाल कहा जाता है, यानी वर्षा ऋतु की नींव इन्हीं गर्म दिनों में रखी जाती है। हर साल नौतपा की शुरुआत के साथ ही लोगों की उम्मीदें टूटने लगती हैं, क्योंकि इसके नौ दिन अग्निकाल जैसे माने जाते हैं। लेकिन इस बार नौतपा की पहली दोपहर ही बारिश, बादलों और ठंडी हवाओं ने माहौल को खुशनुमा बना दिया। लोग हैरान भी हुए और राहत महसूस करते हुए आकाश की ओर कृतज्ञ भाव से देखने लगे।
पंडित नीतिश वशिष्ठ बताते हैं, ‘इस तरह की वर्षा को रोहिणी नक्षत्र का गलनाश कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि सूर्य की पूरी ऊर्जा रोहिणी पर नहीं पड़ पाई। यह स्थिति प्राचीन मान्यताओं के अनुसार आने वाले मानसून के लिए थोड़ी चिंताजनक मानी जाती है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो जब सूर्य पूरी शक्ति के साथ रोहिणी नक्षत्र में तपते हैं, तब वर्षा का भंडार भरता है। इसे ‘वर्षा बीज बोने का समय’ माना जाता है। यदि इस दौरान वर्षा या बादल आ जाएं, तो सूर्य की उष्मा कमजोर पड़ती है, जिससे बारिश की मात्रा कम हो सकती है। हालांकि यह एक सामान्य नियम है, लेकिन हर वर्ष का मौसम चंद्रमा की गति, आर्द्रा प्रवेश और अन्य खगोलीय स्थितियों पर भी निर्भर करता है।’
मानसून का गर्भकाल क्यों है यह समय?
पंडित नीतिश वशिष्ठ बताते हैं, ‘इस समय को मानसून का गर्भकाल इसलिए कहा जाता है क्योंकि सूर्य अग्नि तत्व के प्रतिनिधि हैं और रोहिणी नक्षत्र जल तत्व का प्रतीक है। जब सूर्य इस जल तत्व पर प्रभाव डालते हैं, तो यह मौसम विज्ञान की दृष्टि से वाष्पीकरण, वायुमंडलीय दबाव और आर्द्रता को जन्म देता है, जिससे मानसून का विकास होता है। यदि यह समय ठीक से तपे, तो अच्छी बारिश के योग बनते हैं।’
क्या आगे फिर से बढ़ेगी गर्मी?
डॉ. नीतिश कुमार वशिष्ठ ने कहा, ‘अभी तो केवल शुरुआत हुई है। आने वाले दिनों में जब चंद्रमा पुनर्वसु, पुष्य, आर्द्रा आदि नक्षत्रों में भ्रमण करेगा, और सूर्य अपने ताप को पूरी तरह फैलाएगा, तब मौसम फिर से करवट ले सकता है। इसलिए अभी गर्मी के जाने की बात करना जल्दबाजी होगी।’ भारत की परंपरागत कृषि संस्कृति में नौतपा को एक विशेष संकेतक माना गया है। लोक मान्यता है कि यदि नौतपा के नौ दिन भरपूर गर्मी दें, तो वर्षा ऋतु में अन्न भंडार भरता है। ग्रामीण अंचलों में यह भी कहा जाता है, ‘नौतपा ना तपे, तो सावन चुप रहे’ यानि यदि नौतपा की तपिश कमजोर रही, तो सावन में बरसात भी कम हो सकती है।



