



ग्राम सेतु डेस्क.
राजकीय सेवा में जब कोई कर्मचारी कर्तव्यनिष्ठा, विनम्रता और ईमानदारी की मिसाल बन जाता है, तो उसकी विदाई केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि सम्मान और आत्मीयता का पर्व बन जाती है। ऐसा ही दृश्य देखने को मिला जब जिला परिषद, हनुमानगढ़ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ओ.पी. बिश्नोई ने अपने निजी सहायक रहे सुबोध शर्मा को स्वयं अपनी गाड़ी में बैठाकर उनके घर तक पहुंचाया। यह क्षण केवल एक प्रशासनिक अधिकारी द्वारा सहयोगी को दी गई विदाई नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायक परंपरा की शुरुआत भी था, जिसमें संबंध, सेवा और सम्मान एक साथ झलकते हैं।

दरअसल, जिला परिषद कार्यालय परिसर एक भावनात्मक दृश्य का साक्षी बना, जब 34 वर्षों की निष्ठावान और ईमानदार राजकीय सेवा पूर्ण करने वाले सुबोध शर्मा को सम्मानपूर्वक विदाई दी गई। सेवा से निवृत्त हो रहे सुबोध शर्मा को जिला परिषद के अधिकारियों और कर्मचारियों ने ढोल-नगाड़ों, गुलाल और आत्मीयता से विदाई दी। यह क्षण न केवल एक कर्मचारी की सेवा यात्रा का समापन था, बल्कि कर्तव्यपरायणता और विनम्रता की मिसाल का सम्मान भी था। सुबोध शर्मा की पहली नियुक्ति श्रीगंगानगर में हुई थी। लेकिन बीते 31 वर्षों से वे हनुमानगढ़ में ही सेवाएं दे रहे थे। इस दौरान उन्होंने 8 वर्षों तक जिला कलक्टर के निजी सहायक (पीए) के रूप में कार्य कर जिले की प्रशासनिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी कर्मनिष्ठा, व्यवहार कुशलता और कार्य के प्रति समर्पण ने उन्हें अधिकारियों व सहकर्मियों के बीच आदर का पात्र बना दिया।
विदाई समारोह के आयोजन में जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ओ. पी. बिश्नोई, अति मुख्य कार्यकारी अधिकारी देशराज, वरिष्ठ लेखाधिकारी रामावतार बुंदेला, अधिशाषी अभियंता श्रवण सहारण, शरीफ खान, मदन गोदारा, जुल्फीकार, सुनील छाबड़ा समेत समस्त कार्मिक उपस्थित रहे। इस आयोजन को विशेष बना दिया सीईओ बिश्नोई के उस आत्मीय पहल ने, जब उन्होंने स्वयं वाहन चलाकर सुबोध शर्मा को उनके निवास तक पहुँचाया।
शर्मा के घर पहुंचने पर उनका स्वागत ढोल-नगाड़ों और गुलाल से किया गया। घर का वातावरण एक पारिवारिक उत्सव सा हो गया, जहां अर्द्धांगिनी सुमन शर्मा, पुत्र युवराज, पुत्रवधू साक्षी समेत परिवारजनों की आंखें गर्व से छलछला उठीं।
इस अविस्मरणीय क्षण के गवाह बने विनोद गोदारा, सुनील भारद्वाज, महावीर छींपा, राजेन्द्र शर्मा, राकेश कुमार, जगपाल मान, उत्कृष कोशिक, कन्हैया सिंह, आशा यानि, गीता देवी और अन्य आत्मीयजन, जिन्होंने वर्षों तक साथ काम किया और आज उन्हें शुभकामनाओं के साथ विदा किया।
इस विदाई समारोह में औपचारिक भाषणों से अधिक भावनाओं का आदान-प्रदान हुआ। सहकर्मियों की आंखें जहां विदाई की पीड़ा से नम थीं, वहीं सुबोध शर्मा का शांत और संतुष्ट चेहरा उनके संतुलित और सार्थक जीवन की गवाही दे रहा था।
जिला परिषद के कर्मचारी पद्मेश कुमार सिहाग कहते हैं, ‘सुबोध शर्मा की यह विदाई न केवल एक अधिकारी की सेवा यात्रा का विराम है, बल्कि यह प्रेरणा है उन तमाम कर्मियों के लिए, जो ईमानदारी और समर्पण से अपनी ड्यूटी को एक साधना मानते हैं।’





