दुनिया करती है ‘शोर’ तो ‘मौन’ रहकर समझाती हैं किताबें!

डॉ. अर्चना गोदारा
सोशल मीडिया के इस दौर में व्यक्ति अपनों से बहुत कुछ छुपाता है और परायो को बहुत कुछ दिखाता है। हर व्यक्ति में सुंदर, अमीर और आकर्षक बनने की होड़ है। वह अपने आप को एक उच्च स्तर का आकर्षक व्यक्ति दिखाना चाहता है। इसी चाह और लालसा में पैसे कमाने की होड़ उनमें हावी हो जाती है और वह धीरे-धीरे अकेले पड़ने लगते हैं। ऐसे में जो व्यक्ति का सबसे अधिक साथ देती है वह है किताबें। किताबें न केवल ज्ञान देती हैं बल्कि बहुत कुछ सिखाती भी हैं। व्यक्ति के तनाव को कम करती हैं और नई उम्मीदों को जगाती हैं । इसके साथ ही वह नई दुनिया को भी दिखती है। जब व्यक्ति किताबों को पढता है तब वह जानता है कि दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है जिससे वह अनजान है। किताबें व्यक्ति में उत्सुकता को पैदा करती हैं।
जब आज की भागती-दौड़ती दुनिया में हर रिश्ता शर्तों से बंधा लगता है, तब किताबें बिना किसी स्वार्थ के व्यक्ति के जीवन की सबसे सच्ची और मौन साथी बनकर साथ निभाती हैं। वे न केवल शब्दों एवं ज्ञान का संग्रह होती हैं, बल्कि अनुभवों की जीवित धड़कन भी होती हैं, जो हमें सोचने, समझने, विचारने और बेहतर इंसान बनने की राह दिखाती हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स की एक रिसर्च के अनुसार, केवल 6 मिनट का पाठन व्यक्ति के मानसिक तनाव को 68 फीसद तक कम कर सकता है और यह तथ्य इस बात को साबित करता है कि किताबें सिर्फ ज्ञान ही नहीं देतीं, बल्कि हमें भीतर से शांत भी करती हैं। जब भी दुनिया शोर करती है, किताबें चुपचाप समझाती हैं। जब भी हम थक जाते हैं, ये हमें ऊर्जा देती हैं, और जब कोई साथ नहीं होता, तो यही किताबें हमें थामे रहती हैं। सोशल मीडिया और स्मार्टफोन के दौर में किताबें लुप्त होती जा रहे हैं और लोग इससे दूर होते जा रहे हैं । आज व्यक्ति सोशल मीडिया के इतने प्रभाव में है कि वह हर चीज को स्मार्टफोन, लैपटॉप और कंप्यूटर पर देखना और पढ़ना चाहता है। लेकिन जितनी तेजी से यह तकनीक बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से तनाव और अवसाद भी बढ़ रहा हैं।
गांधी, लिंकन से लेकर कलाम तक, हर महान व्यक्ति की प्रेरणा का मूल कहीं न कहीं एक किताब ही रही है। किताबें दोस्त भी हैं, शिक्षक भी, और कभी-कभी तो दर्पण भी, जो हमें हमारे भीतर झाँकने का साहस देती हैं। वे एक तस्वीर भी है जो हमें अंजान दुनिया की शक्ल भी दिखाती हैं। इसलिए कहा गया है, “किताबें धूप में छाँव हैं, बारिश में रैन बसेरा, जो पढ़ ले दिल से इनको, उसका जीवन हो उजियारा, क्यों कि बंट जाए ध्यान और घट जाये तनाव।” आधुनिक तकनीक और मोबाइल की चकाचौंध में खोते जा रहे इंसान को अगर सच्चा सुकून चाहिए, तो उसे किताबों से दोस्ती करनी होगी, क्योंकि ये न बोलती हैं, न थकती हैं, ना ही विज्ञापन देकर ध्यान भटकाती हैं। हर बार कुछ नया बताती हैं, कुछ नया कह जाती हैं। यही इन्हें जीवन की सबसे सुंदर और पक्का साथी बनाता है।
कहती है बहुत कुछ!
बताती है अनगिनत….,
तुम एक बार…..
तुम एक बार, पढ़ो तो सही,
बहुत कुछ बताती है, किताबें बहुत कुछ बताती हैं, किताब।
-लेखिका सामाजिक चिंतक और राजकीय एनएमपीजी कॉलेज हनुमानगढ़ में सहायक आचार्य हैं

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