नशे की आग में झुलसते सपने!

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डॉ. एमपी शर्मा.
नशा, चाहे रासायनिक हो या सिंथेटिक, आज की पीढ़ी के लिए एक खतरनाक जाल बन गया है। यह केवल एक व्यक्ति का जीवन बर्बाद नहीं करता, बल्कि परिवार, समाज और राष्ट्र को भी अपनी चपेट में ले लेता है। नशे की लत में फंसे युवा अक्सर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नष्ट कर बैठते हैं, जिससे वे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ जाते हैं। इस आलेख में हम नशे के प्रकार, इसके प्रभाव और इससे बचाव के उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
रासायनिक और सिंथेटिक नशों के कई प्रकार हैं। जैसे, सिंथेटिक कैनाबिनॉयड्स। इसमें गांजे (मारिजुआना) जैसे प्रभाव पैदा करने वाले रसायन होते हैं, जिन्हें ‘स्पाइस’ के नाम से जाना जाता है। इनका अधिक प्रयोग मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को कमजोर कर देता है और दिल की धड़कनें अनियमित हो सकती हैं। सिंथेटिक कैथिनोन्स भी कम खतरनाक नहीं। ये ‘बाथ सॉल्ट्स’ के रूप में प्रचलित हैं। ये उत्तेजक पदार्थ एम्फेटामाइन और कोकीन के प्रभाव को बढ़ाते हैं, जिससे मनोवैज्ञानिक अस्थिरता, आक्रामक व्यवहार और आत्मघाती प्रवृत्तियां पनप सकती हैं। एम्फेटामिन्स और मेथाम्फेटामिन्स के तहत ‘आइस’ और ‘क्रिस्टल मेथ’ के नाम से जाने जाने वाले ये पदार्थ व्यक्ति को अत्यधिक ऊर्जा देते हैं। लेकिन समय के साथ, इनका असर मस्तिष्क और शरीर को इतना कमजोर कर देता है कि व्यक्ति अवसाद, अनिद्रा और मतिभ्रम से घिर जाता है। एलएसडी एक अत्यधिक प्रभावशाली मतिभ्रमकारी नशा है, जो व्यक्ति को कल्पना और वास्तविकता में अंतर नहीं करने देता। इसके प्रभाव में व्यक्ति काल्पनिक दुनिया में खो जाता है और यह मानसिक असंतुलन पैदा कर सकता है। जबकि फेंटानिल और सिंथेटिक ओपिओइड्स अत्यंत घातक नशीले पदार्थ होते हैं, जो दर्द निवारक दवाओं के रूप में शुरू होते हैं लेकिन अधिक मात्रा में सेवन करने पर व्यक्ति को मौत के करीब पहुंचा सकते हैं। इसी तरह नाइट्रस ऑक्साइड यानी ‘लाफिंग गैस’ के नाम से जानी जाने वाली गैस अस्थायी नशा और उत्साह देने के लिए प्रयोग की जाती है, लेकिन इसका बार-बार उपयोग मानसिक कमजोरी और ऑक्सीजन की कमी का कारण बन सकता है।
नाश कर देता है नशा
नशा न सिर्फ शारीरिक, आर्थिक बल्कि मानसिक रूप से व्यक्ति और उसके परिवार को बर्बाद कर देता है। इससे याददाश्त कमजोर होना, मतिभ्रम और अवसाद, अनियमित धड़कन, उच्च रक्तचाप, सांस की गति धीमी होना, फेफड़ों की क्षमता में कमी, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना आदि प्रमुख शारीरिक समस्याओं की जकड़ में आना तय हैं इसी तरह यह मानसिक प्रभाव भी डालता है। जैसे, अवसाद, चिड़चिड़ापन और आत्महत्या की प्रवृत्ति, निर्णय लेने की क्षमता का कमजोर होना, व्यवहार में आक्रामकता और असामान्य प्रतिक्रिया आदि। सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले असर को देखें तो इससे पारिवारिक और वैवाहिक जीवन में तनाव, हिंसा, अपराध और असामाजिक गतिविधियों में वृद्धि, समाज में प्रतिष्ठा का पतन और असफलता आदि प्रमुख हैं। जबकि आर्थिक रूप से यह परिवार को बर्बाद कर देता है। नशे की लत के कारण आर्थिक हानि, परिवार की बचत का नुकसान, नौकरी और शिक्षा में असफलता आदि का सामना करना पड़ता है।
नशे से बचने के उपाय
-परिवार में खुले संवाद बनाए रखें।
-बच्चों और युवाओं को नशे के खतरों से अवगत कराएं।
-माता-पिता बच्चों के व्यवहार में बदलाव को समझें और सतर्क रहें।
-नशा मुक्ति अभियानों को चलाना।
-स्कूल-कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम।
-नशा बेचने वालों और तस्करों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई।
-हेल्थकेयर और काउंसलिंग सेंटर की स्थापना।
-नशे की तस्करी और बिक्री रोकने के लिए सख्त कानूनों का पालन।
-पुलिस और प्रशासन द्वारा सतर्कता बढ़ाना।
-डिटॉक्सिफिकेशन सेंटर और नशा मुक्ति केंद्रों की सहायता लेना।
-मनोचिकित्सकों और काउंसलर्स की मदद लेना।
-मेडिकल थैरेपी और काउंसलिंग द्वारा व्यक्ति को सही मार्ग पर लाना।
अंततः कहा जा सकता है कि नशे की समस्या एक व्यापक सामाजिक संकट बन चुकी है, जिसका समाधान केवल व्यक्तिगत प्रयासों से संभव नहीं है। इसके लिए परिवार, समाज और प्रशासन को मिलकर काम करना होगा। सही जानकारी, मजबूत इच्छाशक्ति और उचित संसाधनों से इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है।
आइए, नशा मुक्त समाज की ओर कदम बढ़ाएं और आने वाली पीढ़ी को इस अंधकार से बचाएं।
-लेखक जाने-माने सर्जन और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं

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