
गोपाल झा.
संगठन का ढांचा तैयार करना, उसे मजबूती देना और फिर उसे सक्रिय रखना भाजपा से सीखा जा सकता है। यह सच है, भाजपा अब वाजपेयी या आडवाणी युग की नहीं है। एक दशक पहले भाजपा का नया ‘वर्जन’ आया था जिसमें वह पूरी तरह ‘कॉरपोरेट कल्चर’ में ढल चुकी थी। वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस आज भी दशकों पुराने तजुर्बे, लुंज-पुंज व सुस्त पड़े संगठन के सहारे बीजेपी को पटखनी देने का प्रयास कर रही है। भाजपा के पास लाखों आक्रामक कार्यकर्ताओं की जमात है जो झूठ-सच की परवाह किए बगैर विपक्ष पर हमलावर रहते हैं। सोशल मीडिया पर खुद का प्रचार न कर अपनी पार्टी व नेतृत्व का गुणगान और विपक्ष को घेरने के लिए कोई मौका नहीं छोड़ते। यही भाजपा की ताकत है। वहीं, कांग्रेस के कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर खुद का प्रचार करने से नहीं अघाते। ऐसे में वे भाजपा के आसपास कहीं नहीं फटकते। इन्हीं बुनियादी अंतर की वजह से भाजपा भारतीय लोकतंत्र में ‘अजेय’ की तरह आगे बढती जा रही है और कांग्रेस जनाधारविहीन, अति महत्वाकांक्षी, थके-हारे नेताओं व कमजोर संगठनात्मक ढांचे की वजह से निरंतर ‘सिमटती’ जा रही है। अप्रैल-मई में संभावित आम चुनावों में कांग्रेस कितना बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी, कहना कठिन है।

अयोध्या के निर्माणाधीन मंदिर में चुनाव से पहले श्रीराम लला की प्रतिमा स्थापित करना, सनातन धर्म के चारों शीर्ष स्तंभ शंकराचार्यों की आपत्ति को खारिज कर प्रधानमंत्री को यजमान बनाना और पूरे देश में ‘राम आएंगे…’ इवेंट का आयोजन भाजपा की चुनावी रणनीति का हिस्सा था जो पूरी तरह सफल रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह देश की जनता का मिजाज भांप चुके हैं। वे इसी के बूते तीसरी बार केंद्रीय सत्ता की बागडोर थामने की जुगत में हैं। भाजपा नेताओं को पक्का भरोसा है कि इस चुनाव में राम ही करेंगे बेड़ा पार। यानी यह तय है कि इस चुनाव में भाजपा अयोध्या की गाथा सुनाएगी और इसे बखूबी भुनाएगी भी।

पीएम का राजस्थान दौरा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बार-बार राजस्थान दौरा मायने रखता है। राजस्थान उन बड़े राज्यों में शामिल है जहां पर लोकसभा की ज्यादा सीटें हैं। पिछले दो चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को खाता भी नहीं खोलने दिया। इस बार भी बीजेपी इसी तैयारी में है। फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों के साथ जयपुर में मोदी का रोड शो भी रणनीति का हिस्सा है। वे इसी बहाने राजस्थान की जनता में संदेश देना चाहते थे कि वे गुजरात के बाद राजस्थान को महत्व देते हैं। हालांकि हर स्टेट के साथ अपना संबंध बताकर वे सबको साधने की कोशिश करते रहे हैं। अब ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ईआरसीपी) को मंजूरी मिलने के बाद भाजपा इसे भुनाने की तैयारी में है। जल्दी ही प्रधानमंत्री फिर राजस्थान आएंगे। इस तरह राज्य के 13 जिलों में भाजपा अपनी पैठ बनाने की कोशिश करेगी।
नए चेहरों पर दांव खेलेगी कांग्रेस
कांग्रेस में उम्मीदवारों के चयन पर मंथन शुरू हो चुका है। विधानसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी इस नतीजे पर पहुंची है कि अगर पुराने नेताओं की जगह नए चेहरों को मैदान में उतारा जाता तो गहलोत सरकार रिपीट हो सकती थी। पार्टी इस बात से सहमत है कि पुराने नेताओं के स्थान पर अब नए चेहरों को मौका मिले। ऐसे में सभी 25 संसदीय क्षेत्रों से नए चेहरों की तलाश शुरू हो चुकी है। कुशल संगठक, सबको साथ लेकर चलने वाले व भाषण कला में दक्ष नेताओं को प्राथमिकता देने की चर्चा है। वहीं भाजपा भी 25 में से करीब 10-12 सीटों पर प्रत्याशी बदलेगी, ऐसी चर्चा है। विधानसभा चुनाव में जिन क्षेत्रों में पार्टी ने कमजोर प्रदर्शन किया वहां पर उम्मीदवार बदले जाएंगे, यह तय माना जा रहा है। वहीं, उनके स्थान पर मजबूत प्रत्याशियों की खोज जारी है।
-लेखक भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के एडिटर इन चीफ हैं