
डॉ. पीयूष त्रिवेदी.
क्या, आपने कभी सोचा है कि लोग नदी और जलाशय में सिक्का क्यों फेंकते हैं ? क्या यह भी स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है? दरअसल, हममें से कई लोगों ने अपने जीवन में कभी न कभी नदी में सिक्का फेंका ही होगा। वर्षों से यह मान्याता रही है कि इससे हमारी मनोकामना पूरी होती है। भारत में नदियों, विशेषकर पवित्र स्थानों पर, सिक्के फेंकने की काफी पुरानी परंपरा है। कुछ लोगों का मानना है कि नदी में पैसा फेंकने से धन की देवी लक्ष्मी उनके जीवन में प्रवेश करेंगी। कई लोगों ने इसे अंधविश्वास माना है, लेकिन आज हम यहां उस पर बहस करने के लिए नहीं हैं। हम इस परंपरा के पीछे के वैज्ञानिक कारण को समझेंगे, जिसके कारण यह प्रथा सदियों पहले शुरू हुई थी।

आजकल तो हम स्टेनलेस स्टील और एल्यूमीनियम के सिक्के देखते हैं, लेकिन प्राचीन सिक्के तांबे के बनते थे। तांबा हमारे शरीर के लिए बड़े फायदे वाला होता है। प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों से पता चलता है कि पानी को तांबे के बर्तन में रखकर शुद्ध किया जाता था। अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के मुताबिक पीतल और पत्थर के बर्तन में पानी रखने से 99.9 फीसद कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
तांबे की इसी खूबी की वजह से हमारे पूर्वज नदियों में तांबे के सिक्के फेंका करते थे। जल को ऐसे शुद्ध करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। हम अपने पूर्वजों की इस प्रथा का पालन कर रहे हैं। समय के साथ इसका असली उद्देश्य धीरे-धीरे खो गया और हम नदियों में सिक्के फेंकने के कारणों को मनोकामना का रूप दे चुके हैं। तथ्य तो यह है कि अब हम तांबे के सिक्कों का उपयोग नहीं करते हैं, इसलिए इस प्रयोग का वास्तविक वैज्ञानिक उद्देश्य जिसके कारण सदियों पहले यह प्रथा शुरू की गई थी, अब पूरी तरह से लुप्त हो गई है।
-लेखक राजस्थान विधानसभा में आयुर्वेद चिकित्सा प्रभारी हैं