जिस स्कूल में पढ़े, उसी के बने प्रिंसिपल, फिर किया ऐसा काम कि हैरान रह गए लोग

एमएल शर्मा.
अपनी जिद एवं जुनून के बूते एक शिक्षक ने सरकारी स्कूल की सूरत ही बदल डाली। गुरुजी के नवाचारों व जागरूक करने वाली प्रेरणा के चलते विद्यालय भवन में लाखों रुपए के निर्माण कार्य हुए हैं। सिलसिला यहीं नहीं रुकता, आज भी विकास के कामों की लम्बी फेहरिस्त पूर्ण होने की दिशा में अग्रसर है। साथ ही संसाधनों में भी बढ़ोतरी हुई है।
हम बात कर रहे हैं राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के रावतसर उपखंड मुख्यालय पर स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय की जिसे इलाके में ‘बड़े स्कूल’ के नाम से पहचान हासिल है। स्थानीय निवासी सत्यदेव राठौड़ ने जब प्रधानाचार्य के पद पर यहां कार्यभार संभाला तो स्कूल में मूलभूत सुविधाओं का भी टोटा था। प्रिंसिपल ने बचपन में जिस स्कूल में शिक्षा ग्रहण की उसमें व्याप्त कमियों ने उनके दिल को कचोट दिया। जिस शिक्षा मंदिर में पढ़कर यह मुकाम पाया उसके लिए कुछ बेहतर करने की ललक मन में जगी। नतीजतन, आज विद्यालय भवन अपने ऐश्वर्य पर इतरा सकता है।


राठौड़ ने सबसे पहले कस्बे के भामाशाह वर्ग यथा व्यापारी, समाजसेवी व सामाजिक संगठनों के मुखियाओं से संवाद स्थापित कर शिक्षा दान महोत्सव योजना के तहत आठ बड़े हवादार कक्षा कक्षों का निर्माण आरंभ किया। नवाचार को देखते हुए हौसला मिला तो राठौड़ ने संपर्क के माध्यम से तीन कमरे सीएम विद्यादान योजना व एक स्थानीय निकाय से स्वीकृत करवा लिया। विद्यालय में एक बड़ी लाइब्रेरी भी बनाई गई। इतना ही नहीं जन सहयोग से 5 लाख रुपए की लागत से 250 फर्नीचर सेट, 10 लाख रुपए से सोलर प्लांट, बैठक हॉल के लिए 100 कुर्सियां उपलब्ध करवा दी। साथ ही दो लाख रुपए की लागत से चिलिंग प्लांट लगाया गया जिससे विद्यार्थियों को शुद्ध व शीतल जल मयस्सर होगा। अध्ययन में प्रौद्योगिकी व आधुनिक तकनीक का समावेश करने के लिए 2.50 लाख रुपए के दो टच स्क्रीन स्मार्ट बोर्ड लगाए गए हैं। आगामी कार्य योजना में साइंस लैब सामग्री व कंप्यूटर लैब का निर्माण प्रस्तावित है। मौके पर 9 कक्षा कक्ष निर्मित हो पूर्ण हो चुके हैं तथा 6 प्रक्रियाधीन चल रहे हैं।
सत्यदेव राठौड़ कहते हैं कि यदि कुछ करने का जज्बा आपके भीतर है तो एक संकल्पित मन से लक्ष्य की तरफ बढ़ चले। मुकाम तो मिलना ही है। बेशक, कठिनाइयां आती है पर संघर्ष एवं सहयोगी साथ के दम पर सफलता के पायदान पर चढ़ने के बाद जो असीम खुशी मिलती है उसका वर्णन मुश्किल है। संतुष्टि है कि जिस विद्यालय में पढ़ा उसके लिए कुछ कर पाया। ऐसे नवाचार आगे भी जारी रहेंगे। आज के भौतिकतावादी युग में जहां शिक्षा का करीब करीब व्यवसायीकरण हो चुका है वहीं ऐसे विरले शिक्षक भी है जो सही एवं सच्चे अर्थों में शिक्षा का उजियारा फैलाने में तल्लीन हैं।

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