


रश्मि चौधरी.
हम मनुष्य एक विचित्र प्रजाति हैं। विचित्र इसलिए कि हमें जो प्राप्त होता है हम हमेशा उससे कुछ भिन्न पाने की इच्छा रखते हैं। हमारे अंदर निःस्वार्थ बनाने की क्षमता भी इतनी ही बड़ी होती है जितनी स्वार्थी बनने की संभावना। इसका एक उदाहरण यह है कि एक व्यक्ति के रूप में हम सोचते हैं कि हमारे अंदर अपने प्रिय जनों को पीड़ा पहुंचा पाने की कठोरता नहीं है। फिर भी, जब-जब हमारी इच्छा बलवती होती है, तब-तब हम उन पर वेदना थोप देते हैं।
एक और उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। प्राचीन काल में एक राजा हुए। उन्हें अपनी राजनीतिक सीमाएं बढ़ाने का बहुत अधिक लोभ था। जब भी उन्हें अवसर मिलता वह पड़ोसी राज्य पर चढ़ाई कर अपने राज्य में मिला लेते। परंतु कई प्रयासों के बावजूद एक बलवान पड़ोसी राज्य पर विजय नहीं पाई। यही बात उनके मन में वेदना का कारण बन गई। एक दिन उनके शुभचिंतकों में से एक उनके पास गया और कहा कि राज्य के नजदीक की पहाड़ी पर एक बड़े ही सिद्ध बाबा रहते हैं, उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से अवश्य ही उनकी इच्छा की पूर्ति होगी। राजा ने सोचा कि चलो यह करके भी देख लें। राजा कई उपहार लेकर उस बाबा के पास गए। उनसे अपनी वेदना प्रकट की और आशीर्वाद मांगा। बाबा ने अपने सामने रखे चावल के कुछ दाने उठाए और राजा को देकर कहा-‘राजन जितने चावल के दाने मैंने तुम्हें दिए है उतने योजन भूमि तुम्हें तुम युद्ध में जीत जाओगे।’ राजा बहुत प्रसन्न हुआ और तुरंत ही उसने चावल के दाने गिनना शुरू किया। गिनने पर वह वो चावल के दाने 2993 हुए। राजा की प्रसन्नता तुरंत धूमिल हो गई। अब राजा सोचने लगा, इन बाबा ने अगर सात दाने और दिए होते तो पूरे 3000 योजन की भूमि मेरी हो जाती। मगर ये 2993 योजन में से 7 योजन कम होने से, अब और मुझे चंद्रमा में लगे दाग की भांति हो रहा है। राजा ने अपने मन में सोचा कि प्रेम पूर्वक विनती करने पर बाबा सात दाने चावल उसे अवश्य दे देंगे। राजा ने फिर बाबा से विनती की और सात दाने और देने की मांग की परंतु बाबा ने कहा-‘राजा, यह आशीर्वाद है, कोई व्यापार नहीं। जितने दाने मैने तुम्हें दिए हैं यह तुम पर मेरा आशीर्वाद है जो विफल नहीं हो सकता। परंतु जो तुम मुझसे मांग रहे हो वह मेरे लिए तुम्हें देना असंभव है।’ राजा ने कई बार बाबा से प्रेम पूर्वक विनती की परंतु जवाब न देने पर राजा को क्रोध आ गया और उसने बाबा को चेतावनी देते हुए कहा-‘बाबा या तो आप मुझे 7 दाने और दें अन्यथा मेरे क्रोध आपका वध कर देंगे।’
बाबा जोर से हंसने लगे और राजा से बोले-’राजन! मनुष्य की नियति ही ऐसी होती है कि जो उसके पास होता है उसकी उसे प्रसन्नता प्राप्त नहीं करता और ना तो वह उसके लिए कृतज्ञ होता है अपितु जो उसके पास नहीं होता उसके लिए चिंतित और कुंठित रहता है।’
सच देखा जाए तो हम भी उसी राजा की भांति है। जो हमारे पास है, उसके लिए शायद ही कभी प्रभु को धन्यवाद किया हो परंतु जो हमारे पास नहीं है उसके लिए उन्हें अवश्य ही कोसते हैं, निंदा करते हैं, शिकायत करते हैं।
चलिए एक हिसाब लगते हैं कि ईश्वर ने हमें क्या दिया है और क्या नहीं। ईश्वर ने हमें इंद्रियां दीं और बुद्धि भी। ईश्वर ने हमें पुरुषार्थ दिया। ईश्वर ने हमें भविष्य को बदलने का सामर्थ्य और परिकल्पना दीं। ईश्वर ने हमें भावनाएं दीं।
सबसे बढ़कर अपना रूप दिया। स्त्रियों को एक कदम आगे बढ़कर जननी होने का गर्व दिया। आत्मा बनके हमारे इस पांच भूतों से बने शरीर को जीवंत किया। परिवार दिया, मित्र दिए, धन दिया, संपदा दीं।
अब जरा यह भी सोचिए। हमने ईश्वर को क्या दिया ? अपने घर में छोटा सा कोना दिया। रोज चार दाने इलायची के दिए। सुबह-शाम एक दीपक जलाया। बस, जय सियाराम ईश्वर हमारे ऋणी हो गए।
हमें हमारा दृष्टिकोण बदलकर सोचने की जरूरत है। तो चलिए, साथ मिलकर सत्य की खोज करते हैं। समझते हैं कि क्या है ईश्वर, धर्म, अध्यात्म, मोक्ष और किस प्रकार स्वयं में ईश्वर को धारण कर सकते हैं ?
