जब तक प्रकृति है, तब तक जीवन है!

राज तिवाड़ी.
हर साल 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है, लेकिन यह कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि मानव जाति की ज़िम्मेदारी की याद दिलाने वाला दिन है। यह दिवस प्रकृति के साथ हमारे रिश्ते की समीक्षा करने, उसकी विविधता को समझने और उसकी रक्षा हेतु आवश्यक कदम उठाने की प्रेरणा देता है। वर्ष 2025 में यह दिवस ‘प्रकृति के साथ सामंजस्य और सतत विकास’ की थीम के साथ मनाया जा रहा है, जो न केवल हमारी वर्तमान ज़रूरतों को, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा को भी रेखांकित करता है।
‘बायोडायवर्सिटी’ शब्द पहली बार 1985 में वाल्टर जी. रोसेन द्वारा गढ़ा गया था। यह शब्द न केवल पौधों और जानवरों की प्रजातियों की गिनती है, बल्कि पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवन रूपों, सूक्ष्मजीवों से लेकर विशाल पेड़ों तक, महासागरों की गहराई से लेकर पर्वतों की ऊँचाइयों तक दृ की अद्भुत विविधता को समाहित करता है।
जैव विविधता ही वह आधार है जिस पर मानव सभ्यता टिकी हुई है। भोजन, पानी, दवा, ऊर्जा, वस्त्र, और यहां तक कि हमारी सांस्कृतिक विविधताएं भी कहीं न कहीं प्रकृति की विविधता से जुड़ी हुई हैं। एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र न केवल मानव स्वास्थ्य को बनाए रखता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने, आपदाओं से निपटने और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने में भी भूमिका निभाता है।


संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट चौंकाने वाली है, करीब 1 मिलियन प्रजातियाँ आज विलुप्त होने के कगार पर हैं। इसका प्रमुख कारण, मानवीय गतिविधियाँ, वनों की अंधाधुंध कटाई, प्रदूषण, शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन, और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन।
धरती की जैव विविधता पर यह संकट केवल पारिस्थितिकी का नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व का भी संकट है। जब मधुमक्खियाँ कम होती हैं, तो परागण में बाधा आती है और फसलों की पैदावार घटती है। जब समुद्री जीवन नष्ट होता है, तो समुद्री भोजन के स्रोत कम हो जाते हैं और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाते हैं। हर एक प्रजाति, चाहे वह कितनी ही छोटी क्यों न हो, इस विशाल जैविक चक्र में अपनी भूमिका निभाती है।


1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान जैव विविधता पर कन्वेंशन को अपनाया गया। इसी महत्वपूर्ण घटना की स्मृति में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2000 से 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में घोषित किया।
इस दिवस का उद्देश्य केवल समारोह नहीं, बल्कि लोगों, सरकारों, संस्थानों और युवाओं को जैव विविधता की रक्षा के लिए प्रेरित करना है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि जैव विविधता की सुरक्षा केवल वन विभाग या पर्यावरण मंत्रालय का काम नहीं, बल्कि हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है।
वर्ष 2025 की थीम: प्रकृति के साथ सामंजस्य
इस वर्ष की थीम ‘प्रकृति के साथ सामंजस्य और सतत विकास’ बेहद प्रासंगिक है। यह उन दो प्रमुख वैश्विक एजेंडों, ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क और सतत विकास लक्ष्य, को जोड़ती है, जिनकी दिशा में वैश्विक समुदाय प्रयासरत है। इन दोनों को प्राप्त करने के लिए अगला पाँच साल अत्यंत निर्णायक हैं।
यह थीम हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि विकास का मतलब सिर्फ इमारतें, सड़कें और फैक्ट्रियाँ नहीं है, बल्कि ऐसा विकास जो प्रकृति की कीमत पर न हो, बल्कि उसके साथ सामंजस्य में हो। जब हम वन काटते हैं, तो हमें उनके बदले नए पौधे लगाने होंगे। जब हम उद्योग लगाते हैं, तो हमें पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने की तकनीकों को अपनाना होगा।
क्या कर सकते हैं हम?
शिक्षा और जागरूकता,
सबसे पहला कदम है जानकारी फैलाना। स्कूलों, कॉलेजों और समाज में जैव विविधता के महत्व पर संवाद ज़रूरी है।
स्थानीय संरक्षण, अपने आसपास के वनस्पति और जीवों की रक्षा करें। छोटे-छोटे कदम जैसे कि पक्षियों के लिए पानी रखना, या स्थानिक पेड़ों को लगाना, बड़ा असर डाल सकते हैं।
स्थायी जीवनशैली, प्लास्टिक का कम उपयोग, ऊर्जा की बचत, जैविक उत्पादों का चयन, ये सभी निर्णय जैव विविधता को बचाने में योगदान देते हैं।
नीतिगत सुधार और भागीदारी, सरकारें और संस्थान नीतिगत स्तर पर संरक्षण उपायों को प्राथमिकता दें। नागरिकों की भागीदारी के बिना यह संभव नहीं।
सार यह, अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस सिर्फ एक दिन का आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक दीर्घकालिक चेतावनी है कि यदि हम आज नहीं संभले, तो कल प्रकृति हमें संभालने लायक नहीं छोड़ेगी। हमें यह समझना होगा कि मानव सभ्यता का अस्तित्व प्रकृति से जुड़ा है, न कि उसके विरुद्ध।
वर्ष 2025 की थीम हमें विकास की एक नई परिभाषा देने का अवसर देती है, ऐसा विकास जो प्रकृति को नष्ट नहीं करता, बल्कि उसे साथ लेकर चलता है। आइए, इस जैव विविधता दिवस पर हम सिर्फ भाषण न दें, बल्कि अपने जीवन में हर दिन प्रकृति के प्रति सम्मान और ज़िम्मेदारी का भाव अपनाएँ। क्योंकि जब तक प्रकृति जीवित है, तभी तक हम भी जीवित हैं।
-लेखक चाणक्य क्लासेज हनुमानगढ़ के डायरेक्टर हैं

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