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कृषि को समन्वित कृषि पद्धति द्वारा उत्पादक, टिकाऊ, लाभकारी तथा जलवायु सहनशील बनाने, मृदा एवं नमी संरक्षण द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने, किसानों की दक्षता में वृद्धि करने के उद्देश्य से नेशनल मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर अंतर्गत जिला स्तरीय कमेटी की बैठक कलक्टर काना राम की अध्यक्षता में कलैक्ट्रेट परिसर में हुई।ं इसके साथ ही बीटी कपास में गुलाबी सुंडी के प्रबंधन हेतु कॉटन मिल के प्रतिनिधियों के साथ तकनीकी कार्यशाला का आयोजन हुआ।
कलक्टर काना राम ने निर्देश दिए कि जिनिंग मिलों में भण्डारित बिनौलों को मार्च माह में खुला नहीं छोड़े, किसी प्लास्टिक सीट अथवा मच्छरदानी से ढक कर रखे तथा इसके साथ-साथ जिंक फासफाईड रसायन से धोया जाए ताकि प्यूपल अवस्था में ही गुलाबी सुण्डी को उसी स्थान पर नष्ट किया जा सके। जिनिंग उपरान्त अवशेष सामग्री को जलाकर अथवा जमीन में दबाकर निस्तारित किया जाए, जिससे गुलाबी सुण्डी के प्राथमिक संक्रमण से बचा जा सके। इसके साथ-साथकलक्टर ने निर्देशित किया कि बीटी कपास के बीज की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु अधिक से अधिक नमूने विश्लेषण हेतु लिए जाएं।
बैठक में उप निदेशक कृषि डॉ. मिलिंद सिंह, आत्मा परियोजना निदेशक सुभाष चन्द्र डूडी, उप निदेशक मार्केटिंग डीएल कालवा, उप निदेशक उद्यान साहबराम गोदारा, सहायक निदेशक कृषि बीआर बाकोलिया, बलकरण सिंह, कृषि विज्ञान केन्द्र नोहर एवं संगरिया से डॉ. सुरेश चन्द्र, डॉ चन्द्रशेखर शर्मा, कृषि अनुसंधान अधिकारी राजेन्द्र बैनीवाल, पीआरओ राजपाल लंबोरिया, जिनिंग मिल प्रतिनिधि बेगराज बेहड़ा व विजय बंसल आदि उपस्थित रहे।
बीटी कपास में गुलाबी सुंडी के मैनेजमेंट हेतु तकनीकी कार्यशाला
कार्यशाला में कृषि संयुक्त निदेशक डॉ. रमेश चन्द्र बराला ने बताया कि जिले की खरीफ मौसम की बीटी कपास मुख्य नगदी फसल है तथा जिले के किसानों की आर्थिक स्थिति का निर्धारण मुख्यतः कपास फसल के उत्पादन पर ही निर्भर करता है। वर्ष 2005-06 से बीटी कपास का जिले में आगमन हुआ, तो वर्ष दर वर्ष इसका बुवाई क्षेत्र बढता गया। गत वर्ष बीटी कपास में गुलाबी सुण्डी का प्रकोप आर्थिक हानि स्तर से अधिक रहा, जिस कारण बीटी कपास के उत्पादन में भारी गिरावट हुई। बीटी कपास की अगेती बुवाई एवं बुवाई अवधि अधिक समय तक चलना गुलाबी सुण्डी पनपने के कारणों में से है। इसके अतिरिक्त बीटी जीन के विरूद्ध गुलाबी सुण्डी में प्रतिरोधक क्षमता का विकास, पौधे की अधिक वानस्पतिक वृद्धि एवं अधिक पौध सघनता, जिनिंग मिलों में जिनिंग पश्चात अवशेषों में उपस्थित लार्वा से उत्पन्न कीट से प्राथमिक संक्रमण होना गुलाबी सुण्डी के प्रकोप के कारण है।
कपास की फसल पर गुलाबी सुण्डी का प्रकोप बनस्टियों एवं भूमि पर पड़े अधखिले टिण्डों तथा जिनिंग उपरान्त अवशेष सामग्री में जीवित लार्वा से निकलने वाले वयस्क नर एवं मादा द्वारा भी होता है जो मेटिंग के पश्चात कपास के पौधों की नई कलियों पर अण्डे देते है। गुलाबी सुण्डी की पहली सफेद रंग की अवस्था फूलों तथा टिण्डों पर आक्रमण करती है, टिण्डों पर सुई के नोक की आकार का छेद कर सुण्डी टिण्डे के अन्दर प्रवेश कर जाती है तथा बाद में यह छेद बंद हो जाता है, जिस कारण सुण्डी का टिण्डे के अन्दर स्वतः पैदा हो जाना प्रतीत होता है। कीट ग्रसित टिण्डे समय से पहले खिल जाते है।