

ग्राम सेतु ब्यूरो. मधुबनी.
जिला मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर कैटोला चौक से उत्तर है छुतहरिया पुल। विख्यात कवि व साहित्यकार धीरेंद्र झा के मुताबिक, मैथिली में छुतहर शब्द का अर्थ है उपेक्षा करना। अंग्रेजी में इसे ‘यूजलेस’ भी कह सकते हैं। कुल मिलाकर छुतहर शब्द अशोभनीय माना जाता है। बावजूद इसके किसी पुल का नाम ‘छुतहरिया’ कैसे हो सकता है ? इसी सवाल को सुलझाने के लिए ‘ग्राम सेतु’ ने कुछ जानकारों से बातचीत की।

शाहपुर निवासी टेकनारायण चौधरी इस पुल के नामकरण से संबंधित ऐसी कहानी सुनाते हैं जो बहुत कम लोगों को पता है। दहिभत टोला के रहने वाले टेकनारायण चौधरी ‘ग्राम सेतु’ से कहते हैं, ‘ छुतहरिया पुल के जनक थे महाराजा राघव सिंह। एक बार जब कोशी क्षेत्र के लोगों ने राजा को टैक्स नहीं दिया तो राघव सिंह ने वीरू नामक तहसीलदार को वसूली के लिए कोशी भेजा। वीरू कोशी जाकर टैक्स वसूलने लगा और वहीं जाकर बस गया। काफी समय बीतने के बाद जब उसने राजा राघव सिंह को कोई समाचार नहीं भेजा तो राजा को चिंता हुई। उन्होंने दूत को वीरू के पास भेजा। वीरू ने दूत को एक पत्र लिखा। पत्र का मजमून था-
‘वीरू से बिरसा भए, बसै कोशिका तीर
की पति राखे कोशिकी, की पति राखै राम रघुवीर।’
कहते हैं कि पत्र पढ़ते ही राजा राघव सिंह आग बबूला हो गए। उन्होंने प्रत्युत्तर में पत्र लिखा-‘जो राम रावण हते, कपि दल होय सहाय, की राम भउश बसे, राघव सिंह सहाय।’

बताते हैं, इसके बाद राजा राघव सिंह कोशी क्षेत्र पर आक्रमण की तैयारी में जुट गए। उनके मन में वीरू को बंधक बनाकर लाने की ललक थी। उस वक्त कमला नदी पानी से लबालब थी। राजा ने कमला नदी से मन्नत मांगी कि अगर वे जीतकर वापस आए तो सोने का चरखा समर्पित करेंगे। बताया जाता है कि कमला नदी में पानी का स्तर गिरने लगा। राजा अपने सैनिकों के साथ नदी पार गए और वीरू को बंधक बनाकर ले आए। संकल्प पूरा होने के बाद राजा अपना वादा भूल गए। कुछ साल बाद कमला फिर उफान पर थीं। राजा को मन्नत वाली बात याद आई। उन्होंने सोने का चरखा बनवाया और नदी में प्रवाहित करते वक्त बोले-‘ले गे छुतहरिया! एकटा चरखा दुआरे हमर महल डुबौने छैं।’ बाद में उस जगह नदी पर पुल बना। जिसे ‘छुतहरिया पुल’ के नाम से जाना जाने लगा।