

मानीता कवि कन्हैयालाल सेठिया रो दूहो है-
थे मुरधर रा बाजस्यो, बसो कठैई जाय
सैनाणी कोनी छिपै बिरथा करो उपाय.
राजस्थानी री इणी ओळखाण नै परोटणै सारू श्ग्राम सेतुश् में आज सूं हफ्तावार नवो कॉलम सरू होयो है ‘हेत री हथाई’। आपणी भासा, आपणी बात सारू थरपिज्यै इण कॉलम रा हथाईगर है चावा-ठावा कवि, कथाकार डॉ. हरिमोहन सारस्वत श्रूंखश्, जिकां आपरी भासा, संस्कृति अर लोकरंग रै बधेपै सारू बरसां सूं खेचळ खावतां थकां देस-दुनिया में अळघी पिछाण बणाई है। आस करां, पाठकां नै राजस्थानी हथाई रा रंग दाय आसी।
-संपादक
डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’
आज सिंझ्या देस री नवी सरकार ‘आखड़ी’ लेसी। संविधान री आखड़ी, सेवा री आखड़ी, इमानदारी री आखड़ी, तन, मन अर बचनां सूं, देसहित रा काम करणै री आखड़ी…।
आखड़ी ! यानी सोगन, हिंदी में कैवां तो सौगंध अर संस्कृत में शपथ। अंग्रेजी में ‘प्लैज;’ बोलां ! बाई सागी प्लैज, जिकी इस्कूलां रा घणकरा टाबर दिनुगै प्रार्थना में बोलै, ‘इंडिया इज माय कंट्री….।’
कौल अर आखड़ी में थोड़ो सो ई भेद है। वायदै अर बचनां नै कौल कहीजै जिका आपणां नेता पग-पग माथै करै। सतजुग तो अबार है कोनी कै कौल में बंधणो पड़ै, पछै चावो जित्ता करो। चुनावां रै दिनां में तो आं कौलां रो कैवणो ई कांई ! बेटा सै नेतिया चांद पर प्लाट दिरावण री बात करै। पण दोस फगत वान्नै ई क्यूं ? आपां ई घणाई कौल करां, पण पूरा कित्ताक करां! ‘कळजुग रा कौल, फाट्योड़ा ढोल’।
पण आखड़ी कौल सूं की बेस्सी होवै। कौल में अंतस री आस्था, मनगत री निखालिस भावना रळै, तद आखड़ी बणै। आखड़ी लेणी तो घणी सोरी पण निभावणी दोरी ! आखड़ी तोड़ी नीं जावै, बस पूगतां आपरी ज्यान देय’र पूरी करणी पड़ै। त्रेता में दसरथ, द्वापर में भीष्म अर कळजुग में हमीर आखड़ी सारू आपोआप नै होम दियो। इण पांत में और घणाई दूजा नांव है जिकां आखड़ी री लाज राखी, आपरी बात पूरी करी। कदास इणी सारू राजस्थानी रा ख्यातनांव कवि बांकीदास लिख्यो है, ‘अंग नै छूटै आखड़ी, सीहां सापुरसां…’
आपणै लोक में आखड़ी बाबत भोत सूणी बात कथिजी है-
तीजी फाळ नै बावड़ै, भागां लार नै जाय
सिंघां आइज ‘आखड़ी’, पर मारयो नीं खाय।
अबै आ नां कैय देया कै कळजुग रा सिंघ तो लाई पर मारयै सिकार रै ताण ई जीवता है !
….तो पछै परधानमंतरी जी भेळै
आज आपां ई लेवां आखड़ी, आपरी पिछाण, आपरी ओळखाण नै बचायां राखण री।



