



ग्राम सेतु ब्यूरो.
राजस्थान में पंचायतीराज चुनाव टल गए हैं। संभवतः राजस्थान देश का एकमात्र राज्य है जो ‘वन स्टेट-वन इलेक्शन’ की राह पर रफ्ता-रफ्ता आगे बढ़ रहा है। राज्य सरकार ने महत्वपूर्ण आदेश जारी कर प्रदेश की तकरीबन 6 हजार 759 ग्राम पंचायतों में सरपंचों को सर्वशक्तिमान बनाए रखने का फैसला किया है। जी हां। सर्वशक्तिमान। यानी सरपंचों की शक्तियां यथावत रहेंगी। वे अब प्रशासक की भूमिका निभाएंगे। इससे उनके पास शक्तियां यथावत रहेंगी लेकिन अब उन्हें प्रशासकीय समिति से सहमति लेनी होगी। वैसे भी ग्राम सभाओं में हुए निर्णयों के आधार पर ही सरपंच अपने दायित्वों का निर्वहन करते रहे हैं। प्रशासकीय समिति में उप सरपंच और वार्ड पंच शामिल होंगे। राज्य सरकार ने इस आशय को लेकर आज देर शाम अधिसूचना जारी कर दी। अधिसूचना के मुताबिक, जिन ग्राम पंचायतों का कार्यकाल इस माह पूरा हो रहा है, वहां पर संबंधित जिले के कलक्टर सरपंचों को प्रशासक नियुक्त करने की प्रक्रिया पूरी करेंगे। साथ ही प्रशासकीय समिति गठित की जाएगी।
काबिलेगौर है कि राजस्थान में कुल 11 हजार से अधिक ग्राम पंचायतें हैं। इनमें से 6 हजार 759 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल जनवरी में पूरा हो रहा है। बाकी का कार्यकाल इस साल मार्च और सितंबर-अक्टूबर में पूरा होगा। इस लिहाज से देखें तो सरकार पंचायतीराज चुनाव एक साथ करवाने पर विचार करती दिख रही है।
राजस्थान में संभवतः पहली बार होगा जब सरपंच को प्रशासक नियुक्त किया जाएगा। आमतौर पर ग्राम सचिव यानी ग्राम विकास अधिकारी को प्रशासक नियुक्त करने की परंपरा रही है। लेकिन इस बहाने सरकार राजनीतिक तौर पर सरपंचों को साधने की जुगत में है। सरकार को लगता है कि इससे सियासी फायदा होगा लेकिन राजनीतिक जानकारों की मानें तो यह उतना आसान नहीं है। अमूमन हर ग्राम पंचायत में सियासी तौर पर तीन या चार धड़े होते हैं। सरपंच विरोधी गुट से बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। पूर्व जिला प्रमुख राजेंद्र मक्कासर ‘ग्राम सेतु’ से कहते हैं, ‘सरकार का यह निर्णय अलोकतांत्रिक है। यूं समझिए कि चुनाव टालने का बहाना ढूंढ़ रही है सरकार। यह जनप्रतिनिधियों के साथ खिलवाड़ है। सरकार को चाहिए था कि वह चुनाव करवाए और नियमानुसार पंचायतीराज को मजबूती के लिए काम करे। सरपंच को प्रशासक नियुक्त करना उचित नहीं है।’
दिलचस्प बात है कि भाजपा नेता व पूर्व जिला प्रमुख कृष्ण चोटिया भी सरकार के इस निर्णय से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि अब तक ग्राम सचिव को ही प्रशासक नियुक्त करने का प्रावधान रहा है। सरकार सरपंचों को प्रशासक बनाकर उनका कार्यकाल ही बढ़ाया है, जो उचित नहीं। पूर्व जिला प्रमुख कृष्ण चोटिया के मुताबिक, सरकार के इस निर्णय को सही नहीं ठहराया जा सकता।
खास बात है कि अधिसूचना में यह तय नहीं है कि प्रशासक की कार्य अवधि कितने समय के लिए होगी। इससे तय है कि चुनाव अवधि तक सरपंचों के हाथो ंमें ही ग्राम पंचायत की कमान रहेगी।



