





राजेश चड्ढ़ा.
सोलहवीं सदी दे पँजाबी सूफ़ी कवि शाह हुसैन नूँ पँजाबी कविता दे काफ़ी रूप दा मूढी कवि मनेया जाँदा है। शाह हुसैन ने बहुत ही गुँझलदार विचाराँ अते विषयाँ दी खोज बहुत ही सरल अते जीवँत तरीके नाल कीती है। शाह हुसैन दी कविता ना सिर्फ़ छँदबद्ध अते तालबद्ध है सगों आम लोकाँ नूँ पवित्रता अते आशीष दे प्रकाशवान मार्ग वल सीध करौन लयी इक उच्च अते अर्थपूर्ण दृष्टिकोण वी रखदी है। शाह हुसैन दी कविता लोक कथावाँ नाल भरी होयी है। शाह हुसैन हीर अते राँझे तों इन्ना प्रभावित हन कि वार-वार सानूँ हीर-राँझे दे प्रेम दी गहराइयाँ तक लै जाँदे हन। अपने ब्रह्म दृष्टिकोण नाल सानूँ प्रेरित करदे हन अते परमपुरख नाल प्रेम करन दे बहुत सारे मौके प्रदान करदे हन। शाह हुसैन लोक दी रूमानियत ते अपनी अनन्त अँदरूनी रोशनी पौंदे हैन अते इस नूँ सिधे अते उच्चे प्रेम वल लै जान वाले मार्गदर्शक वजहों चुनदे हन।
शाह हुसैन दी कविता गुलाब दे बगीचे वाँग नहीं है जित्थे सिर्फ़ रहस्यवाद दी मीट्ठी खुशबू मिलदी है। इस विच परमात्मा प्रति आज्ञाकारी विच साढे आलस तों सानूँ जगौन लयी सिंहासन दी चुभन दा वी ज़िक्र है।

शाह हुसैन ने हमेशा इस वल ज़ोर दिता कि आदमी नूँ अपने आप नूँ जानना चाहिदा है-
आप नूँ पहचान बँदे।
जे तुध आपना आप पछाता,
साहब नूँ मिलना आसान बँदे।
पहलाँ अपने आप नूँ जाणो फेर परमपुरख नूँ लभना आसान हो जावेगा।
एत्थे शाह हुसैन अपनी आत्मा दी गहराई विच ईश्वर नूँ लभन दे मूल सूफ़ी विचार दी तरफ़ इशारा कर रहे हन-
मन अटकेया बेपरवाह दे नाल
उस दीन दुनिया दे शाह दे नाल
मेरा दिल उस बेपरवाह नाल उलझेया होया है जेड़ा इस दुनिया दा बादशाह है।
शाह हुसैन दूजे सूफ़ी कवियाँ तों थोड़ा अलग हो के समान विचाराँ अते फ़लसफ़े नूँ इक वखरे काव्यात्मक अते बहुत ही सरल तरीके नाल दसदे हन-
रब्बा मेरे हाल दा महरम तूंँ।
अन्दर तूँ हैं बाहर तूँ हैं,
रोम रोम विच तूँ।
तूँ हैं ताणा तूँ हैं बाणा,
सभ किछ मेरा तूंँ।
कहै हुसैन फ़क़ीर निमाणा,
मैं नाहीं सभ तूँ।
हे ईश्वर तूँ मेरी असल हालत नूँ जाणदा हैं, क्यों के तूँ ही मेरे अँदर हैं अते तूँ ही बाहर हैं। तूँ हर थाँ ते मौजूद हैं। तूँ ही सब कुज करण वाला अते सिरजनहार हैं। तेरे बिना मेरा कोई वजूद ही नहीं है।
शाह हुसैन कहँदे हन रब ऐसा सिरजनहार है के ओ ही सानूँ हर हुकुम देंदा है। शाह हुसैन इस गल नूँ विलखन तरीके नाल दसदे होये कहँदे हन-
साजन दे हत्थ डोर असाडी,
मैं साजन दी गुड्डी
मैं इक पतँग दे वाँग हाँ अते मेरी डोर परमात्मा दे कोल है। परमात्मा ही मैंनू सब हुकुम दे रेहा है। शाह हुसैन इस खूबसूरत दुनिया दी खूबसूरती तों वी प्रभावित नहीं हन इस लयी इस खूबसूरत दुनिया दे खालीपन बारे कहँदे हन-
दुनिया तालिब मतलब दी
वो सच सुन ओ फकीरा
एह दुनिया इन्नी खुदगर्ज़ है कि प्रेम करन वालेयाँ लयी मुफ़ीद नहीं है। शाह हुसैन कहँदे हन-
दग़ा बाज़ संसार
ते गोशा पैकर हुसैन
मन चाहे महबूब को
तन चाहे सुख चैन
दोए राजे की सेध मैं
कैसे बनी हुसैन।
एह दुनिया इक भरम है अते इस विच ना फसो। मैं अपने प्रेम नूँ लभ रेहा हाँ जद कि मेरा शरीर शांति नूँ लभ रेहा है अते जित्थे दो राजे होन ताँ दोंवे इक राज किवें करनगे।
शाह हुसैन दे प्रेम दा धर्म सारे धर्मां तों वखरा है। शाह हुसैन दी कविता विच सानूँ इसदे बहुत सारे सुबूत मिलदे हन। शाह हुसैन कहँदे हन-
साहिब तेरी बन्दी आँ
मंदी आँ के चँगी आँ
कमले लोक कहन दीवानी
मैं मुर्शिद रँग विच रँगी आँ
कहे हुसैन फ़क़ीर साँई दा
मैं वर चँगे नाल मँगी आँ
सूफ़ी जीवन शैली दा इक ही फ़लसफ़ा है, श्रद्धा नाल भरेया प्रेम। इस लयी सूफ़ी वाद विच सानूँ प्रेम दा ओ ही अर्थ मिलदा है, जो इस नूँ होना चाहिदा है।
-लेखक सुविख्यात शायर और आकाशवाणी के पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक हैं



