ग्राम-रक्षक मानल जाइत छथि बरहम बाबा!

गोपाल झा.
भारतवर्षक सांस्कृतिक विविधता सिर्फ नगर आ नगरी सभ में नै, बल्कि गाम-गाम में पसारल लोक परंपरा, विश्वास आ रीति-रिवाज में जीवंत रूप सँ प्रतिबिंबित होइत अछि। मिथिलांचल, बिहारक उत्तर भाग एहेन लोकविश्वासक एक जीवंत संग्रहालय थिक। एहि क्षेत्रक प्रत्येक गाम में एक अद्भुत सांस्कृतिक प्रतीक होइत अछि, बरहम बाबा। बरहम बाबा कऽ स्थान, जकरा बरहम स्थान कहल जाइत अछि, गामक पश्चिम दिशा में, प्रायः पीपलक विशाल वृक्षक तर में स्थापित होइत अछि। ई सिर्फ धार्मिक स्थल नै, बल्कि गामक सामूहिक चेतना, सुरक्षा आ सामाजिक संवादक एक स्थायी केंद्र थिक। बरहम बाबाक पूजा पद्धति वैदिक शास्त्र पर आधारित नै अछि। एखनहुं बरहम स्थान पर माटिक घोड़ा, कलश, जनेऊ, धोती, पान, मिठाई, आ फूल आदि चढ़ाओल जाइत अछि, सभ देसज वस्तु। किछु क्षेत्र में पशु बलि देबाक प्रथा सेहो देखल जाइत अछि, जे साफ संकेत करैत अछि जे ई परंपरा मूलतः जनजातीय आ आदिवासी संस्कार सँ जुड़ल अछि।


बरहम बाबा केँ ग्राम-रक्षक मानल जाइत अछि। जनमानस में मान्यता अछि जे ओ गामक चारू दिशि एक अदृश्य सुरक्षा घेरा बना दैत छथि, जे भूत-प्रेत, व्याधि आ नकारात्मक शक्तिसभ सँ रक्षण करैत अछि। विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश आदि शुभ कार्य सभक आरंभ ओतबे सँ होइत अछि। जइ तरह भारतक अनेक लोकपरंपरा कालांतर में ब्राह्मणीकरणक प्रक्रिया सँ गुजरल, ओहने बरहम बाबा पर सेहो शास्त्रीय व्याख्याकेँ परछाईं पड़ल। एक नवीन मान्यता अनुसार, जँ कोनो ब्राह्मण बालक यज्ञोपवीतक बाद आ विवाह सँ पहिने निधन कऽ जाइत अछि, तऽ ओकर आत्मा ‘बरहम’ बनि जाइत अछि। मुदा ई व्याख्या मूल लोकविश्वास सँ बहुत दूर अछि।
वास्तव में, ‘बरहम’ शब्द ‘ब्रह्म’ केर विकृति नै, बल्कि अपनै में एक अलग सांस्कृतिक सत्ता थिक, माटिक गंध सँ जुड़ल, देसी अनुष्ठान सँ सुसज्जित, गामक जनजीवन में रचि-बसि गेल एक लोकदेवता। बरहम स्थान एकटा एहन स्थल थिक, जतऽ अध्यात्मक अनुभूति प्रकृति संग होइत अछि। पीपल केर वृक्ष, जकर महत्व भारतीय दर्शन में अमूल्य अछि, एहि स्थल केँ जीवन, मृत्यु आ पुनर्जन्म केर प्रतीक बना दैत अछि। ई अध्यात्म कोनौ ब्रह्मविद्या नै, बल्कि गामक अपन धड़कन थिक।


बरहम स्थान गामक ओ स्थल थिक जतऽ लोक केवल पूजा करऽ नै, बल्कि भेंट-घांटक लेल, गपशप करै लेल, आ निर्णय लऽ लेल अबैत अछि। बुजुर्ग, युवक, बालक, सभक आवाज ओहिठाम सुनल जाइत अछि। ई एक प्रकारक ‘ग्राम संसद’ थिक, जतऽ लोक-मनक मंथन होइत अछि। जखन गाम विस्तारित होइत अछि, तखन नव बरहम स्थान बनैत अछि। ई देखबैत अछि जे परंपरा जीबैत अछि, परिवर्तनक संग सेहो अपन मूल पहचान केँ संग लऽ कऽ। आजुक दौर में, जखन गाम आधुनिकता आ शहरीकरणक चपेट में अछि, बरहम स्थान एहेन प्रतीक थिक जे लोककेँ अपन जड़ि सँ जोड़ैत अछि। सामाजिक समरसता, मानसिक संतुलन आ सामूहिक आत्मबलक जे अनुभूति लोक एतऽ पाबैत अछि, ओकर कोनो मोल नहिं।


बरहम बाबा केवल आस्था नै, बल्कि संस्कृति, स्मृति आ भविष्यक बीचक सेतु छथि। ओ जनमानसक गहिर आत्मा छथि, एकटा जीवंत परंपरा, जे माटिक गंध, पवनक स्पर्श आ लोकक विश्वास सँ सजीव बनल अछि। मिथिला कें बरहम बाबा, एकटा ओ लोकदेवता, जे ‘लोक’ आ ‘लक्ष्य’ दुनू कें जोड़ैत छथि। जँ हम मिथिला कें एक चलैत-फिरैत संस्कृति मानि ली, तऽ बरहम स्थान ओकर धड़कन थिक। एहिठाम श्रद्धा अछि, संकल्प अछि, समर्पण अछि।
लोकक बीच सँ उपजल, लोकक भाषा में पूजित, आ लोकक भलाई लेल समर्पित, बरहम बाबा मिथिलांचल गामक आत्मा छथि। आइओ, जखन आधुनिकताक आँधी में परंपरा डगमगा रहल अछि, तखन ई परंपरा हमर अस्तित्वक, आत्मबलक आ अपनत्वक एक गहिर संदेश दैत अछि।
-लेेखक भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप केर प्रधान संपादक छथि

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